Sunday, 16 March 2025

अब चर्चा किसलिए - ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'



 अब चर्चा किसलिए 

अब चर्चा किसलिए,
हो चुके उन समझौतों पर।
मैंने ख़ुद ही किए दस्तख़त,
कोरे पन्नों पर।

मैंने जब सुननी चाही 
कुछ और अधिक झनकार।
ऐंठ गए कुछ इतना 
टूटे मन वीणा के तार।

असर पड़े तो पड़ जाने दो,
मेरे छंदों पर।

नज़र झुकाकर चलने वालों 
से न पटी मेरी।
स्वाभिमान के साथ सदा ही 
उम्र कटी मेरी।

मैंने सदा उठाई उँगली,
ग़लत प्रबंधों पर।

किसने देखा पंख धूप के
कौन नोचता है।
कौन सही है कौन ग़लत है
कौन सोचता है।

मत लादो अब इतनी छुरियाँ, 
बिछे परिंदों पर।

ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान' 
 शाहजहाँपुर (उ. प्र.)

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