कविता शीर्षक- श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा
राम बसे हैं जन-जन के,
उर में, अति जन-जन हर्षित हैं।
सीताराम जपें प्राणी सब,
ये अराध्य, सब गर्वित हैं।।
रामायण घर-घर में गाते,
चर्चा करते आपस में।
भाई राम जैसा न कोई,
रहते इक-दूजे के वश में।।
पावन, पुण्य, पुनीत अयोध्या,
सरयू जिस तट बहती है।
देती शीतल, सुखद लहर है,
आओ! सबसे कहती है।।
नारायण हैं राम जानकी,
नारायणी सीता मैया।
भरत, लखन, रिपुसूदन भाई,
ट्रेन सभी इनके पैंया।।
मातु-पिता, गुरु, बड़ों को मानो,
प्रेम सहित सब सन्मानो।
भाई-भाई, बहुओं में प्रेम हो,
राम राज्य ये तब मानो।।
राम आयेंगे फिर घर में अब,
काट के फिर वनवास अभय।
होगी प्राण-प्रतिष्ठा इनकी,
नृत्य-गीत संग गूँजे लय।।
आज अभीप्सा पूरी होगी,
राम भ्रात सिय संग आयें।
हर्षित, उल्लासित प्रकृति है,
जन-जन मधुर गीत गायें।।
जगह-जगह जन-जन जानी है,
जन-जन की वाणी लहरायी।
जन-जन में उल्लास अनोखा,
ध्वजा-पताका जिन फहरायी।।
सरयू की गति सी है देश में,
लहर बढ़ी भक्ती की आज।
हुआ राममय देश हमारा,
भीड़ अयोध्या लायी साज।।
चमक उठे आनन सबके हैं,
आनन पर रवि किरणें हैं।
है रविवंश राम स्थापन,
ये, सच्चे जीवन के गहने हैं।।
रचना-
जुगल किशोर त्रिपाठी
बम्हौरी, मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)
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