दुर्गा
दुर्गा स्वयंसिद्धा हो तुम,
तुम शक्ति हो जीवन की,
चेतना,स्फूर्ति हर तन की,
अद्भुत है तेरी माया,
संजीविनी हो मन-मन की।
दुर्गा स्वयंसिद्धा हो तुम...
तुम जगत जननी महामाया,
हर दृश्य की हो तुम काया,
तुम निरंतर परिवर्तित रूप हो,
परमपुरुष की हो तुम छाया।
दुर्गा स्वयंसिद्धा हो तुम...
तुम हर सजीव की संवेदना हो,
तुम हर संघर्ष की प्रेरणा हो,
तुम उत्तेजना हो जीत की।
तुम बिन कल्पना नहीं जीवन की।
दुर्गा स्वयंसिद्धा हो तुम...
तुम साहस हो,ओज हो,
हर कला की खोज हो ,
तुम जीवन सरिता में उठती,
सुख-दुख की मौज हो।
दुर्गा स्वयंसिद्धा हो तुम....
तुम शक्ति हो , तुम भक्ति हो,
शिव की अनन्य अभिव्यक्ति हो,
तुम काल की भी हो महाकाल,
जीवन संघर्ष की मुक्ति हो।
दुर्गा स्वयंसिद्धा हो तुम.....
गोरक्ष जाधव
मंगलवेढा, महाराष्ट्र
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