सत्य की विजय का त्यौहार है- दशहरा
दशहरे का त्यौहार असत्य पर सत्य की तथा अधर्म पर धर्म की विजय का संदेश देता है। दशहरे का त्योहार देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। प्रभु श्री राम की विजय अथवा मां दुर्गा की पूजा के रूप में दोनों ही रूपों में दशहरा शक्ति पूजा का पर्व है तथा शस्त्र पूजन की तिथि है।
दशहरा उत्सव की उत्पत्ति के विषय में अनेक मान्यताएं एवं अवधारणाएं प्रचलित है जिससे हमारी धार्मिक भावना जुड़ी हुई है। दशहरा मुख्य रूप से दुर्गा पूजा और रामलीला के ही रूप में प्रतिष्ठित त्यौहार है। दशहरे के दिन प्रभु श्री राम ने
अधर्मी रावण एवं मां दुर्गा ने अत्याचारी राक्षस महिषासुर का वध करके समाज को उनके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी ।
इस विजय के प्रतीक स्वरूप ही इस दशमी को विजयादशमी कहा जाता है।
दशहरे के दिन क्षत्रियो द्वारा अपने हथियारों की पूजा भी की जाती है। अस्त्र-शस्त्र शक्ति के प्रतीक हैं इसी कारण इस दिन शक्ति की पूजा होती है। दशहरे के दिन बुराई के प्रतीक रावण, कुंभकरण एवं मेघनाथ के पुतलो का दहन किया जाता है और पुतले जलाकर लोग बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश दोहराते हैं। विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमाओं के विसर्जन का कार्यक्रम भी होता है।
कुल मिलाकर दशहरा भक्ति और समर्पण का त्यौहार है जिसमें श्रद्धा भक्ति और उमंग की त्रिवेणी देखने को मिलती
है। दशहरे का त्यौहार हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की पहचान है। दशहरा शक्ति की भक्ति एवं प्रभु श्री राम के आदर्शों को निरूपित करने वाला तथा हमारी सात्विक श्रद्धा भावना का संजीवन होकर असत्य पर सत्य की विजय का संदेश देता है। दशहरे का पर्व हमें संदेश देता है कि हम प्रभु श्री राम के जीवन चरित्र एवं मां शक्ति की भक्ति में डूब कर जीवन का आनंद प्राप्त करें और जीवन को सार्थक बनाएं ।
प्रवीण शर्म
MP
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