Wednesday, 1 November 2023

स्वयं के अंदर बैठे रावण का भी दहन जरुरी है - डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव

 























डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव

*स्वयं के अंदर बैठे रावण का भी दहन जरुरी है*
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द्वापर त्रेता सतयुग बीता,कलयुग भी यह बीतेगा।
निज रावण को भी मारो,तब ये कलयुग बीतेगा।।

काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह,और यह अत्याचार।
अनाचार, दुराचार, व्यभिचार और यह अहंकार।।

इन्हीं दसों दुर्गुण के नाते,कहते हम उसे दशानन।
वैसे तो थी सोने की लंका,व सोने का सिंहासन।।

रावण महाबली राजा था,और शिवभक्त प्रतापी।
अपनी करनी का फल भोगा,पाया वह संतापी।।

श्रीराम से युद्ध कर,बली रावण ने सब खोया है।
भाई,भतीजा,पुत्र सभी को, तो उसने खोया है।।

श्रीराम के तीर के आगे,चली नहीं है कोई चाल।
लगी तीर नाभि में जब,रावण गिरा हो निढाल।।

छल, बल, अस्त्र, शस्त्र, पराक्रम, सब धरासाई।
गिर पड़ा धड़ाम से रावण,मृत्यु सामने है आई।।

राम कहे भाई लक्ष्मण से,जा रावण से लो ज्ञान।
विद्वान रावण से मृत्युपूर्व,इन्होंने लिया है ज्ञान।।

अंत समय रावण के मुँह से,निकला जयश्रीराम।
बोला जीवन धन्य होगया, मैं मरा हाथ श्रीराम।।

रावण को मार उसका,उद्धार किए प्रभु श्रीराम।
बहुतों का उद्धार किए हैं,ये सीतापति श्रीराम।।

अधर्म पर धर्म की जीत का, पर्व मनाते हैं यह।
विजयादशमी या दशहरा पर्व कहलाए है यह।।

सत्य,धर्म व अच्छाई का,मार्ग सदा सुंदर होता।
असत्य,अधर्म,बुराई की राह, ही रावण होता।।

खुद के रावण को मारें, श्रीराम बन संघार करें।
सत्य,धर्म की राह चलके,बुराई उपसंघार करें।।

हर वर्ष रावण के पुतले,ज्यों मारें खुशी मनाएं।
उसी तरह अधर्म,असत्य,बुराई भी दूर भगाएं।।

मन का रावण जिंदा है, उसे मारें खुशी मनाएं।
कलयुग के इस काल को,बदलें सतयुग लाएं।।

*डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव*
सेवानिवृत वरिष्ठ प्रवक्ता-पी.बी.कालेज,प्रतापगढ़,उ.प्र


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