Saturday, 25 November 2023

संतान -सुख - अनन्तराम चौबे अनन्त

 

राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य मंच हमारी वाणी की साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु
विषय... संतान/ सुख

नाम.. अनन्तराम चौबे अनन्त जबलपुर म प्र
कविता...

   संतान /सुख 

संतान को जन्म दिया है
सबसे सुन्दर वो मां है ।
मां की ममता मत पूछो
ममता की वो मूरत  है ।

मां ही उडोना मां ही बिछौना
जब मां की कोख में होता है ।
सारा सच मां खाना जो खाये  ।
वो ही संतान को मिलता ।

कुदरत का ये खेल निराला
मां की कोख का घर निराला ।
नौ माह का सुन्दर सपना ।
पल पल मां ने वो संभाला  ।

क्या क्या कष्ट वो सहती है
फिर भी वो खुश रहती है ।
मां बनने के सुख के खातिर
अपने दुख को भूल जाती है ।

बेटा हो या बेटी हो बस
अपनी संतान समझती है ।
भ्रूण हत्या जैसा घृणित
कार्य कभी नही करती है ।

मां बनने के सपने को
हर पल सोचती रहती है ।
कितने सुन्दर सपने प्यारे
संतान को देखती रहती है ।

ऐसी मां के सपनो को
संतान  होने से पूरे होते हैं ।
सारा सच जिस मां ने जन्म दिया
उस मां के आंचल में पलते है ।

संतान पैदा होते ही
मां.. मां कहकर रोता है ।
कभी हंसता है कभी रोता है
मां की ममता से बड़ा होता है ।

मां तो जैसे संतान सुख पर
अपनी जान छिड़कती हैं ।
सारा सच बच्चे के रोने पर 
तड़पकर प्यार करती है ।

गले से लगाकर अपने
आंचल का दूध पिलाती है ।
अपने आंचल में संजोती है
सहलाती है पुचकारती है ।

मां की ममता को पा करके
बच्चा कुछ कुछ बड़ा होता है ।
कभी पेट के बल चलता है
कभी हाथों के बल बैठता है ।

घुटनों के बल भी चलता है 
खड़े होने की कोशिश करता है।
गिरता है संभलता है उठता है
चोट लगने पर रोता भी है ।

मां की ममता का पल पल
ही बच्चे के साथ में होता है ।
मां का प्यार दुलार पाकर ही
खुश होने पर हंसता भी है ।

मां अपनी ममता से सींचती 
कदम कदम पर संभालती है ।
खेलते हुए जब थक जाता है
बच्चे का स्वमं मालिश करती है ।

बच्चे के दुख से दुखी होकर
आंचल का दूध  पिलाती है ।
दुखी होकर छटपटाती है 
दर्द से दिल से तड़पती है ।

ऊंगली पकड़ चलना सिखाती
गिरता है उठता है संभलता है ।
चोट लगती है जोर जोर रोता है
और दर्द मां को दिल में होता है ।

बच्चे तो मां की संतान है
बचपन में खिलौनों से खिलाती ।
सारा सच मां तो मां ही होती है
बच्चों का खिलौना बन जाती है ।

    अनन्तराम चौबे अनन्त
     जबलपुर म प्र 

आस्था और श्रद्धा का पर्व छठ पूजा - मणि बेन द्विवेदी



आस्था और श्रद्धा का पर्व छठ पूजा

हमारा देश भारत पर्वों और त्योहारों का देश कहलाता है।
हम अपनी प्राचीन परम्परा को अपनाने में विश्वास रखते हैं।
रीत रिवाजों से अथाह प्रेम लगाव  रहता है हर व्यक्ति को।
हमारी परम्परा हमारी ऋषियों की देन है,  हम गर्व करते हैं अपनी प्राचीन परंपरा पर।
इसी प्रकार पर्व और त्योहारों की श्रृंखला के अन्तर्गत आस्था और  सूर्य उपासना का महा पर्व छठ पूजा जो कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।
यह पर्व पूर्वी उत्तर प्रदेश , बिहार में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
छठ पर्व की शोभा अद्भुत होती है।बड़े ही हर्षोल्लास के साथ बड़े बुजुर्ग बच्चे पुरुष और महिलाएं इसमें शामिल होते हैं।
घर के पुरुष ही अपने सर पर (दौरा डाला)  उठा कर छठ घाट तक ले जाते हैं।
परंतु आज छठ पूजा ना केवल भारत के कोने कोने में मनाई जाती है अपितु विदेशों में भी धूमधाम से ये पर्व मनाया जा रहा है। कुछ जगह दूसरे समुदाय के लोग भी खुशी खुशी मनाते देखे गए हैं।

