बादल और चांदनी - ऋचा गिरि
https://sarasach.com/?p=480
कल बादल को चलते देखा
आँगन से शाम ढलते देखा
चांदनी से आंख मिचौली खेल
फिर जल्दी जल्दी चलते देखा
पल आँखों से ओझल हो
दूर जा भेष बदलते देखा
तारे गवाही दे रहे थे की
आप आप मे खलते देखा
चाँदनी से विरह होने का
शायद उसको गम था
हां, फिर वह जा कर रोया
तोड़ा जो वो वचन था
विकल चांदनी सोच रही
क्या कोई प्रणय,कम था
कहा गया वो कैसा होगा
या और कोई हमदम था
चांदनी निकल गई और,पूछा
क्या मेघदूत को फिरते देखा
सहस्त्र फूट ऊंचाई पर,जा
गरज गरज कर घिरते देखा
समझ गई चांदनी मेघ की लीला
जब इस विरह को सहते देखा
छोटी वेदना बड़ा था गौरव
जब कर्म पथ पर चलते देखा
-ऋचा गिरि
दिल्ली
No comments:
Post a Comment