प्रा.गायकवाड विलास लातूर महाराष्ट्र
*सारा सच प्रतियोगिता के लिए रचना*
**विषय:आजादी*
**आज़ादी की लड़ाई*
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(विधा: छंदमुक्त)
लहू की बहती नदियां हमें याद नहीं आती,
शहिदों के बलिदानों की कुर्बानी हमें याद नहीं आती।
आजादी जिसने भी दिलवाई हमें यहां पर,
उनकी उजड़ी हुई दुनिया हमें याद नहीं आती।
कोई लटक गये यहां फांसी के फंदों पर,
कितने हो गए यहां मातृभूमि के लिए बेघर।
ऐसे देशभक्तों की चीखें,चीर गई वो आसमां,
आवाज़ उन सभी देशभक्तों की हमें सुनाई नहीं देती।
आज लहराकर तिरंगा करते है हम अभिवादन,
उसी तिरंगे की छांव में खिल रहा है ये प्यारा चमन।
अब डर नहीं है हमें यहां किसी फिरंगियों का,
उसी फिरंगियों के जुल्मों की कहानी हमें याद नहीं आती।
पढ़कर वो इतिहास के पन्नें जगाओ तुम मन में देशभक्ति,
वही लहराता तिरंगा देखकर करो तुम नई क्रांति।
यही कह रही है,अपनी ये मातृभूमि सभी देशवासियों को,
सिर्फ आजादी का महोत्सव मनाकर नहीं होती प्रगति और उन्नति।
कोई मतलब नहीं,उनकी जयंती समारोह मनाने में,
कोई मतलब नहीं,युंही उनको याद करने में।
उनके दिखाए गए सभी रास्ते विरान पड़े हैं यहां,
इतने बदले है लोग यहां,जिन्हें ज़रा भी शर्म हया नहीं आती।
धन के सिवा कोई और उद्देश नहीं है सबका यहां,
अब ढूंढकर भी नहीं मिलेगा कल का वो प्यारा जहां।
वही भूमि है,वही आसमां है आज भी कल का यहां पर,
फिर भी इस सारे संसार को,कोई क्रांति याद नहीं आती।
लहू की बहती नदियां हमें याद नहीं आती,
शहिदों के बलिदानों की कुर्बानी हमें याद नहीं आती।
"सत्य मेव जयते"की यही है प्रगति और नई उन्नति,
लहराते तिरंगे की छांव में भी हमें आज़ादी की लड़ाई याद नहीं आती।
वो इतिहास के पन्ने सिर्फ पढ़ने के लिए रखें नहीं है यहां पर,
उसी पन्नों पन्नों पर शहिदों की कुर्बानी हमें नज़र आती है।
भूलो मत कभी उनके लहू का कतरा-कतरा मेरे देशवासियों,
उन्हीं शहिदों के लहू से ही यहां पर इसी लहराते तिरंगे का जन्म हुआ है।
प्रा.गायकवाड विलास.
मिलिंद महाविद्यालय लातूर.
महाराष्ट्र
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