Monday, 16 October 2023

पिता - मीनाक्षी भसीन

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पिता , तुम हमें प्यार नहीं करते

हे पिता! तुम अक्सर शांत रहते हो,
अपना प्रेम ज्यादा अभिव्यक्त नहीं करते
तुम्हारी आंखों में बहुत से ख्वाब छिपे रहते
किंतु तुम हमसे ज्यादा बात नहीं करते
हमें लगता है, तुम हमें प्यार नहीं करते

बहुत ज्यादा गले भी न लगाया तुमने,
लाड-लाड से पास भी न बुलाया तुमने,
तुम्हारा प्रेम उस बरगद के वृक्ष की तरह
जिसकी छाया में सुरक्षित रहते हैं हम
तुम बचाते हो जिंदगी की मुश्किलों की धूप से,
तुम डांटते हो ज्यादा पुचकार नहीं करते,
हमें लगता है, तुम हमें प्यार नहीं करते


अक्सर तुम्हें देखती हूं अथक परिश्रम करते हुए
बहुत काम है ऑफिस में  यही फरियाद करते हुए
माथे पे शिकन देखी, दिखी आंखों में थकावट
देखा तुम्हारा गुस्सा, न समझी तुम्हारी झुंझलाहट,
तुम काम नहीं, तुम तैयार कर रहो हम सभी की जमीन,
जिस पर बना सके हम अपने ख्वाबों का घरौंदा,
तुम इतने व्यस्त रहते हो चूंकि इतना आसान नहीं है
आकाश बनाना ताकि हम उड़ान भर सके अपने भविष्य की
इसी कशमकश में अगर तुम मीठी मुस्कानों की बौछार नहीं करते
हमें लगता है तुम हमें प्यार नहीं करते


कमाते हो जो भी लगाते हो हम पर,
पाते हो जो भी पहुंचाते हो हम तक,
कितना कठिन है घर को चलाना,
जो चाहिए है जिसको वो सब कुछ दिलाना,
देते ही रहते हो, लेने का फरमान नहीं करते
हमें लगता है तुम हमें प्यार नहीं करते।

मीनाक्षी भसीन, सर्वाधिकार सुरक्षित

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