Tuesday, 14 March 2023

करो नहीं व्यर्थ तुम, यह पानी - गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद

 
























सारा सच मीडिया

अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य साप्ताहिक प्रतियोगिता
                (हमारीवाणी)
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विषय - पानी
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शीर्षक - करो नहीं व्यर्थ तुम, यह पानी
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करो नहीं व्यर्थ तुम, यह पानी।
सीखो बचाना तुम, यह पानी।।
पानी बिना नहीं, जीवन किसी का।
बहुत अनमोल है,यह पानी।।
करो नहीं व्यर्थ तुम---------------।।

बिन पानी नहीं है , यह उपवन।
महका है पानी से, यह गुलशन।।
पानी बिना नहीं है, जिंदा मछली।
जीवन का आधार है,यह पानी।।
करो नहीं व्यर्थ तुम-------------------।।

बिन पानी नहीं है,  कृषि ,जंगल।
बिन पानी नहीं है, जीवन में मंगल।।
पानी बिना नहीं है, यह हरियाली।
इतना ही उपयोगी है, यह पानी।।
करो नहीं व्यर्थ तुम--------------।।

बिन पानी नहीं, मान किसी का।
पानी भविष्य है, हर किसी का।।
बिन पानी नहीं, बिजली- वर्षा।
पानी बिना है सब, पानी - पानी।।
करो नहीं व्यर्थ तुम----------------।।


शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान

गोरक्ष जाधव - गंगाजल

 
























गंगाजल 

गंगाजल जल नहीं है केवल,
आस्था की अनन्यता का है बल,
शिव की आराधना का है फल,
गंगाजल जल नहीं है केवल।

भगीरथ के अथक प्रयत्न का हल,
शिव की कृपा से हुआ सफल,
पाप नाशिनी वह अमृतधारा,
मानव कल्याण हेतू बह रही है कल-कल।

गंगाजल जल नहीं है केवल।

हिमालय की गोद से निकलकर,
मोक्षदायिनी प्रवाहित अमृत जल,
सभी जीवों को करती है पावन,
माँ गंगा बहती है अविरत पल-पल।

गंगाजल जल नहीं है केवल।

अनंत बाधाओं को कर विफल,
गांव-गांव,शहर-शहर धोती सबका मल,
अशुद्ध,मैली वह बनाती खुद्द,
करती शुद्ध-पावन  जन सकल।

गंगाजल जल नहीं है केवल।

गंगा मैय्या का पवित्र शीतल जल,
हमारी यह धरोहर है  अनमोल,
दूषित-प्रदूषित इसे न करे  हम,
संकल्प बस यह हो इसे रखे निर्मल।

गंगाजल जल  नहीं  है  केवल,
आस्था की अनन्यता का है बल।

गोरक्ष जाधव©®
मंगळवेढा, महाराष्ट्र

गंगा - दिलीप कुमार शर्मा













गंगा..

गंगा तुम हो पतित पावनी,
सबको पावन कर देती हो।
जो आचमन करता जल को,
तुम उसके पाप हर लेती हो।
गंगाजल अमृत जल है,
कितना पावन और निर्मल है।
गंगा बह करती कल- कल है।
प्यास बुझाती पल हर पल है।
गंगोत्री से उद्गम होकर,
हिमालय से उतर आती है,
तट के लोगों की प्यास बुझा ,
गंगासागर में मिल जाती है।
स्वर्ग लोक से उतरकर गंगा,
शिव की जटा में समाई थी।
राजा सगर के पुत्रों को तारने,
मृत्यु लोक में आई थी ।
मां जैसा हे रूप तुम्हारा,
गंगा मां तुम्हे कहते हैं ।
हमारे जल में नहाकर सब,
 हर- हर गंगे कहते हैं।

दिलीप कुमार शर्मा दीप

आस्था उसी कर्मों की महक - प्रा.गायकवाड विलास

 
































