Friday, 28 March 2025

राजगुरु - डॉ० उषा पाण्डेय



 राजगुरु - डॉ० उषा पाण्डेय

https://sarasach.com/?p=404


भारत माँ के वीर शहीदो, करते नमन हम हाथ जोड़कर। 
मिटा दिया खुद को आपने, अपने प्यारे वतन पर।
महान क्रांतिकारियों में, राजगुरु का नाम है एक।
उम्र थी छोटी, पर खूबियाँ थीं अनेक।
हरिनारायण जी और पार्वती जी के लाडले,  चौबीस अगस्त उन्नीस सौ आठ को धरा पर आये।
'शिव राम हरि राजगुरु' नाम पाये।
निज सुख की परवाह नहीं की, देश पर खुद को वार दिये।
निज स्वार्थ को परे रखें, देश को सर्वोच्च स्थान दिये।
लाला लाजपत राय जी की, खून का बदला लिये।
साथियों के साथ मिलकर, क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिये।
जान चली गई, पर पीछे नहीं हटे। 
देश आजाद कराना है, लिए प्रण और रहे डटे।
देश हित के लिए, किये खुद को न्योछावर।
देश भक्ति का जज्बा मन में, 
देशभक्त राजगुरु हो गये अमर।
उनकी देशभक्ति देख, अंग्रेजी सरकार थर्राई थी।
झूल गए फांसी के फंदे पर, चेहरे पर शिकन न आई थी।
तेईस मार्च उन्नीस सौ इकतीस को, उन्हें फांसी दी गई। 
भारत की जनता, दु:ख में डूब गई।
वतन के लिए जो मर मिटे, उनके लिए शब्द लाऊंँ कहाँ से।
भारत माता की रक्षा हेतु, जो हंँसते-हँसते चले गए जहाँ से।
देश सदा याद रखेगा, राजगुरु जी की कुर्बानी। 
देदिप्यमान रहेंगे सदा,
राजगुरु जी बलिदानी।
आप लोगों की शहादत से, देश हुआ आजाद। 
जब तक यह दुनिया रहेगी, 
हम सबको याद आयेंगे आप।
ऐसे वीर शहीद को हम,  कोटि-कोटि नमन करते हैं।
भारत माँ के इस वीर सपूत को,
श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।

डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'
स्वरचित

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भगत सिंह ने सच्चे देश भक्त के लिए प्राण न्यौछावर कर दिये - डॉ बी .आर .नलवाया मंदसौर


 

भगत सिंह ने सच्चे देश भक्त के लिए प्राण  न्यौछावर कर दिये - डॉ बी .आर .नलवाया मंदसौर

