Wednesday, 1 November 2023

कब तक जलाओगे तुम - प्रा. गायकवाड विलास

 























सारा सच प्रतियोगिता के लिए रचना
**विषय: रावण**

**कब तक जलाओगे तुम*- - 
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    (छंदमुक्त काव्य रचना)

कब तक जलाओगे तुम ऐसे ही रावण के पुतले,
अमन और शांति के लिए कब तक करोगे तुम ये खेल निराले।
बीत गई सदियां फिर भी बदली नहीं तुम्हारी वो ख़ुद की नीतियां,
उसी नीतियों में बैठा रावण यही इस संसार की कहानियां।

ख़ुद के दुर्गुणों पे डालकर पर्दा सभी दिखाते है यहां अपनी अच्छाई,
चेहरे इन्सानों के दिखते है मगर मन के अंदर छिपी है बुराई।
अगर हर इंसान यहां अच्छा है तो,फिर क्युं जल रहा है ये चमन,
सिर्फ त्योहार मनाने से कैसे खत्म हो जायेंगे इस संसार में फैले दुर्गण।

गर जलाना ही है तो खुद के अंदर की बुरी नीतियां जलाओ,
समता,मानवता और प्रेम-भाव सभी दिलों के अंदर तुम जगाओ।
अच्छाई और बुराई सदियों से यहां चली आ रही है,
उसी बुराईयों को जलाकर,आपस में तुम बंधुभाव बढ़ाओ।

त्योहारों की कोई भी कमी नहीं है हमारे इस हरे-भरे संसार में,
उसी त्योहारों महत्त्व अब इस संसार में इक औपचारिकता बन गई है।
अब तुम ही बताओ कौन रावण और कौन राम बैठा है घर-घर में,
ख़ुद के अंदर ही है ढ़ेर सारी बुराईयां और रावण के पुतले हम यहां जलाते है।

ऐसे ही तुम एक-दुसरों को नफरत की निगाहों से देखेंगे तो,
शांति और अमन का ख्वाब तुम सदियों तक देखते ही रहोगे।
फिर चाहे तुम कितने ही बदल जाओ,ये हालात नहीं बदलेंगे,
हम खुद ही जिम्मेदार है तो यहां शांति और अमन के फ़ूल केसे खिलेंगे?

कब तक जलाओगे तुम ऐसे ही रावण के पुतले,
अमन और शांति के लिए आज रावण को जलाने की जरुरत क्या है।
आज इन्सान ही बन बैठे है इस कलयुग में रावण,
और हम उसी रावण को बार-बार जलाकर ख़ुदको ही अच्छा समझते है - - - ख़ुदको अच्छा समझते है।

प्रा. गायकवाड विलास.
मिलिंद महाविद्यालय लातूर.
      महाराष्ट्र
 

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