Friday, 10 February 2023

अतिथि - डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'

 























*अतिथि*

भारतीय संस्कृति में अतिथि को 
भगवान समान माना गया है
'अतिथि देवो भव' वाक्यांश तैत्तिरीयोपनिषद से लिया गया है
अतिथि के आने का न उद्देश्य ज्ञात होता है न समय
अतिथि का सत्कार करना, है हमारा कर्तव्य 
जिसने अतिथि को चरण धोने को जल दिया
मुसीबत उनके घर कभी नहीं आती, ऐसा हमें है बताया गया
अतिथि के चरणों की धूल 
जिस घर में आती 
वह घर पवित्र हो जाता है, 
खुशियाँ वहाँ दौड़ी आती

बड़े भाग्यशाली होते हैं वे जिनके घर अतिथि आते
अतिथि का सत्कार कर, वे तो पुण्य कमाते 
बाल्मीकि मुनि के आश्रम जब 
राम जी आए
बाल्मीकि जी अतिथि राम को प्राण प्रिय पाए
अतिथि के सामने आतिथेय सदा ही छोटा होता  है
अतिथि सत्कार कर आतिथेय पु्ण्य का भागी होता है 
कबूतर ने आग जलाकर बहेलिये का जान बचाया
अपने प्राण दे कर 
वह अतिथि धर्म निभाया
एक पक्षी होकर कबूतर जब ऐसा कर सकता है
फिर अतिथि सत्कार में 
मानव कैसे कमी कर सकता है
यदि अतिथि को मान नहीं दिये तो पढ़ाई लिखाई है बेकार
अतिथि हमारे पूज्य होते हैं, करो इनके साथ सद्व्यवहार
अतिथि सत्कार करो, ये हैं देव समान
न जाने किस रूप में कब आ जायें भगवान

डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'
वेस्ट बंगाल 

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