बंद
हड़ताल से धरने तक का,
सफ़र आसां नहीं होता ।
कुछ तो समझिए हुजूर,
बेवजह कभी बंद नहीं होता ।।
बिल से कानून बनने का,
सफ़र आसां नहीं होता ।
कुछ तो खामियाँ रही है ज़नाब,
वरना बेवजह कभी बंद नहीं होता ।।
प्रदर्शन से चक्का जाम तक का,
सफ़र आसां नहीं होता ।
सावधानी तो हटी होगी दोस्तों,
वरना इतना बड़ा हादसा नहीं होता।।
दिल के दर्द का अश्कों में बहने का,
चिर कलेजा,दर्द का लबों पर आने का,
सफ़र आसां नहीं होता ।
कुछ तो टूटे होंगे दिल ज़नाब वरना,
वरना बेवजह कभी बंद नहीं होता ।।
घर से निकलकर फिर वापसी का,
सफ़र आसां नहीं होता ।
राहे ज़िन्दगी में कुछ खोकर तलाशने का,
सफ़र आसां नहीं होता ।
कुछ तो टूटी होगी इनकी भी उम्मीदें,
वरना आम आदमी कभी सड़कों पर नहीं होता।
जरा फिर से सोचो तो,बेवजह कभी बंद नहीं होता।।
गनी खान
मुड़तरा सिली(जालोर)
राजस्थान
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