*सारा सच प्रतियोगिता के लिए रचना*
**विषय:आस्था**
   ******:******

*उसी कर्मों की महक*
  **** **** ** *****
  (छंदमुक्त काव्य रचना)

जहां होती है सच्ची आस्था मन मन में,
उसी मन की प्रार्थनाएं जीवन में सफल होती है।
आस्था बिना साधना और आराधना भी,
सभी के जीवन में निरर्थक तपस्या बन जाती है।

सच्ची आस्था रखकर जो करते है पूजा जीवन में,
उसी के आंगन में यहां खुशियों के फूल खिल जाते है।
जिनकी नीतियां होती है गंगाजल जैसी पवित्र,
उसी के जीवन में ही सुखों की बरसात होती है।

जो करते नहीं कभी भेदभाव इन्सानो इन्सानों में,
वही लोग इस संसार में सच्चे साधक कहलाते है।
जिनके कर्मों में नहीं होती बुराईयां जीवन में,
ऐसे ही लोग इस संसार में समता के दीपक जलाते है।

साधना,आराधना नहीं है हर किसी के बस की बात,
उसी में भी कड़ी परिक्षाएं होती है जीवन में।
जैसे कागज के फूल भी मनकों भा जाते हैं मगर,
उन्हीं फूलों से खुशबू की महक कहां आती है।

मन की आस्था भी निर्मल बहते पानी जैसी होनी चाहिए,
जिस पानी से सारे संसार में सुखों की हरियाली छा जाती है।
जहां आस्था में होता है प्रेम-भाव और ममता भरी छांव,
वहीं पर मानवता और इंसानियत की खुशबू आती है।

जिंदगी का हर पल यहां पर है कितना अंजाना,
फिर भी ये इन्सान कितना अहंकार में डूब गया है।
खुदके भलाई के लिए औरों की छीनकर खुशियां,
वो इन्सानियत का धर्म ही अपने जीवन में भूल गया है।

कौन जानता है यहां पर वो आनेवाला पल?
हरपल वो हमारे जीवन के लिए उधार में मिली एक सौगात है।
इसीलिए भर लो कभी औरों के जीवन में भी खुशियां,
क्योंकि हम सभी की जिंदगी यहां पर कुछ पलों का ही मेहमान है।

जहां होती है सच्ची आस्था मन मन में,
उसी मन की प्रार्थनाएं जीवन में सफल होती है।
कर्मों का नहीं है इस संसार में अंत यहां पर,
उसी कर्मों की महक तो यहां युगों-युगों तक आती है।

प्रा.गायकवाड विलास.
मिलिंद महाविद्यालय लातूर.

      महाराष्ट्र

जल - डॉ बी.निर्मला



 








नमन सारा सच मंच,


                 जल, 

जल,वारि,नीर,सलिल,पानी,क्षीर,जीवन,
कितने सारे हैं मेरे नाम,सुंदर और पवित्र,
मानव शरीर भी है,मुझसे ही निर्मित,जीवित,
मुझ बिन प्राण हीन,वह हो जाए बेजान,मृत।

मेरा न कोई आकार है,न ही कोई रंग रूप,
जहां भी,जिधर जाऊं,ले लेता उसका ही रूप,
हिम,ओस,आंसू,पसीना और वर्षा आदि में,  
हर जगह रहता हूं इनमें,सदैव मौजूद मैं।

भर दूं सारे,झरने,सरोवर,सागर और नदी,
गंगा,यमुना,कृष्णा,गोदावरी हो या कावेरी,
मुझ बिन इन सबका नहीं है कोई अस्तित्व,
और इन सबका बढ़ता है मुझसे ही वर्चस्व।

इस जग में प्रकृति की,सबसे बड़ी देन मैं भी,
काम आऊं इंसान,पशुपक्षी, पेड़पौधों के भी,
सदियों से सभी,मेरा ही प्रयोग हैं करते आए,
जीवन की अन्तिम घड़ी में मुझे काम में लेते।

