Sunday, 29 October 2023

तबाही - चौबे अनन्त

 























राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य मंच हमारी वाणी की साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु
विषय....  तबाही
नाम.. अनन्तराम चौबे अनन्त जबलपुर म प्र
कविता...

         तबाही 

प्रकृति की अनहोनी घटना
जब भी तबाही मचाते है ।
स्मृतियों के झरोखों से ही
वो मंजर सामने याद आते हैं ।

भूकंप, तूफान, सुनामी हो
आते ही तबाही मचाते हैं ।
तबाही ही तबाही मचती है
जन जीवन तबाह कर देते है ।

सुनामी लहर कहीं आती हैं
शहर गांव उजाड़ देती हैं ।
इन्सान हों या जानवर हों
सभी को बेघर कर देती हैं ।

सुनामी लहर डरावनी है
सारा सच जहां से गुजरती है ।
कोहराम मचाती जाती है ।
पेड़ पौधे भी उजाड़ देती है ।

चारों तरफ रूदन क्रुंदन 
ही क्रुंदन सुनाई देता है ।
सारा सच लोगों में डर और 
भय हाहाकार मचा देता है ।

कोरोना ने तबाही मचाई
कोरोना ने सबको रूलाया था ।
सारा सच कोरोना की क्रूरता ने 
कैसा बेरहमी का कहर मचाया था ।

किसी के पिता किसी के बेटे को
कोरोना अकाल ही निगल गया ।
मां बहन बेटी बहूं को भी कोरोना 
की तबाही ने मौत ग्रास बना लिया ।

प्रकृति की ऐसी विनाशकारी
लीला को कौन रोक पाता है ।
प्रकृति को कब क्या करना है
भविष्य को कौन समझ पाता है ।

सुनामी भूकंप  कोरोना तबाही 
रूदन, क्रंदन को छोड़ जाती है ।
ऐसी त्रासदी  जब भी आती है
लाशों के ढेर लगाती जाती है ।

किसी की मां किसी का बेटा
बस लाशों में बदल जाते हैं ।
सारा सच कई मासूम बच्चे भी
मलवे में दबे जिन्दा बच जाते हैं ।

सुनामी लहर कब आ जाए
किस पर कैसे कहर बरसाए ।
कोई कुछ समझ नहीं पाता है 
रोता बिलखता  छोड़ जाता है ।

मूसलाधार बारिश जब होती
नदियां भी तबाही मचाती है ।
सारा सच प्रकृति की विनाश 
कारी लीलाएं तबाही मचाती हैं।

युद्ध लड़ाई जिन देशों में होती
जन धन की भी तबाही होती है ।
सेना के जवान शहीद होते हैं
मां बहिन बेटियां विधवा होती हैं ।


प्राकृति कब क्या खेल खिलाती
सारा सच कोई समझ नहीं पाते है ।
कुछ स्वार्थी लोग हो हल्ला करके
अपना उल्लू भी सीधा करते हैं ।

कोरोना भूकंप सुनामी की तबाही के
मंजर को देख मन विचलित होता है ।
हाहाकार शोकाकुल के मंजर में सारा 
सच जीवन कितना मुश्किल होता है

    अनन्तराम चौबे अनन्त 
     जबलपुर म प्र


पहली शैलपुत्री - मीनाक्षी सुकुमारन

 


















पहली शैलपुत्री

दूसरी ब्रह्मचारिणी
तीसरी चंद्रघंटा
चौथी कूष्मांडा, 
पांचवी स्कंध माता
छठी कात्यायिनी
सातवीं कालरात्रि
आठवीं महागौरी और 
नौवीं सिद्धिदात्री
मां दुर्गा के नौ रुप 
जिससे भर भर जाता
नवरात्रि का ये पावन उत्सव
हर दिन मिलता आशीर्वाद
घर उठा जगमगा 
माँ की अखंड ज्योत
पंच मेवा, नारियल,
पुष्प, धूप, दीप,अगरबत्ती से
लाल चुनरी सिर पर है उड़ाई
भर भर नज़र निहारूँ
माँ के दिव्य स्वरूप को
भक्ति संग शक्ति
यही तो है दिव्य स्वरूप
माँ दुर्गा का
बस कृपा अपनी सदैव
बनाये रखना
हो कोई भूल चूक
तो कर देना माफ
बस होना न दूर कभी
दिल से और घर से हमारे
करते बारम्बार प्रार्थना यही
हाथ जोड़कर
माँ तू ही है आस, तू ही आधार जीवन का
बस रखना ये याद सदा
तेरी छत्र छाया में ही
फल फूल रही जीवन की
ये बेल
ले कर नाम तेरा
पा कर दरस तेरा
बस जब तक है सांस
सिर पर बना रहे हाथ
तेरा माँ अम्बे मेरी
है बस कामना यही
बना रहे साथ तेरा
माँ मेहरावली 
माँ ज्योतांवाली।।

