नवरात्र
नवरात्र में दुर्गा माता, नव रूपों में पूजी जातीं।
माता भी खुश हो, अपने भक्तों पर आशीष की झड़ी लगातीं।
अश्विन, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से होता नवरात्र आरंभ।
भक्त कलश स्थापना करते, पूजा होती प्रारंभ।
नवरात्र के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री रूप में आतीं।
राजा हिमालय के घर जन्मीं, शैलपुत्री कहलातीं।
नवरात्र के दूसरे दिन, माँ कहलाती ब्रम्हचारिणी।
तपस्विनी रूप माँ का, माँ है सबकी दुखहारिणी।
तीसरा दिन नवरात्र, माँ का चंद्रघंटा नाम।
मस्तक पर मात के अर्धचंद्र विराजमान।
चौथा दिन नवरात्र, माँ कुष्मांडा का आह्वान।
मालपुआ का भोग लगाते भक्त, धरते मांँ का ध्यान।
आया पांचवां दिन नवरात्र का, दर्शन दी स्कंदमाता।
स्कंद कुमार की माता, केले का भोग भक्त लगाता।
कात्यायनी नाम मात का, महर्षि कात्यायन गृह
जन्म लिया, नवरात्र का छठवां दिन, है कात्यायनी मात का।
सांतवें दिन माँ काल रात्रि का, भक्त करते उन्हें प्रणाम।
मांँ भक्तों की रक्षा करतीं, हरतीं उनके दुख तमाम।
आठवां दिन महागौरी, श्वेत वस्त्र में आतीं।
भक्तों को बुद्धि - बल देती, उनकी झोली मांँ भरतीं। नवरात्र, माँ का नवां
रूप, कर में गदा, शंख शोभायमान।
नवें दिन माँ सिद्धि दात्री का भक्त करें गुणगान।
माँ के नव दिन का नव रूप, हमें मिल जुल कर रहना सिखलाता।
जो कोई माँ की पूजा करता, धन, आरोग्य, सुख, शांति पाता।
नवरात्र में कन्या पूजन का है विधान।
भक्त कन्या को भोजन करातें, देते हैं सम्मान।
कन्या देवी का रूप होती, यह है सर्वमान्य।
कन्या का कभी नहीं करना अपमान।
समाज की कन्याओं को शिक्षित हमें करना है।
कन्या गर्भ में मारी न जाये, ध्यान हमें रखना है।
यही सच्ची पूजा होगी, यही सच्चा उपवास होगा।
नवरात्र की नव देवियों का आशीष हमें प्राप्त होगा।
डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'
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