आकाश,पाताल,धरती कहां नहीं मैं मौजूद,
कहते हैं सब,मेरे लिए होगा भविष्य में युद्ध,
पेप्सी,कोका कोला आदि की जो रखते आस,
सब बेकार,मुझसे बुझती सदा उनकी प्यास।

आज सबको है मेरी,अत्यधिक आवश्यकता,
एक एक बूंद से मैं कितनों की प्यास बुझाता,
जितना हो सके,कर लो मेरा तुम सदुपयोग,
पर कभी न करो,कहीं भी तुम मेरा दुरुपयोग।

देवी देवताओं की पूजा पाठ में मुझे ही चढ़ाते,
इस संसार में सब,सबसे पवित्र मुझे ही मानते,
गर्व नहीं मुझे,सदा अपना कर्तव्य निभाऊं मैं,
जब तक है इस भू पर जीवन, काम आऊं मैं।

जीवन के पंचतत्वों में,मेरा नाम भी है शामिल,
इस जग में सबके लिए,मैं हूं सबसे अमूल्य,
अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ जल है जरूरी,
भविष्य में जीवन हेतु,जल संचय है जरूरी।

आओ,करें जल की महत्ता से सबको जागृत,
घर घर में,जल संग्रहण का हम पढ़ाएं पाठ,
जल की एक एक बूंद का है, जीवन में महत्व,
जल संचय,जल संरक्षण है,अति आवश्यक।

स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित,

डॉ बी.निर्मला,
मैसूर,कर्नाटक।

पूजा - आचार्य डॉ पी सी कौंडल



 आलेख:

 शीर्षक:   पूजा
         हमारा देश भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है। इसमें हर धर्म के लोग रहते हैं। यहां की संस्कृति एवम् सभ्यता यह रही है है को हर व्यक्ति अपने अपने धर्म के अनुसार उस एक परमात्मा की पूजा या इबादत कर सकते हैं। उस परम पूजनीय परमात्मा को हिन्दू भाई बहने प्रभु,भगवान,राम या अन्य बहुत से नामों से पुकारते हैं। मुसलमान भाई बहने उसे अल्ला, खुदा,परवरदिगार या अन्य नामों से पुकारते हैं। सिख भाई बहने उसे वाहेगुरु,अकालपुरख कहते हैं।ईसाई गॉड कहते हैं।परमात्मा ने अपना परिचय या भेद देने के लिए इस दुनिया के अन्दर अनेक साधु, संत,महात्मा भेज रखे है जो सत्संग के जरिए परमात्मा सम्बन्धी ज्ञान जान साधारण को देते रहे हैं। परमात्मा ने हो इस धरती पर अनेक देवी, देवता,अवतार, वली,पैगम्बर भी भेज रखे हैं। हर कोई धार्मिक आस्था रखने वाला जिज्ञासु उस परमात्मा की पूजा अर्चना अपने अपने विधि विधान के अनुसार कर सकता है। हिन्दू मंदिरों में जा कर धूप बठी जलाकर देवी देवताओं की मूर्तियों की पूजा करते हैं। सिख भाई गुरुद्वारों में जा कर आदि ग्रंथ को शीश नवाते हैं। मुसलमान मस्जिदों में जा कर नमाज अदा करते हैं।ईसाई चर्चों में जा कर गॉड को याद करते हैं। हिंदुभाई चार धाम करने जाते है,मुसलमान मक्का मदीना हज करने जाते हैं। कोई सतगुरु की संगत करता है। कोई भूखों को भोजन,नंगों को वस्त्र आदि की व्यवस्था करता है। हर कोई अपनी अपनी आस्था के अनुसार किसी न किसी सेवा में लगा रहता है। सबका लक्ष्य उस परमात्मा से मिलाप करना है, इस दुनियां के आवागवन के चकर से मुक्ति हासल करना है।
        पूजा करने का अधिकार सबको है, भले ही कोई अमीर है, गरीब है, किसी भी जाति का है,अधिकारी है,राजनीतिज्ञ है,मंत्री है,न्यायधीश है, मजदूर है। हर कोई अपने अपने विधि विधान के अनुसार दुनियां की रचना करने वाले परमात्मा की पूजा या इबादत कर सकता है।

