Tuesday, 22 April 2025

बादल और चांदनी - ऋचा गिरि


बादल और चांदनी - ऋचा गिरि
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कल बादल को चलते देखा 
आँगन से शाम ढलते देखा 
चांदनी से आंख मिचौली खेल 
फिर जल्दी जल्दी चलते देखा 

पल आँखों से ओझल हो 
दूर जा भेष बदलते देखा 
तारे गवाही दे रहे थे की 
आप आप मे खलते देखा 

चाँदनी से विरह होने का 
शायद उसको गम था  
हां, फिर वह जा कर रोया
तोड़ा जो वो वचन था

विकल चांदनी सोच रही 
क्या कोई प्रणय,कम था 
कहा गया वो कैसा होगा 
या और कोई हमदम था

 चांदनी निकल गई और,पूछा
 क्या मेघदूत को फिरते देखा
 सहस्त्र फूट ऊंचाई पर,जा 
 गरज गरज कर घिरते देखा

 समझ गई चांदनी मेघ की लीला
 जब इस विरह को सहते देखा 
 छोटी वेदना बड़ा था गौरव 
 जब कर्म पथ पर चलते देखा

-ऋचा गिरि
दिल्ली

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