Friday, 11 April 2025

सत्संग - डॉ. रुपाली दिलीप चौधरी


सत्संग - डॉ. रुपाली दिलीप चौधरी
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भारतीय आध्यात्मिक चिंतन में "सत्संग" एक ऐसा तत्व है जिसे आत्मोद्धार का सार कहा गया है। 'सत्' का अर्थ है सत्य, सद्गुण, सदाचार और ईश्वर; जबकि 'संग' का अर्थ है संगति या संपर्क। इस प्रकार सत्संग का आशय है - सत्य और सदाचार की संगति ।"सत्संगति किम् न करोति पुंसाम्?" – हितोपदेश ,सज्जनों की संगति मनुष्यों के लिए क्या नहीं कर सकती? मनुष्य का जीवन जिन विचारों से प्रभावित होता है, वही उसकी दिशा तय करते हैं। सत्संग जीवन को सकारात्मकता, विवेक और आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।"सत्यमेव जयते नानृतं" - मुण्डकोपनिषद् सत्य की विजय की घोषणा करने वाला यह वाक्य सत्संग की आत्मा है। वेदों में ऋषियों की संगति को ही सत्संग कहा गया है, जहाँ सत्य का अन्वेषण होता है। 'सत्संगत्वे निस्संगत्वं, निस्संगत्वे निर्मोहत्वम् ।निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं, निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः।"– शंकराचार्य, विवेकचूडामणि • इस श्लोक के अनुसार सत्संग से वैराग्य उत्पन्न होता है, वैराग्य से मोह का नाश होता है, और अंततः आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।"सज्जन संगति रेंगन ते विषधर भी अमृत होई।"अर्थात् जैसे साँप भी चंदन वृक्ष के स्पर्श से सुगंधित हो जाता है, वैसे ही दुष्ट भी सत्संग से सुधर सकता है।"सत्संगति से मन सुधरे, विवेक बढ़े दिन रात।कबिरा तेरे संग से, मिटे भवसागर त्रास ॥" कबीरदास जी ने सत्संग को मोक्ष का द्वार बताया है। वे कहते हैं कि सत्संग से ही आत्मा परमात्मा से जुड़ती है। 'सत्संगात लभते बुद्धि, बुद्धिरज्ञाननाशिनी । 'ज्ञानं लभ्यते ततो, मोक्षः सुलभं भवेत्॥"सत्संग से बुद्धि शुद्ध होती है, और फिर ज्ञान प्राप्त होकर मोक्ष की ओर गमन होता है।सत्संग मानसिक संतुलन को सुदृढ़ करता है।चिंतन की दिशा को सकारात्मक बनाता है।ध्यान और आत्मनिरीक्षण की प्रेरणा देता है।व्यक्तियों में नैतिक मूल्यों का विकास होता है।समुदाय में समरसता और भाईचारा बढ़ता है। युवा पीढ़ी को सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक दिशा मिलती है। संगात संजायते कामः संगात् संजायते ज्ञानम्। संगात् सर्वं प्रवर्त्तते, सत्संगो हि परं बलम् ॥" आज की व्यस्त और तनावपूर्ण जीवनशैली में सत्संग एक मानसिक औषधि के रूप में कार्य करता है। आभासी दुनिया से जुड़े समाज को वास्तविक, मानवीय और आत्मिक संवाद की आवश्यकता है, जो केवल सत्संग में संभव है। सत्संग मंचों के माध्यम से युवा आत्मनिष्ठ बनते हैं।नशा, अपराध, मानसिक विक्षोभ आदि से मुक्ति के लिए यह साधन कारगर है।आत्मज्ञान, सेवा भावना और राष्ट्रभक्ति को जाग्रत करता है।"बिन हरिभजन न भव तरै, सत्संग बिनु होय।सत्संग सुगम करि हरि कृपा, साधन धाम सो होय - रामचरितमानस सत्संग वह भूमि है जहाँ आत्मा पुष्प की भांति खिलती है और ईश्वर की ओर अग्रसर होती है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, अपितु एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो जीवन को नवचेतना से भर देती है।एक ऐसी आध्यात्मिक यात्रा जिसमें ना किसी के  प्रति क्रोध, द्वेष है अपितु शांति, संतोष का मूल स्त्रोत होता हैं।

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