विषय: बाढ़
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**आफतों के संग संग ही*- -
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(छंदमुक्त काव्य रचना)
कुदरत का सृष्टि चक्र चलता रहेगा निरंतर,
सुख दुखों की बहारें आती रहेगी बदल बदलकर।
बारिश के मौसम में जब भी आती है पानी की बाढ़,
तभी जगह-जगह पर दिखता है बर्बादी का मंजर।
पानी,पानी के बिना अधूरी है इस सृष्टि की कहानी,
पानी से ही हरी-भरी लहलहाती है ये सृष्टि सारी।
हद से ज्यादा जब हो जाती है बारिश कहीं पे भी,
तब यही बाढ़ सबकुछ ले जाती है छीनकर।
पेड़,पौधे,पशु पक्षी सभी की जरूरत है ये पानी,
पानी ही बना है इस सृष्टि के लिए जैसे कोई संजिवनी।
मगर जब यही बाढ़ बन जाता है आफत तो,
गांव-गांव,शहर-शहर छोड़ जाता है दुखों की निशानी।
बारिश के मौसम में जगह-जगह पर दिखता है बाढ़ का नजारा,
वही बाढ़ का पानी हर तरफ तबाही मचा देता है।
ऐसे कुदरती आफतों से बर्बाद होते है कई संसार,
उसी कुदरत के आगे सभी बन बैठे है यहां पे लाचार।
बाढ़ की तबाही यहां कौन कैसे रोक पायेगा,
कुदरती आफतें ये यहां पर आती जाती ही रहेगी।
बूंद-बूंद पानी का वो अनमोल है सारे जहां के लिए,
पानी बिना इस संसार में सुख समृद्धि की बहार कैसे आयेगी।
कुदरत का सृष्टि चक्र चलता रहेगा निरंतर,
सुख दुखों की बहारें आती रहेगी बदल बदलकर।
पानी से ही जुड़ा है सभी का जीवन यहां पर,
पानी है जीवन,पानी ही समृद्धि और उन्नति,पानी ही आधार।
आफतों के संग संग ही चलना है हमें जीवन में,
आफतों का ये सिलसिला यहीं सृष्टि चक्र की गतिविधियां है।
मुसीबतों के बिना नहीं हर कोई जिंदगी इस संसार में,
और कोई भी मुसीबतें यहां जिंदगी के सामने बड़ी नहीं है - - -
प्रा.गायकवाड विलास.
महाराष्ट्र
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