सावन आया
आओ-ना फिर से तुम
वहीं पर जहाँ हम
सावन में झूला करते थे,
सबसे तेज झूला झूलना
और फिर
अपने प्रेमी -प्रेमिका
का नाम पूछने पर
शरमाना,
नाम नहीं बताने पर
चलते झूले में ही
पतले डंडे से मारना।
कितना मजा आता था,
सावन तो
अब भी आता है,
पर बेचारा बूढ़ा
पीपल का पेड़
अकेला खड़ा रहता है।।
अब उस पर
झूले नहीं बांधते हैं,कोई भी
पूरा सावन वह
इंतजार करता है,
उन सुनहरे लम्हों का
जिनको उसने
जीवन में देखा है।।
अब कोई वहाँ
कब आते हैं ?
सावन के झूले
खाली रहते हैं,
तुम्हारे बिन,
आओ -ना फिर से तुम
सावन में फिर से
खुशियों के रंग भरते हैं.।।
ओम प्रकाश लववंशी "संगम"
कोटा, राजस्थान
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