प्यास - संजय वर्मा "दृष्टि
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जल कहता है
इंसान व्यर्थ क्यों ढोलता है मुझे
प्यास लगने पर तभी तो
खोजने लगता है मुझे।
बादलों से छनकर मै
जब बरस जाता
सहेजना ना जानता
इंसान इसलिए तरस जाता।
ये माहौल देख के
नदियाँ रुदन करने लगी
उसका पानी आँसुओं के रूप में
इंसानों की आंखों में भरने लगती।
कैसे कहे मुझे व्यर्थ न बहाओ
जल ही जीवन है
ये बातें इंसानो को कहाँ से
समझाओ।
अब इंसानो करना
इतनी मेहरबानी
जल सेवा कर
प्यास बुझाकर
बन जाना तुम दानी।
संजय वर्मा "दृष्टि
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