मन्दिर - डॉ० अशोक
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शान्त धूप में भीगता मन्दिर,
जैसे कोई स्वप्निल चित्र।
घंटियों की मधुर स्वरलहरी,
मन को कर देता पवित्र।
अगरबत्ती की मीठी खुशबू,
मन मस्तिष्क को छू जाए।
दीपक की लौ को जलना,
ईश्वर का है प्रेम जो सदा जगाए।
पाषण में भी प्राण है बसते,
हर मूर्ति कुछ कह जाती है।
श्रद्धा की वो मौन प्रार्थना,
मन को अमृत कर जाती है।
नीले गगन के तले में मन्दिर,
शीतलता की है एक सुखद उपहार।
थके हुए राही मासूम को,
यही देती है ज़िन्दगी और खूब प्यार।
सारा सच की बेजोड़ है हिम्मत,
खुशियां पाने को रहते हैं सब तैयार।
इसकी वजह से ही दुनिया में,
मन्दिर मस्जिद में नहीं है तकरार।
सारा सच है एक वजह बस,
नवीन प्रयास है ख़ूब तैयार।
नवीन प्रयास और प्रयोग का संगम,
अब नहीं करना है कोई तकरार।
मन्दिर है एक सुखमय जीवन में,
सबसे खूबसूरत एक उम्दा आगाज़।
हरेक पड़ाव पर इस कारण से,
जिंदगी में खोई हुई खुशियां है अब मिलता,
दुनिया भर को दे रही है आवाज।
डॉ० अशोक, पटना,बिहार।
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