*।। शहीदे आजम: सरदार भगत सिंह...।।*
सिंह गर्जना थी तुम में
साहस अदम्य, बल पौरुष था ।
मां भारती के अमर पुत्र
बुद्धि विवेक अपर बल था ।।
श्रेष्ठ विचारक, लेखक, चिंतक
वक्ता प्रखर , अद्भुत गुण था ।
मन था शांत , ज्वाला थी उर में
उच्च कोटि का सद्गुण था ।।
देश घिरा जब निर्मम - निर्दय
अंग्रेजी अत्याचारों से ।
भारत माता चीख उठी थी
संगीनों के घातक वारों से ।।
गूंज उठा था आसमान भी
इंकलाब के नारों से ।
सोई धरती जाग उठी थी
रणबांकुरों के हुंकारों से ।।
धधक उठी उर में ज्वाला जब
देश घिरा अंधियारों से ।
बांध कफ़न मर मिटे वतन पर
डरे नहीं तलवारों से ।।
शूल सदृश बन चुभ रहा था
जलियांवाला बाग हृदय में ।
काकोरी के शूरवीर भी
लीन हुए थे चिरनिंद्रा में ।।
राजगुरु, सुखदेव साथ मिल
साण्डर्स को उठा दिया ।
असेंबली में देकर संदेश
अपना पौरुष दिखा दिया ।।
राष्ट्रभक्त, सच्चे प्रहरी बन
क्रांति का सूत्रपात किया ।
अंग्रेजी शासन से नहीं डरेंगे
युवकों को नव राह दिया ।।
मुखर हो उठी क्रान्ति देश में
जनता में नवयौवन आया ।
नौजवान संगठन बनाकर
आजादी का बिगुल बजाया ।।
चिरनिंद्रा में शांत सो गए
अक्षय अचल यह नाम रहेगा ।
नमन तुम्हें हे ! क्रांतिवीर
तुम पर गौरव अभिमान रहेगा ।।
*______ आर सी यादव*
दिल्ली
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