सावन - डॉ० उषा पाण्डेय
भोले बाबा का प्रिय मास, सावन मास हरियाली संग लाता है।
श्रवण नक्षत्र की पूर्णिमा के कारण नाम पड़ा श्रावण मास।सावन मास हिंदुओं के लिए होता बड़ा खास।
सावन मास शंकर जी को है समर्पित।
भक्त गण शिव जी पर करते जल अर्पित।
चारों ओर गूँजता है 'हर हर महादेव' का स्वर।
भांग - धतूरा, बेलपत्र चढ़ता बाबा भोले पर।
भोले बाबा के जटा में गंगा बिराजे, तन पर भस्म साजे।
भक्तों की भीड़ बड़ी जुटे, मंदिर में घंटा बाजे।
कांँवड़ियों की बात न पूछो, बोल बम का नारा लगा रहे।
कैसे जल्दी पहुँचे बाबा तक, यही सोचते जा रहे।
चारों ओर हरियाली दिखती,
कभी रिमझिम - रिमझिम बूँदें पड़तीं।
कभी गरज - गरज बादल बरसें, सनसन - सनसन हवाएँ चलतीं।
सावन मास में आता है कई
त्योहार।
पूरे सावन मास में पड़ती है
खुशियों कीबौछार।
नागपंचमी में नाग देवता की पूजा की जाती।
श्रावण शुक्ला सप्तमी को तुलसी जयंती मनाई जाती।
कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामिका और शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं।
भक्त दोनों एकादशी कर
पुण्य प्राप्त करते हैं।
रक्षा बंधन सावन पूर्णिमा को आता, भाई बहना से राखी बंँधवाता।
हँसी गूँजती घर में, सबका तन - मन खिल जाता।
सावन की हरियाली तीज
गोरियों को बहुत है भाती।
कान में झुमका, हाथ हरी चूड़ियाँ, अँखियों में कजरा
लगातीं।
सोलह श्रृंगार कर गोरी, स्वयं पर इठलाती।
साजन संग झूला झूलती,
मन ही मन हर्षाती।
खो जाते दोनों एक दूजे के प्यार में।
तन, मन दोनों का भींगता, सावन की फुहार में।
पर सबके लिए यह सावन एक जैसा नहीं होता।
कोई सावन का आनन्द लेता, कोई यादों में खोया होता।
यह सावन क्यों इतना अजीब होता है।
कहीं अपनों को पास लाता है, कहीं अपनों की याद दिलाता है।
कहीं अपने साजन को देख सजनी फूली नहीं समाती
है |
कहीं पति के वियोग में पत्नी रो रो तकिया भिंगाती है |
सोलह श्रृंगार कर सजनी
साजन संग झूला झूले |
नम है आँखें बिरहन की
बैठी है वह तो अकेले |
याद करती कैसे भींगते थे
हम दोनों सावन की फुहार में |
कहती पिया से क्यों छोड़ गए मुझको इस संसार में |
एक बार तो आ जाओ
डूबेंगे हम प्यार में |
हम दोनों फिर से भींगेंगे
सावन की फुहार में |
डॉ० उषा पाण्डेय
स्वरचित
वेस्ट बंगाल
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