न्याय/ कानून - अनन्तराम चौबे अनन्त
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न्याय, कानून, कोर्ट, फैसला,
वकील बीच में इसके रहते है ।
अन्याय जहां जब भी होता है
न्याय पाने को कोर्ट जाते है ।
कोर्ट कचहरी और थाने में
न्याय मांगने सब जाते हैं ।
न्याय अन्याय के चक्कर में
दोनों पक्ष यहां पर जाते हैं।
न्याय अन्याय के फैसले में
कानून से फैसला होता है ।
वकील कोर्ट में जिरह करते है
गवाह और साक्ष्य रखते हैं ।
सर्वोच्च न्यायालय के जज के
घर से करोड़ों के नोट जले मिले।
बोरियों ये भरे नोटों को न्याय
बदलने को किसी से ही मिले ।
अपराधी मामले पुलिस देखती
जांच के वाद रिपोर्ट को लिखती ।
चार्ज सीट जब कोर्ट में जाती
सुनवाई केश की तब है होती ।
कानून तो बस अंधा होता है
साक्ष्य और गवाह मांगता है ।
सच को झूठ और झूठ को सच
वकीलों की जिरह से होता है ।
न्याय पाने के चक्कर में कोर्ट में
दस बीस साल गुजर जाते हैं ।
तारीख पर तारीख कोर्ट से मिलती
समय और पैसा बरवाद होते हैं ।
वकीलों की रोजी रोटी चलती है
हर पेशी में फीस जो मिलती है ।
वकीलों का काम जिरह करना है
मानवता वहां तार तार होती है ।
अपराध और दुष्कर्म के मामले में
महिलाओं की इज्जत लुटती है ।
न्याय को पाने कोर्ट जो जाता
उसकी भी इज्जत लुट जाती है ।
न्याय कानून कोर्ट के फैसले
वकीलों के माध्यम से चलते हैं ।
सारा सच न्याय मिले या न मिले
जीवन तो बर्बाद हो जाते हैं ।
न्यायालय है न्याय का मंदिर
न्याय पता नहीं कब होता है।
किसको न्याय कब मिलता है
समय का न कुछ पता होता है ।
माध्यम वकील न्याय में होते
जो अपना धंधा करते हैं ।
सारा सच वादी, प्रतिवादी के
पक्ष में वकील खड़े रहते हैं ।
कौन सच्चा और कौन झूठा है
दोनों पक्ष अपना रखते हैं ।
दोनों जीत का वादा करते
मन मानी फीस जो लेते हैं ।
गारंटी नहीं किसी केश की
हार जीत कब किसकी होगी ।
वकील फीस अपनी लेते हैं
अगली तारीख बढ़ा लेते हैं
सारा सच फैसले की गारंटी नहीं
तारीख पर तारीख ही मिलती है ।
दस बीस साल केश चलते हैं
खर्च की कोई सीमा नहीं होती है ।
अनन्तराम चौबे अनन्त
जबलपुर म प्र
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