Tuesday, 8 April 2025

प्यार - डॉ. रुपाली दिलीप चौधरी

 


प्यार -  डॉ. रुपाली दिलीप चौधरी 
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प्रेम का मतलब यह नहीं है कि भई, मैं तो अपनी लड़की से प्यार करता हैं, अपने लड़के से प्यार करता मैं भाई से प्यार करता है, ये प्यार नहीं- इसके लिये एक शब्द है - 'निर्वाज्य' निर्लेप माने अलिप्त।  माँ  का अगर प्रेम निर्लेप हो जाए तो बहुत सी बातें छूट जायेंगी, पर ऐसा नहीं है। एक पेड़ को देखिये उसके से धारा, उसका रस सारे पेड़ में चढ़ता है, हर जगह उसके मूल में जाता है, पत्तों में जाता है, उसकी शाखाओं की लेकिन रुकता नहीं, वह किसी जगह रुकता नहीं। ग़र वो रुक जाये तो समझ लीजिए जैसे उसे एक जानकार आ गया या फूल बड़ा पसन्द आ गया तो पेड़ ही मर जाएगा, बाकी फल-फूल सभी मर जायेंगे। इसीलिये जिनको देना है उसको वो देना चाहिये, जिसको जो रस देना है वो अपने घर में, गृहस्थी में, समाज में, अपने देश में और सारे विश्व में जिसको जो देना है वो दीजिए लेकिन उसमें लिपट न जाइये। उसको लिपटना जो है वो एक तरह से कहना चाहिए जिसे अंग्रेजी में obsession कहते है-चिपकना- अब वो कोई सी भी चीज हो उससे प्रेम की शनि क्षीण हो जाती है, बढ़ेगी नहीं। कहते है 'उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्' सारी वसुधा ही, सारी धरा ही उसकी कुटुम्ब है-ये  प्यार  की महिमा है-इस  प्यार की महिमा को अगर आपने जान लिया तो आपको आश्चर्य होगा कि आत्मा के दर्शन से ही ये घटित होता है । 
प्रेम पूर्ण उपहार है, दुसरों की भावनाओं को महसूस करने का पूर्ण उपहार, न इसमें कोई बातचीत है न बहस  आप तो बस प्रेम को महसूस करते है। प्यार का अनुभव अन्दर होता है, यह तो अन्तः स्थित है.  हम इसे पा सकते हैं........यह तो बस मौजूद है, इस प्यार को महसूस किया जा सकता है , दूसरे लोग आपसे प्रेम करते है या नहीं इसको कोई फर्क नहीं पड़ता, यह एहसास तो आपके अन्दर मौजूद है, आपके अन्दर यह गहनता है और आप इसका आनन्द लेते है। प्रेम का स्रोत शाश्वत है और इसका वर्णन शब्दों में करना आसान नहीं, यह सभी मानवीय अभिव्यक्तियों से परे है। किसी व्यक्ति में यदि यह प्रेम है तो यह फैलेगा ही।   व्यक्ति को यह सीखना है कि प्रेम का सागर हमारे अन्दर है, इस सागर में हमें स्वयं को डुबोना मात्र है। इस प्रेम सागर में जाये हम खो गए तो हर चीज हमारी अपनी होगी. बिना किसी वाद-विवाद के, बिना किसी प्रश्न के हम सारी व्यवस्था कर सकेंगे-यही सहज होना है। प्यार की व्याख्या यादी की जाये तो अपने शाश्वत प्रेम की अभिव्यक्ती का संतोष प्यार है । प्रेम आपको सिखाता है कि वास्तविकता की पूरी तस्वीर को किस प्रकार समझना है क्योंकि ये तो ऐसा काश है जो सारे अंधकार को ज्योतिर्मय करता है- आपके अन्दर और बाहर दोनों प्रकार के अन्धकार को। आपमें जब यह प्रेम आ जाता है तो आप अपने अन्दर अत्यन्त शान्त हो जाते हैं और आपकी शांति अभिव्यक्त होती है।..प्रेम अत्यन्त महत्वपूर्ण अत्यन्त मूल्यवान गुण है। परन्तु यह प्रेम पूर्णतः स्वच्छ प्रेम होना चाहिये। इसमें  कामुकता और लोभ को कोई स्थान नहीं है.... प्रेम तो बस प्रेम के लिये होता है। प्रेम के लिए आपको कृत्रिमता sophistication) की आवश्यकता नहीं है। आपमें यदि सच्चा प्रेम है तो आप अत्यन्त भद्र एवं मधुर बन जाते है। प्यार व्यक्ति को पागल नहीं बनाता..... प्यार  इतना पावन है कि यह अत्यन्त आपको समाधान सुझाता है। ये बात पूरी तरह से सत्य है क्योंकि यह अपनी अभिव्यक्ति करना चाहता है।  अत्यन्त सुन्दर ढंग से कार्य करता है।  प्यार अत्यन्त विवेकशील भी हैं,  किसी को हानि नहीं पहुँचाता, किसी को कष्ट नही देता..... आपको चाहिए कि परस्पर प्रेम करें, एक दूसरे का सम्मान  करे केवल तभी सबको  यह महसूस होगा कि प्रेम की इस शक्ति की अभिव्यक्ति हुई है।

महाराष्ट्र 

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