Wednesday, 1 November 2023

अंतराष्ट्रीय साहित्यिक मित्र मंडल - डॉ मंजू महेश




अंतराष्ट्रीय साहित्यिक मित्र मंडल

बिन सुने सामने से गुजर जाता है आदमी
न जाने कैसे ये नजर आता है आदमी
न किसी के मन में न प्यार न सहानुभूति
बस अपनी ही दुनिया में रह जाता है आदमी।

बिन सुने सामने से गुजर जाता है आदमी
न जाने क्यों न कुछ समझ पाता है आदमी
अपनों की दुनिया में न
 दूसरों को समझ पाता है आदमी ।

बिन सुने सामने से गुजर जाता है आदमी
अपने से मतलब रख कर रह जाता है आदमी
स्वार्थ भावना से जी जाता है आदमी
न जाने क्यों ऐसे कर जाता है आदमी।

बिन सुने सामने से गुजर जाता है आदमी
न किसी की लाज रखता है आदमी
अपनी जीवन की दौड़ा दौड़ी में
सब कुछ भूल जाता है आदमी।

बिन सुने सामने से गुजर जाता है आदमी
रोज़ की तरह जीवन गुजारता है आदमी
अपनों से सिवाए किसी और को 
न जाने क्यों न समझ पाता है आदमी ।

बिन सुने सामने से गुजर जाता है आदमी
जीवन की दौड़ा दौड़ी में 
अंत में खुद को भी न जाने
क्यों न समझ पाता है आदमी ।

बिन सुने सामने से गुजर जाता है आदमी
फिर भी न किसी की तकलीफों को
न समझ पाता है आदमी
यूं ही स्वार्थ बन जाता है आदमी।
बिन सुने सामने से गुजर जाता है आदमी।

                              डॉ मंजू महेश
                              केरल


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