मोहब्बत
तुम बिन आधी-अधूरी सी
(छंदमुक्त काव्य रचना)
बिखरे हुए लफ़्ज़ों को जोड़के नज़्म तेरे लिए मैं बनाऊं,
प्यासी निगाहों में तुझे भरके थोड़ा थोड़ा मैं संवर जाऊं।
शृंगार करूं मैं तुम्हारे लिए तुम ही बिंदिया मेरी सजाना,
तुम बिन आधी-अधूरी सी कैसे मैं इस जिंदगी को सजाऊं।
बहती नदियां सी मैं,देखो बह रही हूं पल-पल,
कोमल कलियों सी मैं,देखो झूम यही हूं हर पल।
बिखर न जाऊं कहीं,मन में उठी है तुफानों सी हलचल,
टूटी हूं इंतजार में तेरे और भीगा भीगा है ये आंचल।
उदासियां छाई है मन में,लिए तस्वीर तेरी निगाहों में,
तड़प रही है ये जिंदगी,खड़ी हूं तुम्हारे लिए आंगन में।
आओ मेरे साजन,दुल्हन सी सजी हूं मैं तुम्हारे लिए,
ख्वाब मेरे सजाओ,फूल बनके महक जाऊं मैं जिंदगी में।
कैसे मुस्कुराऊं तुम बिन,रूह भी मेरी मायुसी में डुबी है,
तन्हाई में कटती है रातें,नींदें भी मेरी तुमने छीन ली है।
ज़ख्म दिल के छुपाके,राहें तक रही हूं मैं तुम्हारी,
हंसती हुई ये कली देखो तुम बिन जी रही है अधूरी।
तुम्हें देखने के लिए ही,कबसे तरस रही है ये निगाहें,
सुनी-सुनी जिंदगी में अब बहार बनके तुम आ जाओ।
तुम्हारे बिना पल-पल लग रहा है जैसे बरसों जैसा,
बहारें भी खिल उठी है,अब तो मांग मेरी तुम सजाओं।
बिखरे हुए लफ़्ज़ों को जोड़के,नज़्म तेरे लिए मैं बनाऊं,
प्यासी निगाहों में तुझे भरके थोड़ा थोड़ा मैं संवर जाऊं।
तुम ही मेरी चाहत,तुम ही मेरी आरजू और क्या मांगू मैं,
तुम बिन आधी-अधूरी सी,कैसे मैं इस जिंदगी को सजाऊं - - -
प्रा. गायकवाड विलास
महाराष्ट्र
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