Monday, 29 April 2024

कुदरत का कहर - तारिक़ रशीद

 


कुदरत का कहर

बाढ़ भूकंप सुनामी सब साथ आते देखा है मैंने
इंसानों पे इस कदर कुदरत का कहर देखा है मैंने
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सांप डंक मारके शर्मिंदा है आज रशीद 
मन में इंसानों के इतना ज़हर देखा है मैंने
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आती थी बच्चों की किलकारियां कभी आँगन से
सियासत में तबाह होते वो घर वो शहर देखा है मैंने
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मस्जिद के कबूतर मंदिर से दाना चुगने को सोचते है 
हवाओं में इस कदर नफरत का ज़हर देखा है मैंने
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सब है व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी के ज्ञान का असर
धर्म की राजनीति में बारूद बनता शहर देखा है मैंने
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कलम छुड़ाके थमा दिए राजनितिक झंडे
गरीबों का मुश्किल से गुजर-बसर देखा है मैंने
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सारा सच आये सामने अब कहा से रशीद 
सत्ता के क़दमों पे नतमस्तक सर देखा है मैंने
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     ©® तारिक़ रशीद

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