Monday, 16 October 2023

रेल - गणपत लाल उदय

अंतरराष्ट्रीय हिन्दी साहित्य प्रतियोगिता मंच
























प्रतियोगिता का विषय - रेल

विषय - छुक-छुक करती चलती रेल 
विधा - कविता

छुक-छुक करके जो चलती रेल है जिसका नाम,
दो पटरियों पर दौडती यह दिन-रात सुबह-शाम।
करोड़ों लोगों को पहुॅंचाती जो अपने-अपने धाम,
सवारी हो या मालगाड़ी पहुॅंचाना जिसका काम।।

साधारण और शयनयान इसमें होते है कई कोच,
सुरक्षित यात्रा करवाती जो चलती रहती है रोज़‌‌।
ना है जिसके लिए हमारे पास कोई भी अल्फाज़, 
ढोती है ये संपूर्ण विश्व में बहुत भारी भारी बोझ।।

सबसे पहले इसका आविष्कार किया जेम्स वाट,
इंग्लैंडवासी था वह इंजन बनाकर चलाया भाप।
धीरे-धीरे कोयला, डीजल अब है बिजली वाल्ट,
वातानूकुलित कोच है इनमें अब सह लेता ताप।।

मौसम गर्मी का हो चाहें‌ यह बरसती रहें बरसात,
धूल-भरी ऑंधी चलें चाहें हो काली अन्धेरी रात। 
हर सुविधा रहती है इसमें ये सबके लिए सौगात,
पूरा-परिवार जा सकता है जिसमें बैठकर साथ।।

क्षण भर में पहुॅंचा देती ये सभी को गंतव्य स्थान,
होठों पर यह ला देती हम सबके प्यारी मुस्कान।
नगर-महानगर व बड़े शहरों में ये चलती मैट्रोट्रेन,
सारासच है बैठकर इसमें घुमलो सब हिंदुस्तान।।

दौड़ती हुई लगती है सभी को ये रेलगाड़ी अच्छी,
शान से करते है सवारी जिसमें वृद्ध बच्चें बच्ची।
सफ़र में देरी करने से व रूकने पे आता है गुस्सा,
मैं उदय लिखा हूॅं जिस पे ये रचना सच्ची सच्ची।।

रचनाकार ✍️
गणपत लाल उदय, अजमेर राजस्थान

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