दिवाली
छोटे छोटे माटी के दीए करे,जग को जगमग,
करते दूर अंधेरा,फैलाते हैं चारों ओर प्रकाश,
घोर अंधेरे में शान से जलते हैं,ये माटी के दीए,
जले दीए जग हेतु,नहीं जलते हैं खुद के लिए।
माटी के दीए,देते संदेश हम सबको हर बार,
मानव तन है माटी का,न कर अति अभिमान,
द्वेष,नफरत,छोड़ दिल में प्रेम के दीप जलाएं,
गिले,शिकवे छोड़,सबको खुशी से गले लगाएं।
वर्ष दो हजार बाईस में,बाईस दीए जलाकर,
इस दिवाली को बनाएं,सदा के लिए यादगार,
ये बाईस दीए हैं जीवन में,बहुत ही अनमोल,
इनके बिना हमारे जीवन का, नहीं कोई मोल।
वसुधा,प्रकृति,सैनिक,माता पिता,गुरु,किसान,
आशा,विश्वास,प्रेम,शांति,मुस्का न,धैर्य,साहस,
सकारात्मक सोच,अच्छे कर्म, संयम,परिश्रम,
ईश्वर,बड़ों का आशीष,मित्रों व छोटों का प्रेम।
इनके नाम इस बार,एक दीया जरूर जलाना,
अपने संकुचित मन को जरा विशाल बनाना,
फिर देखो तुम,यह दिवाली होगी सबसे खास,
खुशी,उल्लास से होगा सबका दिल बाग बाग।
धर्म,जाति,वर्ग,ऊंच नीच,रंग भेद को भुलाकर,
जगाएं,खुशी खुशी सबके मन में प्रेम के भाव,
इस वसुंधरा पर मानव धर्म को सभी निभाएं,
आओ,खुशी से हम दिवाली का पर्व मनाएं।
डॉ बी निर्मला,
मैसूर,कर्नाटक,
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