छठ पूजा का चार दिवसीय पर्व संतान की खुशहाली, उत्तम स्वास्थ्य और सुखी जीवन की कामना के लिए किया जाता है।
यह अनुपम।व्रत सूर्योपासना का अद्भुत त्यौहार है 
यह अकेला ऐसा पर्व है जिसमें हम अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दें कर छठ माता  का पूजन करते है।
मान्यता यह भी है कि सूर्य देव की दो पत्नियां है।
उषा और प्रत्यूषा उगते सूर्य की भोर की किरण उषा है
और  सांझ की प्रत्यूषा इस प्रकार सूर्य की दोनों पत्नियों की पूजा आराधना किया जाता  हैं।
ब्रह्मा की मानस पुत्री जो षष्ठी थी इसलिए ये व्रत छठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ , इसलिए  छठी माँ का पूजन किया जाता है।

कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से प्रारंभ हो कर सप्तमी की भोर के अर्घ्य के साथ ही इस व्रत का समापन होता है।

साथ ही इस व्रत को महिलाएं और पुरुष दोनों ही करते हैं।
बड़े ही धूमधाम, नेम, साफ सफाई और श्रद्धा के साथ छठ माता का पूजन होता  है।इसलिए इसे कठिन व्रत के नाम से भी जाना जाता है।

यह व्रत श्रद्धा आस्था और प्रकृति को समर्पित है।
संतान प्राप्ति का वर सूर्यदेव से मांगते हैं वहीं जल में खड़ी व्रती स्त्रियां अपने लगन और शक्ति  का परिचय देती हैं।
भोर की लाली दिखते ही भोर का अर्घ्य  उगते हुए सूर्य देव को समर्पित किया जाता है।
बड़ा ही महत्व होता है छठ पूजा का कहते हैं कई करोड़ यज्ञों का फल एक छठ व्रत करने से मिलता है।
गीत नाद बाजे गाजे के साथ अद्भुत छंटा बिखेरती मन को मोहित करने वाला अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है घाटों पर।

छठ पूजा वर्ष में दो बार मनाया जाता है ।पहला कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी को और दूसरा चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी को।
विधि विधान दोनों का एक ही है।
परंतु तुलनात्मक रूप में कार्तिक माह के छठ को ही अधिक प्रसिद्धि मिली है।
अतः कई घरों में केवल एक ही यानी कार्तिक छठ की पूजा ही होती है।
कुछ लोग चैत्र और कार्तिक दोनों ही छठ को मनाते हैं।।


हमारे देश के  हर पर्व त्यौहार  की यह मान्यता है कि वो कहीं ना कहीं पौराणिक मान्यताओं से जुड़े हुए है।
अतः छठ के विषय में भी कुछ ऐसा ही है !
इस व्रत कि पौराणिक कथा कुछ  इस प्रकार है___


 मान्यता है कि राम के राज्याभिषेक के बाद रामराज्य की स्थापना का संकल्प ले कर राम और सीता जी ने कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को उपवास रख कर प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना की थी और सप्तमी को सूर्योदय के समय अपना अनुष्ठान पूर्ण करके प्रभु से रामराज्य की स्थापना का आशीर्वाद प्राप्त किया था  तभी से छठ पर्व लोकप्रिय हुआ।


चार दिवसीय अनुष्ठान से शुरू होता है ये पावन पर्व
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कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू हो कर यह पर्व कार्तिक सप्तमी को भोर का अर्घ्य दे कर  समाप्त होता है।

"नहाए खाय "

यह रस्म जब व्रती किसी पवित्र सरोवर नदी या फिर घर में ही स्नान करके व्रत का संकल्प लेती है और खाने में कद्दू लौकी की सब्जी और अरवा चावल का भात बिल्कुल पवित्रता से चूल्हे पर बना कर खाया जाता है।

 खरणा____

उसके पश्चात दूसरे दिन खरणा का रस्म होता है जिसमें व्रत करने वाली महिला सारा दिन उपवास रह कर शाम को रोटी और खीर बनाती है जिसे माँ छठ को भोग लगा कर खुद भी व्रती खाती है और सारे लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं।
खरना का खीर अद्भुत स्वाद लिए होता है मां छठ की कृपा बरसती हैं प्रसाद में।
खरना का प्रसाद अति स्वादिष्ट होता है।

उसके पश्चात तीसरे दिन निर्जला व्रत रह कर शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है।
और फिर पुनः भोर का अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण होता है।
इस प्रकार चार दिवसीय भव्य अनुष्ठान के साथ छठ व्रत का समापन होता है।
माँ छठ और सूर्यदेव की कृपा सभी पर बनी रहे।🙏🙏


मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश


सुखों की छाया - प्रा. गायकवाड विलास


 




















सारा सच प्रतियोगिता के लिए रचना
**विषय:सुख**
   *****:*****

**सुखों की छाया*
   ***** ** *****
(छंदमुक्त काव्य रचना)

क्या खोया और क्या पाया छोड़ दो तुम,
इस संसार में सब है यहां झूठ और पराया।
धन-दौलत,लालच और मोह-माया की आशा,
इसी की वजह से खत्म होती है वो सुखों की छाया।

