राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य मंच हमारी वाणी की साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु
विषय.... तबाही
नाम.. अनन्तराम चौबे अनन्त जबलपुर म प्र
कविता...
तबाही
प्रकृति की अनहोनी घटना
जब भी तबाही मचाते है ।
स्मृतियों के झरोखों से ही
वो मंजर सामने याद आते हैं ।
भूकंप, तूफान, सुनामी हो
आते ही तबाही मचाते हैं ।
तबाही ही तबाही मचती है
जन जीवन तबाह कर देते है ।
सुनामी लहर कहीं आती हैं
शहर गांव उजाड़ देती हैं ।
इन्सान हों या जानवर हों
सभी को बेघर कर देती हैं ।
सुनामी लहर डरावनी है
सारा सच जहां से गुजरती है ।
कोहराम मचाती जाती है ।
पेड़ पौधे भी उजाड़ देती है ।
चारों तरफ रूदन क्रुंदन
ही क्रुंदन सुनाई देता है ।
सारा सच लोगों में डर और
भय हाहाकार मचा देता है ।
कोरोना ने तबाही मचाई
कोरोना ने सबको रूलाया था ।
सारा सच कोरोना की क्रूरता ने
कैसा बेरहमी का कहर मचाया था ।
किसी के पिता किसी के बेटे को
कोरोना अकाल ही निगल गया ।
मां बहन बेटी बहूं को भी कोरोना
की तबाही ने मौत ग्रास बना लिया ।
प्रकृति की ऐसी विनाशकारी
लीला को कौन रोक पाता है ।
प्रकृति को कब क्या करना है
भविष्य को कौन समझ पाता है ।
सुनामी भूकंप कोरोना तबाही
रूदन, क्रंदन को छोड़ जाती है ।
ऐसी त्रासदी जब भी आती है
लाशों के ढेर लगाती जाती है ।
किसी की मां किसी का बेटा
बस लाशों में बदल जाते हैं ।
सारा सच कई मासूम बच्चे भी
मलवे में दबे जिन्दा बच जाते हैं ।
सुनामी लहर कब आ जाए
किस पर कैसे कहर बरसाए ।
कोई कुछ समझ नहीं पाता है
रोता बिलखता छोड़ जाता है ।
मूसलाधार बारिश जब होती
नदियां भी तबाही मचाती है ।
सारा सच प्रकृति की विनाश
कारी लीलाएं तबाही मचाती हैं।
युद्ध लड़ाई जिन देशों में होती
जन धन की भी तबाही होती है ।
सेना के जवान शहीद होते हैं
मां बहिन बेटियां विधवा होती हैं ।
प्राकृति कब क्या खेल खिलाती
सारा सच कोई समझ नहीं पाते है ।
कुछ स्वार्थी लोग हो हल्ला करके
अपना उल्लू भी सीधा करते हैं ।
कोरोना भूकंप सुनामी की तबाही के
मंजर को देख मन विचलित होता है ।
हाहाकार शोकाकुल के मंजर में सारा
सच जीवन कितना मुश्किल होता है
अनन्तराम चौबे अनन्त
जबलपुर म प्र
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