दशहरा
यह नवीन त्योहार है,
पाप पर पुण्य की विजय शंखनाद से,
सजा-धजा उन्नत आभार है।
यह दुनिया को एक,
खूबसूरत सीख देती है।
पूज्य श्री राम की जयकारे से,
पृथ्वी गुंजती हुईं सनातनी समाज में,
नवीन आकृति में खूबसूरत अन्दाज में,
आनन्द और प्रसन्नता,
भरपूर भरकर आगे बढ़ने में,
मजबूत गति से चलने में,
दिक्कत बिल्कुल नहीं होने देती है।
नवरात्र में मां दुर्गा के,
नौ रूपों में सजी-धजी मां की,
पूजा अर्चना के बाद,
यह दशहरा पर्व देती है।
रावण संग कुम्भकरन और मेघनाद को,
भरी महफ़िल में सज़ा देने की,
उत्सव सी समारोह में तैयारी करकर,
भरीं महफ़िल में सजा दी जाती है।
दशहरा पर्व ग़लत काम का,
एक उदाहरण माना जाता है।
दुष्ट आत्मा को सही दिशा में,
सज़ा देने की एक अदालत में,
खड़ी कर सजा देने का,
एक बड़ा खेल किया जाता है।
यह दुनिया को एक सीख देने वाली,
सबसे खुबसूरत त्योहार है।
दुर्जन आत्मा को एक सटीक चोट करते हुए,
गुणवत्ता और प्रतिबद्धता को स्वीकार कर,
आगे बढ़ने का देता संस्कार है।
उत्साहित मन से,
लोग झुण्ड में भीड़भाड़ बनाकर जमा होते हैं।
सज़ा देने वाली ताक़त बनकर,
सबमें मधुर संगीत में,
दुर्जन नहीं बनने की,
भीड़ में उन्नत सलाह देते हैं।
यहां पर सांस्कृतिक विरासत को,
बचाकर मजबूती से अक्षुण्ण बनाए रखने की,
महत्वपूर्ण सीख दी जाती है।
पराई स्त्री की अस्मिता पर प्रहार करने वाले को,
एक सटीक ज्ञानदर्शन करवाते हुए,
इन कुत्सित मानसिकता से,
बचें रहने की रीति से अवगत कराने की,
भरपूर कोशिश की जाती है।
दशहरा पर्व एक विचारणीय प्रश्न,
को जन्म देती है
उत्तम व्यवहार और आचरण से,
महान् बनने की जरूरत बताते हुए,
शिष्ट और विनयशीलता में,
रहने की सीख देने वाली ताकत बनकर,
सबके करीब खड़ी हो,
नवीन जोश और उत्साह से,
मन को आनंदित कर,
खुशियां और सुकून भरी नींद रेती देती है ।
डॉ० अशोक, पटना, बिहार
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