धन-दौलत को देखकर अपने भी यहां,
पलभर में ही रंग अपना बदल देते है।
फिर यहां कौन अपना और कौन पराया?
इसी बात को आज तक कौन है यहां समझ पाया।

कभी कुछ खोना है,कभी कुछ पाना है,
कभी हंसना है,कभी यहां सबको रोना है।
ढलेगी रात अंधेरी,आयेगी रोशनी सुनहरी,
ऐसे ही हमें यहां जिंदगी को सजाना है।

खोने के ग़म में तुम सुखों को नज़र अंदाज़ न करना,
जिंदगी के राहों पर होता नहीं सच यहां हर कोई सपना।
सभी के आंगन में यहां होती है सुख दुखों की छांव,
जो मिला है,जितना भी मिला है,वही है इस जीवन में अपना।


कभी होती है पतझड़,कभी आती है बहारें,
जिंदगी के इसी रंगों को समझकर चलना है प्यारे।
जब तक चलती सांसें जी लो जिंदगी सदाबहार,
खोना और पाना यही है गीता का सार ।

कुछ खोया तो भी ग़म न कर जिंदगी में,
कुछ पाया तो घमंड़ न कर अपनी जीत पर।
अच्छे कर्म और नीतियां यही रहेगी संसार में,
कोई भरोसा नहीं सांसों का इस नश्वर जीवन में।

क्या खोया और क्या पाया छोड़ दो तुम,
इस संसार में सब है यहां झूठ और पराया।
धन-दौलत,लालच और मोह-माया की आशा,
इसी की वजह से खत्म होती है वो सुखों की छाया।

प्रा.गायकवाड विलास.
      महाराष्ट्र

कार्तिक - डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'



 कार्तिक

कार्तिक मास की महिमा, 
बताते हमारे वेद पुराण। 
हमारे बुजुर्ग भी करते, कार्तिक मास का गुणगान। 
कार्तिक मास बड़ा पावन, 
करते हम हम पूजन, अर्चन।
तारकासुर को मिला था वरदान। 
शिव पुत्र के अलावा कोई, ले नहीं सकता उसकी जान। 
शिव सुत भगवान कार्तिकेय
ने तारकासुर का संहार किया। 
इसलिए इस मास का नाम कार्तिक मास पड़ गया। 
कार्तिक मास में दिवाली के दिन, माता यशोदा ने कान्हा को उखल से बांध दिया।
कान्हा का उदर  (पेट) दाम (रस्सी) से बंध गया, कार्तिक मास का नाम दामोदर मास पड़ गया।
कार्तिक मास में भगवान विष्णु, नारायण रूप में करते हैं जल में निवास। 
जो पूरे मास सूर्योदय से पहले स्नान करता, उसके पूरे होते आस। 
कार्तिक मास में जो करते हैं
अन्न दान। 
पाप उसके कटते हैं, उसे होता पुण्य प्रदान। 
कार्तिक मास में तामसिक भोजन का त्याग करें।
जितना संभव हो गरीबों की मदद करें।
कार्तिक मास में आते अनेक पर्व त्योहार।
पूजा करने, खुशियाँ
मनाने को रहते हम सब तैयार।
करवा चौथ पर सुहागिनें सोलह श्रृंगार करतीं।
पति के दीर्घायु की कामना ईश्वर से करतीं।
कार्तिक कृष्ण पक्ष एकादशी, रमा एकादशी कहलाता। 
जो भी इस व्रत को करता, धन,वैभव वह पा जाता।
धनतेरस को भगवान धनवंतरी अमृत कलश ले प्रकट हुए।
नरक चतुर्दशी को भगवान कृष्ण नरकासुर का वध किए।
दिवाली का त्योहार अपने संग खुशियाँ लाता।
होता है अंधकार पर प्रकाश की विजय, यह हमको बतलाता।
कार्तिक मास में माँ लक्ष्मी धरती पर उतरती है।
अपने भक्तों पर वे धन की 
वर्षा करती हैं।
भाई दूज में बहना भाई को तिलक लगातीं। 
भाई को सारे सुख मिले, ईश्वर से प्रार्थना करतीं। 
छठ व्रत की महिमा, जाने सारा संसार। 
तीन दिन उपवास वाले, 
इस व्रत की महिमा अपरंपार। 
छठ पूजा जो करता, उसकी मनोकामना पूरी होती। 
छठ मैया अपने भक्तों का जीवन खुशियों से भर देतीं। 
अक्षय नवमी को आवला
हम खाते हैं। 
देवोत्थान एकादशी को भगवान विष्णु चार माह की नींद से जाग जाते हैं। 
कार्तिक मास में भगवान विष्णु ने लिया था मत्स्य अवतार।
कार्तिक पूर्णिमा को भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर का किया था संहार। 
कार्तिक मास में दीपदान का विशेष महत्व बताया जाता। 
माँ तुलसी की पूजा कर जो
दीप दिखाता, जीवन उसका
खुशियों से भर जाता।

डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'