महाकुंभ
नीलाम्बर पर पीताम्बर छाया है,
संगम तट पर सनातन छाया है।
चहूँ दिशा से एक ही शोर आया है,
सबकी जुबां पर महाकुंभ छाया है।।
नअर्द्ध कुम्भ, न पूर्ण कुम्भ आया है,
यह महाकुम्भ का महोत्सव आया है।
जमाने भर से भक्तों का सैलाब आया है,
चलो, महाकुम्भ से बुलावा आया है।।
सनातन के संतों में नया जोश आया है,
प्रयाग की चौखट पर जन सैलाब आया है।
मठों और अखाड़ों में नवोत्सव आया है,
चलो, संगम तट से बुलावा आया है।।
धर्म -कर्म का मर्म जानने आया है,
हर कोई आस्था में पाप धोने आया है।
प्राणों की चाह मुक्ति मोक्ष पाने आया हैं,
चलो,त्रिवेणी तट से बुलावा आया है।।
हर मठाधीश धर्म-ध्वजा फहराने आया है,
प्रयाग की सर जमीं पर सर झुकाने आया है।
श्रद्धा, भक्ति, और आस्था का संगम आया है,
चलो, संगम तट से सनातन का बुलावा आया है।।
देश तो देश विदेश में भी आध्यात्म छाया है,
गंगा,अमृत,और शाही स्नान का पर्व आया है।
हर भक्त संगम में डुबकी लगाने आया है,
सारे जहां को प्रयाग का बुलावा आया है।।
गनी खान
अध्यापक ,राउमावि मड़िया (सिरोही)
राजस्थान
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