Friday, 10 February 2023

अतिथि - प्रीति एम

 


अतिथि
‘अतिथि’ - माने जिसके आने की तिथि मालूम ना हो| हमारी भारतीय संस्कृति में ‘अतिथि देवो भव:’ की मान्यता प्रचलित है| हमने अपने बचपन में कहानियों में सुना ही होगा कि किसी किसान के घर रात को किसी अतिथि ने शरण ली और सुबह अपनी राह पर निकल गया| 
लेकिन आज परिस्थित बिलकुल अलग है| पहले तो आजकल के भागदौड़ की जिंदगी में किसी के पास समय ही नहीं है कि कोई किसी का अतिथि बने या किसी का आतिथ्य स्वीकार करें| 
मैं आपको आज अच्छे अतिथि बनने के कुछ गुण बताती हूँ| किसी का अतिथि बनने के पहले उनसे फ़ोन पर पूछ लें कि आप उनके घर जाने की सोच रहे हैं और क्या वे उस समय उपलब्ध होंगे..? उनके किसी अन्य सवाल के पहले ही आप अपने आने-जाने के प्रयोजन की विस्तृत जानकारी देनी उन्हें दे दें कि आप कब आएँगे, कब जाएँगे, कितने दिन रूकेंगे आदि| ऐसा करने से आप आसानी से समझ जाएँगे कि उनकी दृष्टि में आप किस श्रेणी के अतिथि हैं| अगर उन्होंने ने आपके आने-जाने के प्रयोजन की ज़्यादा थाह लेनी चाही तो ना जाइए, अपनी मान-सम्मान की रक्षा स्वयं करें| और हाँ कभी भी खाली हाथ न जाएँ, निकलते समय बच्चे को हाथ में कुछ पैसे दे दें|
अब मैं आपको आतिथ्य करने के गुण बताती हूँ| ये तो आपको पहले से ही पता है कि कौन-कब और कितने दिनों के लिए आने वाला है| आप उसके अनुसार अपना घर व्यवस्थित कर लें| बेकार इधर-उधर पड़ी चीज़ों को उनके रहने तक छिपा दें| खाने की मेनू में कब-क्या बनेगा निर्धारित कर लें| अगर कोई बहुत करीबी है तो उसकी विदाई का भी बंदोबस्त भी करें| अतिथि के कुछ लेकर आने पर ऐसा अवश्य कहें कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी| और हाँ ना चाहते हुए भी चेहरे पर मुसकान रखें| 
थोड़े शब्दों में मैंने आपको आज के जमाने के गुढ़ रहस्य के बारे में बताने का प्रयास किया है| सच यह है कि हमें इस पर बदली हुई रीति पर सोच-विचार करने की ज़रूरत है कि क्या हमारी सभ्यता-संस्कृति यही सिखाती है जिसपर हमें गर्व है...!?!  सोचिए कि क्या किसी के घर आने-जाने के लिए इतनी औपचारिकता आवश्यक है..?!
प्रीति एम
बैंगलोर (कर्नाटक)

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