Monday, 23 December 2024

परंपरा - डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'


परंपरा


परंपरा वर्षो से चली आ रही  रीति है, प्रथा है, परिपाटी है।
हमारी परंपरा की साक्षी, हमारी देश की पावन माटी है।
हमारी परंपराएँ, हमारी पहचान हैं। 
हमारी परंपराएँ, हम भारतीयों  की शान हैं।
जिसने  अपनी संस्कृति को मान दिया, अपनी परंपराएंँ आगे बढ़ाई।  
वही जग में सफल हुआ, उसने ही इज्जत पाई।
सफलता उसके कदम चूमती, जिसने रीति-रिवाजों का पालन किया।
आगे बड़ा वही जग में, जिसने परंपराओं का निर्वाह किया।
माता-पिता के, गुरु के और अपने से बड़ों के चरण छूने की है हमारी परंपरा।
यह परंपरा जिसने निभाई,  खुशियों से रहता था वह भरा।
हमारी परंपरा है, यात्रा पर जाने से पहले खाते हैं हम दही शक्कर।
काम हमारे पूरे हो जाते, हंसते हुए हम लौटते हैं घर।
हमारी परंपरा है, हम पेड़ पौधों की पूजा करते हैं।
पेड़ पौधे ही तो हमें ऑक्सीजन देते,  पर्यावरण की रक्षा करते हैं।
सुहागिन स्त्रियाँ पैरों में बिछिया पहनती हैं।
रक्त संचार सही रहता, सकारात्मक ऊर्जा से भरी रहती हैं।
मंदिर में प्रवेश से पहले, 
हम घंटी बजाते हैं।
वातावरण शुद्ध हो जाता, भक्ति भाव मन में आते हैं।
भारतीय परंपराएँ अद्वितीय हैं, सराहनीय हैं।
हमारी परंपराओं की विशेषताएं और खासियत, अवर्णनीय हैं।
कुछ परंपराएं हमारी लुप्त होती जा रही, उन्हें हमें जीवित रखना होगा।
आने वाली पीढ़ी को,
अपनी परंपराओं का महत्व समझना होगा।
हमारी परंपराएं हमें, हमारी संस्कृति से जोड़ती हैं। नकारात्मक ऊर्जा को हम पर, हावी होने से रोकती हैं।
हमारी परंपराएँ  हमें, गलत राह पर जाने से रोकती हैं।
हमारे परंपराएं ही हमें, खुशियों भरी जिंदगी प्रदान करती हैं।

डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'

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