राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य मंच हमारी वाणी
साप्ताहिक प्रतियोगिता हेतु
विषय ...अतिथि
नाम.. अनन्तराम चौबे अनन्त जबलपुर म प्र
कविता...
अतिथि
घर में मेहमान कोई जब आए
स्वागत उसका सब करते हैं ।
अतिथि का वो रूप होता है
श्रद्धा भाव से उससे मिलते हैं ।
घर परिवार की परम्परा है
जो बुजुर्गों ने हमें सिखाया है ।
आदर सत्कार सभी का करना
जो माता पिता ने सिखाया है ।
अतिथि भगवान का रूप होता है
कब किस रूप मिल जाते हैं ।
भगवान का कोई रूप न होता
अतिथि के रूप में आ जाते हैं ।
विरासत में मिली परम्पराओं
को हम सबको भी निभानी है ।
जैसा करेंगे वैसा ही पायेंगे
सारा सच यही सच्ची कहानी है ।
अतिथि के साथ जो जैसा करेगा
अतिथि बनने में उसे वहीं मिलेगा।
पेड़ बबूल का जब लगाओगे तो
खाने मीठा आम कहां से मिलेगा ।
सच्चाई और सही मार्ग ही
सच्ची राह पर ले जाता है ।
जीवन का सत्कर्म यही है
सारा सच जीवन पार लगाता है ।
मेहमान कोई घर में आए
सारा सच अतिथि होता है ।
अतिथि का स्वागत करना
यही तो फर्ज हमारा होता है ।
भगवान विष्णु ने वामन रूप धर
अतिथि बन राजा बलि घर आए थे।
राजा की परीक्षा लेने के लिए
दान में तीन पग धरती मांगे थे।
अतिथि की मांग पूरा करने
राजा उसको स्वीकार किए थे ।
एक पग में आकाश दूसरे में
धरती को ही नाप लिए थे ।
तीसरा पग अभी बाकी था
उसके लिए राजा स्वयं लेट गए थे ।
राजा ने सिर पर पैर रखवाकर
अतिथि की इच्छा पूरी किए थे।
अनन्तराम चौबे अनन्त
जबलपुर म प्र
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