सुनामी की पीड़ा
खबर पढ़ने बैठे थे बरामदे में ,
लेकिन बारिश की बूंदों से अख़बार तर गया।
नजर पड़ी जब पहले पन्ने पर ,
चाय का प्याला हाथ में ही ठहर गया ।।
पता चला देश का एक कोना ,
आपदा से जूझ रहा है।
शेष देश उस आपदाग्रस्त कोने की
पुकार से गूँज रहा है ।।
समझ ना आया सुनामी की खबरें देखूँ,
या देखूँ उन आँखों की सुनामी को ।
या सुनू विवशता से भरी उन ,
शब्दों की जुबानी को ।।
कितने परिवारों की डोर रही न,
कितने रिश्ते टूट गये ।
कितने लोग बेबस हुए और ,
कितने बच्चें अनाथ छूट गये।।
उन लोगों को देने सांत्वना,
सरकार कोष टटोल रही।
अखबारों की थी लम्बी कतारें पर ,
सारा सच न बोल सकी ।
माना लाखों की धन राशि भी ,
अपनों की कमी न पूरा कर पाई है।
देख उजड़ता आशियाना अपना ,
आँखें पल - पल भर आई है ।।
देखा था सारा सच जिसने ,
प्रकृति के विकराल रूप का ।
हृदय में करुणा - जल भर आता है ।
भूख से व्याकुल बाल -रूप का।।
जन- जन के सहयोग भाव से,
पीड़ितों को सहारा तो मिल सकता है।
डुबती नाव को मंजिल ना सही ,
किनारा तो मिल सकता है।।
तनु सैनी -,राजस्थान
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