*सारा सच प्रतियोगिता के लिए रचना*
**विषय:बालिका दिवस*
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*बेटियां बेजुबान होती है*
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(मुक्तछंद काव्य रचना)
बालिका दिवस सभी मनाते है इस जहां में,
मगर उन्हें बेटों जैसा कभी प्यार नहीं मिलता।
ज्ञानी हो या अज्ञानी हो सभी है एक जैसे,
बेटियों में उन्हें कभी अपना बेटा नहीं दिखता।
जो करते नहीं भेदभाव बेटा और बेटीयों में,
ऐसे ही लोगों को यहां बालिका दिवस मनाने का अधिकार है।
बेटियां भी नहीं होती,बेटों से कम इस संसार में,
बेटियां तो घर-घर की अनुपम खुशियां होती है।
कभी उनकी पायल की खनक सुनो,
कभी उनके नयनों में सजे ख्वाब देखो,
कभी कुछ ना कहते हुए भी वो ,
सबकुछ कहकर रह जाती है ।
उनके भी होते है कई अरमान ,
वो भी छूना चाहती है आसमान,
फूलों जैसी कोमल खिलती कली वो,
युंही मन मन में मुरझाती है ।
कुछ कहने की वो हिम्मत जुटा नहीं पाती,
अंदर ही अंदर से वो है पल-पल जलती,
ख्वाब अपने सीने में दफन करके,
युंही वो हर पल है यहां मुस्कुराती।
बेटियों पर कर लो गर्व मन से ,
बेटियां रिश्तों की नाजुक डोर होती है,
बेटियां होती है ममता का गहरा सागर,
बेटियां निर्मल गंगा सी बहती धारा है।
बेटियों के बिना आंगन लगता है सुना सुना,
बेटियां घर-घर की रौनक होती है,
बेटियां हंसती है तो आती है बहार,
पढ़ लो उसके मनकों कभी बेटियां बेजुबान होती है।
प्रा.गायकवाड विलास.
मिलिंद महाविद्यालय लातूर.
महाराष्ट्र
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