Sunday, 5 November 2023

दो कौड़ी में बिक रहा है आज का पत्रकार - रशीद अकेला

 

दो कौड़ी में बिक रहा है आज का पत्रकार

 देश में छा रहा अंधकार
 दो कौड़ी में बिक रहा
 आज का पत्रकार।।1।।

 स्वतंत्र नहीं खुद आज
 दबा रहा स्वतंत्र विचार
 दो कौड़ी में बिक रहा
 आज का पत्रकार।।2।।

 आएगी अब कहां से देश में
 गुलशन-ए- बहार
 कर रहा नफरतों का व्यापार
 कर रहा नफरतों का प्रचार
 दो कौड़ी में बिक रहा
आज का पत्रकार।।3।।

 चौथे स्तंभ का रूप
 देखा ऐसा अब की बार
 इंसानियत हो गई है
 आज शर्मसार
 दो कौड़ी में बिक रहा
आज का पत्रकार।।4।।

 नहीं आएगा सामने लोगों पर
 किया अत्याचार
 अब की बार
 देशभक्त भी बन जाएंगे
 देशद्रोही इस बार
 दो कौड़ी में बिक रहा
आज का पत्रकार।।5।।

 विकास और रोजगार की बात
 नहीं होगी इस बार
 भटकाने के मुद्दे पड़े हैं
 बेशुमार अब की बार
 दो कौड़ी में बिक रहा
 आज का पत्रकार।।6।।

 खो रहा लोकतांत्रिक विचार
 छीन रहा मौलिक अधिकार क्योंकि
 दो कौड़ी में बिक रहा
आज का पत्रकार।।7।।

 रशीद अकेला


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