Monday, 23 December 2024

किताबें - संजय वर्मा "दृष्टि "


 

                                                किताबें 
शब्दों से 
हमसे कुछ ज्ञान पाते रहो
हमें भी अपने घरों में फूलों की तरह 
बस यूँ ही तुम सजाते रहो। 

किताबें बूढी कभी न हो
इश्क की तरह 
ये ख्यालात दुनिया को दिखाते रहो 
कुछ फूल रखे थे 
किताबों में यादों के 
सूखे हुए फूलों से भी महक 
ख्यालो में तुम पाते रहो। 

आँखें हो चली बूढी फिर भी 
मन तो कहता 
पढ़ते रहो 
दिल आज भी जवाँ
किताबों की तरह
पढ़कर दिल को सुकून दिलाते रहो। 

बन जाते किताबों से रिश्ते 
मुलाकातों को तुम ना गिनाया करो
मांग कर ली जाने वाली किताबों को 
पढ़कर तुम लौटाते रहो। 

संजय वर्मा "दृष्टि "
125,शहीद भगतसिंग मार्ग 
मनावर जिला  -धार (म प्र )

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