पत्नी
सुख दुःख में साथ निभाती पत्नी।
घर को स्वर्ग बनाती पत्नी।
पति - पत्नी का रिश्ता, होता बड़ा मनमोहक।
एक दूजे से प्यार करें वे, होते एक दूजे के पूरक।
शादी कर ससुराल जब एक कन्या आती।
पत्नी बन खुले दिल से सबको वह अपनाती।
भार्या, परिणीता, कांता, जोरू अनेक नामों से जानी जाती।
सहचरी, जीवन संगिनी, अर्धांगिनी भी कहलाती।
कार्य में मंत्री बने, माँ की तरह भोजन कराये।
धरित्री की तरह क्षमाशील हो, धर्म में सानुकूल हो आदि कुछ गुण पत्नी के हैं बताए।
पत्नी, पति की हिम्मत है होती।
पत्नी, पति की ताकत बनती।
पत्नी बिन पति का जीवन अधूरा।
पत्नी करती हर कमी को पूरा।
पत्नी का दूसरा नाम है समर्पण।
पति के सम्मुख पत्नी, करती है खुद को अर्पण।
पति उसका सर्वस्व होता, पति पर वारी जाती।
पति के सुख की खातिर,
हर संभव प्रयास कर जाती।
पति की आयु हेतु,
निर्जला व्रत करती।
सुहाग सदा बना रहे,
ईश्वर से प्रार्थना करती।
सावित्री भी पत्नी थीं,
यमराज से पति को वापस लाईं।
पत्नी सीता प्रभु राम के संग,
चौदह वर्ष वन में बिताईं।
उर्मिला ने पत्नी धर्म निभाया,
चौदह वर्ष रहीं पति से दूर।
तभी लक्ष्मण कर पाये, भाई - भाभी की सेवा भरपूर।
पति शिव जी का अपमान, सह नहीं पाईं माँ सती।
खुद को अग्नि को किया समर्पित।
पति - पत्नी का रिश्ता होता है अति सुंदर, विलक्षण और अद्भुत।
पत्नी विनयशील होती, दया भाव वह दिखलाती।
पति पर कोई आंच आए, वर्दाश्त नहीं वह कर पाती।
कहते हैं, पत्नी की पहचान गरीबी में है होती।
पर वह पत्नी ही होती है जो गरीबी में भी हौसला नहीं खोती।
आसान नहीं होता, नये परिवार, नये लोगों से रिश्ता बनाना।
पत्नी ऐसा कर सकती है, जानता है जमाना।
डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'
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