पिता
मेरे पिता आदर्श व्यक्ति,मेरे लिए थे सब कुछ,
मेरे लिए मेरे पापा थे,अटल उन्नत हिमालय,
सदा अपने चेहरे पर,लिए रहते भाव कठोर,
मगर हृदय था उनका,फूल सा बहुत कोमल।
एक फौजी की तरह, बड़े अनुशासन प्रिय थे,
परिवार की हर जिम्मेदारियों को वे निभाते थे,
बड़े पद आसीन,पर कभी घमंड नहीं करते थे,
समय के बड़े पाबंद,कठोर परिश्रम वे करते।
मेरे पिता,मेरे लिए थे,जीवन में सब कुछ,
आज उनके बिना मुझे लगे,यह जीवन तुच्छ,
उंगली पकड़ मेरा,दुनिया में चलना सिखाया
हर पल हिम्मत देकर,मुझे जीना सिखाया।
मुझे जीवन में,जीने के मकसद को समझाया,
मेहनत,संयम की परिभाषा को जीकर बताया,
खुद जीवन भर करते रहे, सत्कर्म ही सत्कर्म,
दिया हमें,जीवन में निष्काम कर्म की सीख।
दुःख,दर्द,कष्ट तो आते हैं,जीवन में सबके,
करना उन सबका सामना धैर्य और साहस से,
करो सदा समय का सदुपयोग, कठोर मेहनत,
हर काम को सीखने,करने की मिली तालीम।
बहुत अधिक प्रेम था,उन्हें अपने परिवार से,
जीवनभर की सारी खुशियाँ दी मेरे पिता ने,
अपने मन के दुख को बताया न हमें कभी,
खुशी खुशी करते थे,वे सबकी जरूरतें पूरी।
पढ़ना,लिखना,मेहनत से काम, सेवा करना,
कहते थे,एकाग्रता से हर काम को करना,
आज जो भी कुछ हूं मैं,बस उनकी बदौलत,
मेरे पिता मेरे सच्चे गुरु,मेरे जीवन के आदर्श।
कैसे भूलूं अपने पापा का प्यार, लाड दुलार,
मेरे पापा का व्यक्तित्व था,बड़ा ही महान,
जीवन में किए,समाज हित अनेकों नेक काम,
आज भी करते हैं,लोग उन्हें श्रृद्धा से याद।
अपने सिद्धांतों,उसूलों पर सदा वे अटल रहते,
जीवन में मुसीबतों का डटकर सामना करते,
हमें कभी दुःख,दर्द का आभास न होने देते,
हर तरह के काम,खुशी खुशी किया करते थे।
जितना होता,खुशी से करते थे सबकी मदद,
सुदृढ़ चरित्र,उन्नत भाल,चेहरे पर थी चमक,
हम सबको लगता,हर पल पापा से बड़ा डर,
अनेकों विषयों की पुस्तकों से था,उन्हें प्रेम।
विज्ञान,गणित,कला,वाणिज्य,दर् शन,ज्योतिष,
हर विषय का था,उन्हें बड़ा सूक्ष्म,गहन ज्ञान,
सत्कर्म के रास्ते पर चलना, सबको सिखाया,
धैर्य,साहस,आत्मविश्वास का पाठ हमें पढ़ाया।
गरीबों को मुफ्त दवा,शिक्षा वे दिया करते थे,
समाज में वे बड़े ही विद्वान व्यक्ति माने जाते,
कहते थे कि कोई काम छोटा, बड़ा नहीं होता,
कभी भी धैर्य और संयम न खोना,समझाया।
कई राज्यों में काम कर खूब नाम था कमाया,
समाज में,उनका बड़ा मान और सम्मान होता,
ऐसे असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे मेरे पिता,
हमें आत्मनिर्भर बनाकर,हो गए हमसे जुदा।
आज भी मेरे पिता रहते हैं,मेरे ही आस पास,
होता है उनके,आशीष भरे हाथ का आभास,
अब क्या क्या बखान करूं,मैं अपने पिता की,
बहुत गर्व मुझे,अपने पापा की बेटी होने की।
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित।
डॉ बी निर्मला,
मैसूर, कर्नाटक।
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