         वह परमात्मा सबका है, हम सब उसके जीव अथवा आत्माएं हैं। यह मनुष्य देह जो हमे प्राप्त हुई है, मात्र उस एक परमात्मा से मिलाप करने के लिए जी मिली है। यह देह अनमोल है, लेकिन जहां यह अनमोल है, वहां यह क्षणभंगुर भी है। पता नहीं कब यह देह हमसे छूट जाए। इसलिए समय रहते हमें us परमात्मा की पूजा अर्चना करके उससे मिलाप कर लेना चाहिए। एक मुसलमान फकीर बुल्हेशाह ने एक स्थान पर फरमाया है -
" एक रोज़ जहानो जाना है, जा कब्र विच समाना है, तेरा गोस्त किडिया खाना है, कर चेता मर्ग विसार नहीं"।
फिर फरमाया है - कुछ कर ले तोशा जावन दा, फिर कम नहीं उथों आवन दा"।

आचार्य डॉ पी सी कौंडल, गांव डडोह, डाकघर ढाबन, तहसील बल्ह, जिला मंडी, हिमाचल प्रदेश 

पूजा - अनन्तराम चौबे अनन्त

 
























राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य मंच हमारी वाणी
साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु

विषय .... पूजा
नाम.. अनन्तराम चौबे अनन्त जबलपुर म प्र
कविता ...       

          पूजा 

पूजा पाठ नियम से करना
ईश्वर में भी श्रद्धा रखना ।
यही धर्म है यही कर्म है
ईश्वर को न कभी भूलना ।

श्री गणेश जी दुखहर्ता है
प्रथम पूज्य गणेश देवा है ।
माता जिनकी पार्वती
पिता  महादेवा है।

गणेश पूजा प्रथम करो
मन वांछित फल पाओ ।
गणेश जी की महिमा से
सब कष्टों से मुक्ति पाओ ।

एक दंत दयावंती 
चार भुजाधारी ।
माथे सिंदूर सोहे 
मूसा की सवारी ।

माता पार्वती के नंदन है
जय गणपति जग वंदन है ।
जय गणपति बप्पा सबके है
करते  हम सब अभिनंदन हैं ।

माता ने अपनी सुरक्षा में
पुत्र गणेश को जन्म दिया ।
शिव शंकर भोले बाबा को
इसका भी न आभास हुआ ।

माता की आज्ञा पालन में
देवताओं से युद्ध किया ।
सारा सच है महादेव को भी
दरवाजे पर ही रोक दिया ।

मां की आज्ञा पालन करने में
महादेव से घमासान युद्ध हुआ ।
पिता पुत्र के बीच ,इस युद्ध में
पुत्र गणेश का ही बलिदान हुआ ।

दृश्य देख मां पार्वती का
क्रोध से मन थर थर थर्राया ।
पुत्र को जीवित करने का
सारा सच संकल्प दोहराया ।

आनन फानन में महादेव ने
गजराज का सिर मंगवाया ।
पुत्र गणेश के सिर पर ही
गजराज के सिर को लगवाया ।

जीवित हुए गणपति नंदन 
सारा सच नाम गजानन पाए ।
पिता पुत्र मां पार्वती के
खुशियों से हैं  मन  हर्षाए  ।

स्वर्ग लोक के सारे देवता
जब भी कष्ट में होते हैं ।
राक्षस जब भी स्वर्गलोक में
अपना आधिपत्य जमाते हैं ।

श्रीगणेश जी राक्षसों का 
वध करके मार गिराते हैं ।
 देवताओं की रक्षा करके
अपना दायित्व निभाते हैं ।

   अनन्तराम चौबे अनन्त
    जबलपुर म प्र

Saturday, 11 March 2023

दीपावली - आचार्य डॉ पी सी कौंडल

 



















