Monday, 16 October 2023

पिता - प्रा. गायकवाड विलास

 सारा सच प्रतियोगिता के लिए रचना*
























**विषय:पिता**

**पिता का कर्ज कभी*- -
   **** *** **** ****
  (छंदमुक्त काव्य रचना)

दर्दों को सहकर हरपल अपने जीवन में,
बहते अश्कों को नयनों में छुपाते है।
हिमालय जैसा हौसला जिसका है बुलंद,
ऐॆसा जग में श्रेष्ठ नाम वो पिता ही है।

सभी ख्वाब खुदके जलाकर जिंदगी में,
अपनों के ख्वाब वो पल-पल सजाता है।
कांटों भरी मुश्किल राहों पर चलकर भी,
यहां हरपल वो युंही जीवन में मुस्कुराता है।

आसमां जैसा आशियाना बनकर वो,
जिंदगी भर अपनों के लिए छांव बनके रहता है।
जीवन में आएं हर मुसीबतों से लड़कर,
सुखों की बारिश वो अपने संसार में करता है ‌।

व्यवहार उनका रहता है सक्त और कठिन,
फिर भी मन उसका फूलों सा कोमल होता है।
अपनों के लिए वो खुद की पुरी जिंदगी में,
इक नदियां की तरह निरंतर बहता रहता है।

फटे पुराने कपड़े और जूते पांवों में पहनकर,
गमों के जख्म वो अपने हृदय में छुपाता है।
धूप-छांव और बारिश में भी वो कभी रूकता नहीं,
इतने सारे गमों को सहकर वो अपने संसार में खुशियां भर देता है।

पिता ही है अपनों के लिए चमकता सूरज,
पिता ही है अपनों के लिए एक भविष्य उज्जवल।
पिता के बिना दुनिया में है सब आधा अधूरा सा,
पिता के बिना ये सारा जहां भी सुना सुना है।

उम्रभर दीए की तरह हरपल जलकर ,
अपनों के जीवन में जगमगाता उजाला कर देता है।
कैसे लिखूं मैं तुम्हें किसी भी लफ्जों में यहां पर,
क्योंकि आपका मोल करना किसी भी लफ्जों के बस में नहीं है।

पिता का कर्ज कभी भी चुका नहीं सकते,
पिता के कर्जों का मोल कर नहीं सकते।
जिंदगी के इस अनजाने राहों पर पिता ही,
एक उम्मीद है- - - पिता ही इक सुनहरी रोशनी है।

प्रा.गायकवाड विलास.
मिलिंद महाविद्यालय लातूर.
      महाराष्ट्र

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