दुर्गा दोहे
शीश झुकाकर मात को, वंदन बारम्बार।
करती जग की पालना,करती दुख निस्तार।।
किस्मत में जो ना लिखा, लिख देती है मात ।
सच्चे मन सुमिरन करो,देगी सुख सौगात ।।
बंद सभी जो द्वार हों,खुलता है इक द्वार ।
भटका हो इंसान जो,माँ करती उद्धार ।
चाहे कितने नाम हों, लेकिन शक्ति एक।
लक्ष्मी , उमा, गिरा कहो, केवल धाम अनेक।।
दुर्गा दुर्गति दूर करे, दूर हो दुष्ट द्वेष।
सुख सम्पदा सदा रहे, कभी न कोई क्लेश।।
सारा सच संसार का, सच्चा मां का द्वार।
सारा सच इस बात में,मिले माता का प्यार।
डॉ चन्द्र दत्त शर्मा
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