प्रतियोगिता का विषय: दीवाली

शीर्षक:  दीपावली

दीपावली के पर्व को 
खुशी से आज मनाओ तुम।
राम सीता के आगमन पर
प्रकाश के दीप जलाओ तुम।।

चौदह वर्ष बनवास काट कर
अयोध्या लौट कर वे अा रहे।
उनके स्वागत में सब भारतवासी
अपने घर द्वार सजा रहे।।

आओ सब मिलजुल कर हम
दीपावली का त्योहार मनाएं।
अज्ञानता का अन्धकार मिटाकर
ज्ञान का प्रकाश जगाएं।।

श्रीराम के आगमन पर
वातावरण को हम  स्वच्छ बनाएं।
अपने अपने घरों को हम
दीप मालाओं से खूब सजाएं।।

रंग बिरंगे फूलों से हम
अपने घर आंगन सजाएं।
आस पास के कूड़े कचरे को
इकट्ठा कर दूर जलाएं।।

नए वस्त्र नए बर्तन खरीद कर
अपने अपने घरों को लाएं।
दकियानूसी विचारों को त्यागकर
सद् विचार मन में लाएं।।

ईमानदारी और सच्चाई से हम
समाज को खुशहाल बनाएं।
दीपों के त्योहार दीपावली के
मकसद को साकार बनाएं।।

आचार्य डॉ पी सी कौंडल,
गांव डडोह, डाकघर ढाबन, तहसील बल्ह, जिला मंडी, हिमाचल प्रदेश

दिवाली - डॉ बी निर्मला

 


दिवाली

छोटे छोटे माटी के दीए करे,जग को जगमग,
करते दूर अंधेरा,फैलाते हैं चारों ओर प्रकाश,
घोर अंधेरे में शान से जलते हैं,ये माटी के दीए,
जले दीए जग हेतु,नहीं जलते हैं खुद के लिए।

माटी के दीए,देते संदेश हम सबको हर बार,
मानव तन है माटी का,न कर अति अभिमान,
द्वेष,नफरत,छोड़ दिल में प्रेम के दीप जलाएं,
गिले,शिकवे छोड़,सबको खुशी से गले लगाएं।

वर्ष दो हजार बाईस में,बाईस दीए जलाकर,
इस दिवाली को बनाएं,सदा के लिए यादगार,
ये बाईस दीए हैं जीवन में,बहुत ही अनमोल,
इनके बिना हमारे जीवन का, नहीं कोई मोल।

वसुधा,प्रकृति,सैनिक,माता पिता,गुरु,किसान,
आशा,विश्वास,प्रेम,शांति,मुस्कान,धैर्य,साहस,
सकारात्मक सोच,अच्छे कर्म, संयम,परिश्रम,
ईश्वर,बड़ों का आशीष,मित्रों व छोटों का प्रेम।

इनके नाम इस बार,एक दीया जरूर जलाना,
अपने संकुचित मन को जरा विशाल बनाना,
फिर देखो तुम,यह दिवाली होगी सबसे खास,
खुशी,उल्लास से होगा सबका दिल बाग बाग।

धर्म,जाति,वर्ग,ऊंच नीच,रंग भेद को भुलाकर,
जगाएं,खुशी खुशी सबके मन में प्रेम के भाव,
इस वसुंधरा पर मानव धर्म को सभी निभाएं,
आओ,खुशी से हम दिवाली का पर्व मनाएं।
 

डॉ बी निर्मला,
मैसूर,कर्नाटक,

विश्वकर्मा - दिलीप कुमार शर्मा "दीप"

 
























