Friday, 25 April 2025

न्याय - कंचनमाला अमर

 


न्याय - कंचनमाला अमर 
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न्याय चेतना तीन तरह की होती है।एक जो हम दूसरों के लिए करते हैं।दूसरा जो हम अपनों के लिए करते हैं ।तीसरा जो हम स्वयं के लिए करते हैं।एक ही अपराध के लिए हम अलग अलग स्थानों और अलग अलग पात्रों के लिए अलग अलग न्याय देते हैं।मानव मनोविज्ञान जितना जटिल कुछ भी नहीं।मानव मनोविज्ञान को समझे तो हमें मालूम चलता है कि मानव से बढ़कर स्वार्थी कोई जीव इस धरा पर नहीं। इसके साथ ही यह भी सत्य है कि इस संसार में  मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो अपने सद्गुणों या अवगुणों को विकसित करके क्रमशः महात्मा या दुरात्मा बन सकते हैं।देव भी बन सकता है और राक्षस भी।यह क्षमता परमात्मा ने इनमें ही दी है ,किसी अन्य जीव में नहीं। अगर मनुष्य मानवता धर्म को अपनाएं।परमात्मा से जुड़ें ताकि तर्कसंगत न्याय करने की क्षमता  में विकसित हो तो औरों के साथ,अपनों के साथ और स्वयं के साथ बिना किसी भेदभाव के समुचित न्याय कर सकता है।जिससे न्याय की भी,न्यायप्रणाली की भी और इंसानियत की भी साख इस दुनिया में बनी रहेगी।साथ ही मानव समाज सुंदर,शांत और विकसित बनेगा क्योंकि अन्याय ही समाज में क्लेश,ईर्ष्या,दुर्भावना जैसी कलुषित भावना को जन्म देती है।

धर्म को अपनाएं,न्याय व्यवस्था को समझे और परिस्थितियों के अनुसार समुचित प्रतिपालन करें।

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