आलेख:
शीर्षक: पूजा
हमारा देश भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है। इसमें हर धर्म के लोग रहते हैं। यहां की संस्कृति एवम् सभ्यता यह रही है है को हर व्यक्ति अपने अपने धर्म के अनुसार उस एक परमात्मा की पूजा या इबादत कर सकते हैं। उस परम पूजनीय परमात्मा को हिन्दू भाई बहने प्रभु,भगवान,राम या अन्य बहुत से नामों से पुकारते हैं। मुसलमान भाई बहने उसे अल्ला, खुदा,परवरदिगार या अन्य नामों से पुकारते हैं। सिख भाई बहने उसे वाहेगुरु,अकालपुरख कहते हैं।ईसाई गॉड कहते हैं।परमात्मा ने अपना परिचय या भेद देने के लिए इस दुनिया के अन्दर अनेक साधु, संत,महात्मा भेज रखे है जो सत्संग के जरिए परमात्मा सम्बन्धी ज्ञान जान साधारण को देते रहे हैं। परमात्मा ने हो इस धरती पर अनेक देवी, देवता,अवतार, वली,पैगम्बर भी भेज रखे हैं। हर कोई धार्मिक आस्था रखने वाला जिज्ञासु उस परमात्मा की पूजा अर्चना अपने अपने विधि विधान के अनुसार कर सकता है। हिन्दू मंदिरों में जा कर धूप बठी जलाकर देवी देवताओं की मूर्तियों की पूजा करते हैं। सिख भाई गुरुद्वारों में जा कर आदि ग्रंथ को शीश नवाते हैं। मुसलमान मस्जिदों में जा कर नमाज अदा करते हैं।ईसाई चर्चों में जा कर गॉड को याद करते हैं। हिंदुभाई चार धाम करने जाते है,मुसलमान मक्का मदीना हज करने जाते हैं। कोई सतगुरु की संगत करता है। कोई भूखों को भोजन,नंगों को वस्त्र आदि की व्यवस्था करता है। हर कोई अपनी अपनी आस्था के अनुसार किसी न किसी सेवा में लगा रहता है। सबका लक्ष्य उस परमात्मा से मिलाप करना है, इस दुनियां के आवागवन के चकर से मुक्ति हासल करना है।
पूजा करने का अधिकार सबको है, भले ही कोई अमीर है, गरीब है, किसी भी जाति का है,अधिकारी है,राजनीतिज्ञ है,मंत्री है,न्यायधीश है, मजदूर है। हर कोई अपने अपने विधि विधान के अनुसार दुनियां की रचना करने वाले परमात्मा की पूजा या इबादत कर सकता है।
वह परमात्मा सबका है, हम सब उसके जीव अथवा आत्माएं हैं। यह मनुष्य देह जो हमे प्राप्त हुई है, मात्र उस एक परमात्मा से मिलाप करने के लिए जी मिली है। यह देह अनमोल है, लेकिन जहां यह अनमोल है, वहां यह क्षणभंगुर भी है। पता नहीं कब यह देह हमसे छूट जाए। इसलिए समय रहते हमें us परमात्मा की पूजा अर्चना करके उससे मिलाप कर लेना चाहिए। एक मुसलमान फकीर बुल्हेशाह ने एक स्थान पर फरमाया है -
" एक रोज़ जहानो जाना है, जा कब्र विच समाना है, तेरा गोस्त किडिया खाना है, कर चेता मर्ग विसार नहीं"।
फिर फरमाया है - कुछ कर ले तोशा जावन दा, फिर कम नहीं उथों आवन दा"।
आचार्य डॉ पी सी कौंडल, गांव डडोह, डाकघर ढाबन, तहसील बल्ह, जिला मंडी, हिमाचल प्रदेश
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