.....मीनाक्षी सुकुमारन
       नोएडा


स्वर्ग या नर्क

 


स्वर्ग या नर्क

एक गांव में एक टीना नाम की लड़की रहती थी। वह काफी खूबसूरत थी, रास्ते चलते हर कोई एक न एक बार उसे पलट कर  जरूर देखता था। कुछ साल बाद बगल के गांव के एक व्यक्ति से इसकी शादी हो गई। वह काफी अमीर था और अच्छा खासा कमाता था। लड़की ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी परंतु उसे इस बात का कोई गम नहीं था क्योंकि उसका पति कमाता था। एक दिन उसके पति की मृत्यु हो गई रोड एक्सीडेंट में।

 उसके घर में धीरे-धीरे  धन कम हो गया, एक दिन ऐसा आया कि अनाज का एक अंश तक नहीं बचा। वह बाहर काम  खोजने निकली चुॅकी वह ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी तो उसे अच्छा काम  नहीं मिला। तब एक किराना दुकान पर जाकर बोली दुकानदार से बोली आप मुझे अनाज दो मैं बदले में आप जो कहोगे सारा काम कर दूंगी। दो-तीन दिन बाद दुकानदार ने उसका शोषण करने लगा, वह दुखी होकर वहां से भाग गई। दूसरे जगह काम करने गई, फिर वहां भी उसे इसी शोषण से गुजरना पड़ा, तीसरी जगह भी वही हुआ। फिर वह एक दिन सोचा जब मुझे यही काम करना है तो यह  काम तो मैं अपने घर पर रहकर भी कर सकती हूं। 

 वह अपने घर पर ही काम  करने लगी। उसके घर के आगे एक पूजारन रहती थी।  पूजारन को टीना का चाल - चलन खलने लगा।  उसके घर जिस दिन जितने व्यक्ति आते उतना कंकर एक गमले में वह डाल देती थी। वह गमला धीरे-धीरे भर गया, और एक दिन उस पूजारन की मौत हो गई। कुछ दिन बाद टीना की भी मौत हो गई। वह दोनों ऊपर गई। टीना को स्वर्ग मिला और पूजारण को नर्क। पूजारण ने  प्रभु  से पुछा, मैंने तीनों काल में बस आपका श्मरण किया है और यह इतने  पाप किया है , फिर इसको स्वर्ग और मुझे नर्क क्यों? भगवान बोले टीना ने अपना कर्म किया है और तुम  दुसरो के जीवन में ताकने- झांकने का काम किया।

Vandana kumari 
Bihar 


युद्ध - डॉ० अशोक


 
















युद्ध 

यह युद्ध एक अभिशाप है,
दुनिया में एक बड़ी पाप है,
मानवीय मूल्यों को खत्म करने का,
यह एक कुत्सित अहसास है,
सबको सम्बन्धों से दूर करने का,
एक सम्बल प्रयास है।
यह त्रासदी खत्म कर देती है मानवता को,
सम्बन्धों में कटुता फैलाती है,
आगे बढ़ने की राह पर,
तरह-तरह की बाधाएं सहित,
नजदीकि से समीपवर्ती क्षेत्रों में ही नहीं,
वैश्विक स्तर पर  बहुत कष्ट पहुंचाती है।
यहां युद्ध में दिखता अनाचार है,
संकट और गहरी चाल से सना हुआ,
एक नये रंग का कुत्सित अत्याचार है।
यह   दुखद व्यवहार संग एक भीषण आग है,
मन के आनंदित पल को खत्म करने वाली,
बहुत  तकलीफ़ देह  सुराग़  है,
स्वतन्त्र और निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में,
यह एक अत्यंत दुखदाई व्यवहार है,
मानवीय मूल्यों को खत्म करने में,
इसका दिखता मजबूत व प्रखर अवतार है।
यह जनजन तक कष्ट पहुंचाती है,
खुशियां और सुकून देने वाली संस्था को,
बिल्कुल कर जाती वीरान है।
यह अत्यंत दुर्लभ तकरार है,
हमें सम्हलकर  रहने के लिए युद्ध के स्थान पर,
मधुर व्यवहार और आचरण की दरकार है।
यह सामाजिक समरसता को आगे बढ़ाने में,
सबसे पहले खड़ा होकर दिखलाता अपना संस्कार है।
युद्ध अक्सर नवीन जोश और उत्साह को,
हमेशा- हमेशा के लिए खत्म कर देती है,
खुशियां और आनन्द की वैतरणी को समेटकर,
जीवन शैली की तमाम खुशियां और सुकून को,
रोते-रोते हुए ही लम्बी उम्र तक के ,
हमेशा के लिए खत्म कर देती है।

डॉ० अशोक, पटना, बिहार।