Sunday, 5 November 2023

डर - प्रीति एम

 

डर

संभावित अनिष्ट की आशंका जिसे रोका या नियंत्रित नहीं किया जा सकता हो, डर या भय कहलाता है| ‘डर’ व्यक्ति विशेष के लिए अलग होता है| यानी, हर व्यक्ति के डर का अपना कारण होता है और उसकी अपनी रूप-रेखा होती है| डर की उत्पत्ति के पीछे प्राणी की ‘मोह’, ‘ममता’ के साथ ‘प्रेम’ का हाथ होता है| फिर चाहे वह व्यक्ति विशेष हो, वस्तु विशेष हो, भविष्य विशेष हो या जीवन विशेष हो| तुलसीदास जी ने भी कहा है कि ‘भय बिनु होय न प्रीति’| 
अगर गहराई से देखा जाए तो पूरी दुनिया डर से ही संचालित होती है| राजा से रंक तक, सभी को कहीं-न-कहीं, कोई-न-कोई डर तो अवश्य सता रहा होता है| स्वाभाविक है कि अपने हानि-लाभ को ध्यान में रखकर ही सबका डर अलग होता है| अगर हम कभी अपने भविष्य की रूपरेखा तैयार करते हैं तो हम अनजाने में ही भयग्रस्त होते रहते हैं| फिर भी अगर सबसे बड़े डर की बात करें तो सबके मन में मृत्यु का विचार तो अवश्य ही आएगा|
बड़े-बड़े विचारकों और कविगणों ने डर पर काबू पाने के कई उपाय बताए हैं| भय और ज्ञान के संबंधों पर प्राचीनकाल से ही हमारे विचारकों ने पर्याप्त विचार-विमर्श और चिंतन किया है। हमारी ज्ञान परंपरा में भी इस बात के तमाम प्रमाण हैं कि हर तरह के भय के विरुद्ध हमारा ज्ञान हमारा प्रमुख हथियार है। इसे समझने के लिये हम आत्मा का उदाहरण ले सकते हैं। एक अर्थ में, आत्मा की संकल्पना दरअसल मृत्यु के भय को कम करने का ही एक सफल उपाय है। मृत्यु से हम सभी परिचित हैं, जानते हैं कि शरीर का अंत तय है। ऐसे में हमारी आत्मा के अमर होने का ज्ञान हमें मृत्यु के भय से राहत देता है। हमने आत्मा को मुख्य रूप से वही सहूलियतें दे रखी हैं, जिनकी हम अपने डर को भगाने के लिये कल्पना या इच्छा करते हैं। उदाहरण के लिए उसका अजर होना, अमर होना, आग से न जलना, पानी से गिला न होनाहवा से न सूखना या ऐसे ही तमाम गुण।
और इसी भय से मुक्त होकर हमें जीवन जीना चाहिए| रवींद्रनाथ टैगोर ने भी लिखा है, ‘मृत्यु तो अटल सत्य है| जब आएगी, तब आएगी| उसके डर से रोज़ नहीं मरना चाहिए|’ टी. वी. पर यह प्रचार किसने नहीं देखा कि ‘डर के आगे जीत है|’ डर को हराए बिना कब और कहाँ कोई जीता है, जीतता है?

प्रीति एम
बैंगलोर

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