विश्वकर्मा.....
शिल्पकार, शिल्प प्रजापति,
आपके शिल्प  की महिमा गाते l
कर नमन शिल्प कला को 
विश्वकर्मा को शिश झुकाते l
देवों के लिए विश्वकर्मा आपने,
स्वर्ग लोक निर्माण किया ।
कुबेर की कुबेर नगरी बनाई ,
यम की यमपुरी का निर्माण किया।
शिल्प जगत में विश्वकर्मा के नाम का बजता है डंका, 
रावण के लिए तुमने बनाई,
श्रीलंका में सोने की लंका ।
वृंदावन ,सुदामा नगरी,
 द्वारिका तुमने बनाई ।
इंद्रप्रस्थ का निर्माण कर
पांडवों की नगरी बसाई ।
गरुड़ भवन ,पाताल लोक ,
विश्वकर्मा जी ने बनाया ।
शिल्पकला को इस जग में ,
जन-जन तक पहुंचाया ।
यमराज के लिए तुमने ,
काल पाश का काम किया।
ऋषि दधीचि की हड्डियों से
वज्र का निर्माण किया ।
करण के लिए कवच कुंडल ,
शिव त्रिशूल तुमने बनाया l
 पुष्पक विमान बनाकर तुमने ,
देव इंजीनियर पद पाया l
विष्णु जी का बना सुदर्शन
देवों में नाम कमाया ,
विश्वकर्मा के शिल्पकला को पूरे  जग ने अपनाया।

दिलीप कुमार शर्मा "दीप" देवास मध्य प्रदेश

दिवाली - अनन्तराम चौबे अनन्त

 
























राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य मंच हमारी वाणी
साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु
दिनांक ...25/10/2022
विषय.... दिवाली
नाम.. अनन्तराम चौबे अनन्त जबलपुर म प्र
कविता...    

          दिवाली 

चौदह वर्ष के वनवास के बाद
भगवान राम वापिस आए थे।
अयोध्या वासियों ने घर-घर में 
खुशियों से स्वागत दीप जलाए थे ।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस  
की वो काली रात अंधेरी भी थी ।
जगमग दीपों की रोशनी से पूरी
अयोध्या नगरी जगमगा ई थी ।

दीपों का पर्व दिवाली मनाएं 
सब मिल करके खुशी मनाएं ।
घर द्वारे आंगन को सजाएं ।
आंगन में अच्छी रंगोली बनाएं  ।

वंदन वारा द्वार लगाएं ।
पूजा घर को खूब सजाएं ।
लक्ष्मी जी की पूजा करके
मां लक्ष्मी से आशीर्वाद पाएं ।

सुख समृद्धि की करें कामना ।
घर द्वारे में घी के दीप जलाएं।
मां लक्ष्मी को शीश नवाएं ।
सारा सच है खुशी मनाएं।

दीपावली है दीप जलाएं ।
मिल जुल करके मीठा खाएं ।
दिवाली आई खुशियां मनाएं ।
बस दीप जलाएं दीप जलाएं ।

सारा सच पटाखों से परहेज़ करें 
बच्चों के साथ फुलझड़ी जलाएं।
धन लक्ष्मी की सब बचत करें
प्रदूषण को भी होने से बचाएं।

देशी मिट्टी के दीए खरीदकर
मिट्टी के ही सब दीए जलाएं ।           
घर को जगमग रोशन करके
दीपावली की खुशियां मनाएं ।

पास पड़ोस में मिठाईयां बांटें
दीपों का पर्व दिवाली मनाएं।
भाई चारा को बनाकर रखना
हिल मिल करके दीप जलाएं ।

सारा सच है दीप जलायेगे
दिवाली की खुशियां मनायेंगे।
बच्चों के साथ में खुश रहकर
बस मिट्टी के ही दीप जलाएंगे ।

पांच दिन दीवाली मनाते 
धनतेरस से शुरू होती है ।
छोटी दीवाली बड़ी दीपावली
गोवर्धन पूजा भाईदोज होती है।

अंधकार को दूर भगाकर
दीपों से प्रकाश रोशन होता है।
दीपावली का पर्व सभी को
खुशियों से जगमग कर देता है।

 अनन्तराम चौबे अनन्त
  जबलपुर म प्र