Saturday, 25 November 2023

महापर्व - डॉ० अशोक

 























महापर्व

यह आस्था का स्वर है,
हमें संभालता मगर है।
पवित्रता की शान है,
खुशियां यहां महान् है।

यह उमड़ती सागर है,
मधुर गुंजन यहां से,
सुनाईं देती है सदैव,
इस कारण सबमें यह,
प्रीत की बातें करते हैं,
बन जाता गागर है।

सूर्योदय की है रहतीं हैं,
सबको यहां प्रतीक्षा।
नहीं कम होता है लोगों को,
श्रद्धा सुमन अर्पित करने की,
मन में समाहित इच्छा।

अनबन हो या तकलीफ़,
सबमें मधुर संगीत जैसी,
फूटती दिखता संदीप।
यहां गीत ही मंत्र है,
सबसे खूबसूरत उपहार मानते हैं लोग,
सब रहते स्वतन्त्र हैं।

गीतों के जरिए लोगों की,
मंगलकामनाएं की जाती है।
श्रद्धा सुमन अर्पित करने में,
सबके मन को यह पर्व आनंदित व,
खुशियां भरकर मन मन्दिर को,
हमेशा हर्षित कर जाती है।

सूर्योदय की सबको यहां,
रहता है मन से प्रतीक्षा।
मन मन्दिर में संजोकर,
सब रखतें हैं ये इच्छा।

यहां आस्था का स्वर दिखता है,
पवित्र भाव में सब लोग कहते हैं,
यही जिंदगी का रहस्य और,
सबसे खूबसूरत रिश्ता है।

डॉ० अशोक, पटना, बिहार

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