परिवार और आधुनिकता
परिवार का अर्थ ही अपने आप में सम्पूर्ण है, "परिवार"- यह शब्द कितना भरा भरा सा लगता है कितना मार्मिक, निश्छल और मन को एक सूंदर सा अंतरात्मा को तृप्त कर देने वाला एक अहसास जिस का नाम "परिवार " है| परन्तु आजकल के भौतिकवादी अर्थ युग में हम दिन प्रतिदिन इस परिवार रूपी संसार को लुप्त करते जा रहे है! जिसका पूरा खामियाजिया हमारी आने वाली नस्लों को भुगतना पड़ेगा! जिस प्रकार हमारे बचपन में बालदिवस जोरशोर से मनाया जाता था और देखते ही देखते आजकल बालदिवस बस एक शब्द मात्र ही रह गया है| उस प्रकार हम हर चीज को एक दिवस के रूप में मना कर अपनी मन रूपी तृष्णा तो शांत करने की कोशिश करते है, लेकिन हम सभी अपने अंतर्मन में चल रहे ज्वार को पहचान नहीं पा रहे है की कब ये एक दिन का दिवस मनाना बंद करके हम अपने परिवार रूपी बगिया की गोद में बैठ कर इस जीवन का पूर्ण आनंद प्राप्त करे जो की परिवार के साथ ही संभव हो सकता है ! हम एक दिन के परिवार दिवस के द्वारा बचपने में नहीं जा सकते क्यों की जिस प्रकार परिवार में मुखिया एक रेल गाड़ी के डिब्बों रूपी परिवार को एक साथ चलाने के लिए इंजन को हमेशा अपने आप को ऊर्जावान रखना होता है उस प्रकार, हर घर का मुखिया अपने आप को ऊर्जावान बनाकर निस्वार्थ और निश्छल भाव बिना किसी भेदभाव के परिवार के साथ मार्ग दर्शन कर परिवार की एकरूपता को बना सकते है|परिवार दिवस सभी मानव जाति के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि इसका काम आजकल के आधुनिक समय में युवा पीढ़ी के बीच परिवारों के महत्व के बारे में जानकारी और परिवार के अहमीयत के प्रति जागरूकता पैदा करना है। सभी लोग आज कल एकांकी जीवन शैली की तरफ आकर्षित हो रहे है जिससे समाज के द्वारा बनाई गई अद्भुत चीज से दूर होते जा रहे है जिसे परिवार कहा जाता है|यह दिवस उन सब लोगो के लिया एक आदर्श दिन है जो लोग अपने परिवार से दूर है और परिवार के साथ दिवस बिताना चाहते है ये उनके लिया एक मौका है अपने परिवार के साथ समय व्यतीत कर सके और अपनी व्यथा और ख़ुशी सभी परिवार के साथ बाँट सके। परिवार कुछ लोगो के साथ रहने भर से नहीं बनता बल्कि परिवार का मतलब लोगो के साथ रहने और सुख-दुःख में साथ देना और एक दूसरे का आदर सत्कार करना बड़ो की बात की अवेहलना नहीं करना और सभी एक दूसरे की बात को तवज्जो दे और प्रेमभाव से आदरपूर्वक शांति से रहे यही परिवार और सुखी परिवार हो सकता है जिसमे रिश्ते एक मजबूत डोरी से जुड़े हो विश्वास के सहारे सहयोग के अटूट बंधन में बंधे हो आपस में सुरक्षा की भावना मन में बसी हो। वैसे भी हमारी भारतीय संस्कृति वसुदेव कुटुम्बकम पर विश्वास करती है। परिवार एक संसाधन की तरह होता है जिसमे हर सदस्य की एक जिम्मेदारी अपने आप में बँटी हुए होती है। यह हम सभी का दायत्य है की इस प्यारे रिश्ते की गरिमा को लुप्त न होने दे।
दीपक कुमार शर्मा
जयपुर
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