https://sarasach.com/?p=402

     भगतसिंह का जन्म 28 सितम्बर, 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो इस समय पाकिस्तान में है । भगतसिंह की उम्र 12 वर्ष थी, तब जलियांवाला बाग  हत्याकांड हुआ था,तब उन्होंने लहू से लाल हो चुकी बाग की मिट्ठी को अपनी मुट्ठी में  भरकर सौगंध ली "अग्रेजों को छोडूंगा नहीं।" "  जहां भगतसिंह की उम्र 12 वर्ष उस उम्र में बच्चे खेलते कूदते है, वही भगतसिंह के जैहन में तय हुआ ,कि वे अग्रेजों से खून की होली खेलेंगे। उसे उन्होंने कर दिखाया। उनके दिमाग तय लक्ष्य था -" अंग्रेजों का अंत"--- 
                        14 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह ने सरकारी, स्कूलों की पुस्तकें और कपड़े जला दिए। इसके बाद इनके पोस्टर गांवों में छपकर लगे । 
दूसरी ओर 9 अगस्त, 1925 को सरकारी खजाने की ट्रेन को लूट लिया। इस तरह वे क्रांतिकारी, देश भक्त ही नही बल्कि अध्ययनशील, विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतन, लेखक, पत्रकार के साथ महान क्रांतिकारी थे।
   वे अपने लेखों से क्रांतिकारी विचार रखते थे। अपने लेख में कई पूजी पतियों को अपना  शत्रु बताया। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय क्यों ना हो , वह उनका शत्रु है।
      वे सच्चे देश भक्त थे, जिन्होंने अपना जीवन  देश की आजादी के लिए समर्पित किया। उनके आदर्श और सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक है। उनका संघर्ष-समाजवाद‌और समानता, देश की आजादी और स्वतंत्रता, शिक्षा और जागरूकता, साम्राज्यवाद पर था।
    अग्रेजों ने कहा फांसी  की तारीख नजदीक है- माफी माँग ‌लो , भगत सिंह
 जान बच जाएगी। उन्होंने लिखा कि___
                मुझे फांसी ना दी जाए ,क्यों कि फांसी तो अपराधी को दी जाती है, और मैं तो क्रांतिकारी हूँ। उन्होने कहा-मैं भारत माँ  का सच्चा सिपाही  हू ,गोली मार ही जाए, गोली से मरने में ही सिपाही की शान है। सरकार की मंशा पूरी नहीं हुई और भगतसिंह को फांसी दे दी गई। इस् तरह 23 मार्च,1931 को  भगत सिंह के साथ राजगुरु और सुखदेव को लाहौर जेल में फांसी दी  गई थी।

डॉ बी .आर .नलवाया मंदसौर

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शहीद दिवस - अनन्तराम चौबे अनन्त



शहीद दिवस - अनन्तराम चौबे अनन्त

https://sarasach.com/?p=399

शहीदों की शहादत पर 
क्या लिखूं कुछ समझ न आए।

हाथ कांपते हाल जो लिखते 
कलम भी कुछ भी लिख न पाएं ।

युद्ध में कोई जवान जब
सारा सच शहीद  होता है ।

सर्दी गर्मी या बरसात हो
सरहद में सतर्क रहते हैं ।

देश की रक्षा में अपना
जीवन बलिदान करते है ।

कृन्दन से डूबे मन के भावों से
आंखों से अश्रु धार बहती है।

कृन्दन करतीं मां बहिन बेटियां
पत्नी का दुख भी रहा न जाए।

पिता पति और पुत्र के हाल भी
इन कांपते हाथों से लिखे न जाए 

देश के वीर जवान सभी इन
रिश्तों को बिलखता छोड़ गये।

शहीदों की इस शहादत को
बारम्बार सब नमन करते हैं।

श्रद्धा सुमन हम अर्पित करते हैं
नमन वंदन और सलाम करते हैं।

शहीदों की इस शहादत को
अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली अर्पित है ।

सारा सच सेवा से उन शहीदों ने 
अपने प्राणों की बाजी लगाई है ।

वीर शहीदों की शहादत को
नमन वंदन हम सब करते हैं ।

माता बहिनों के कृन्दन को
देखकर मन भी विचलित है।

सारा सच कम्पन हाथों में होती
कलम से लिखने में कांपती है ।

सारा सच देश को आजाद कराने में 
शहीदों ने अपनी जान गंवाई थी।

महारानी लक्ष्मीबाई भगतसिंह
सुखदेव राजगुरु ने जान गंवाई थी ।

चंद्रशेखर आजाद सुभाष चन्द्र बोस
देश की कुर्बानी पर जान गंवाई थी ।

ऐसे वीर शहीदों को नमन करते हैं
शहीदों को शत शत प्रणाम करते हैं ।

सारा सच शहीदों पर क्या लिखूं 
मन के भावों को कैसे लिख पाऊं ।

युद्ध में शहीद हुए  जवानों को
बारम्बार नमन वंदन करते हैं ।

वीर शहीदों की कुर्बानी को
श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं ।

 अनन्तराम चौबे अनन्त

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शहीद दिवस - डॉ० अशोक



 शहीद दिवस - डॉ० अशोक

https://sarasach.com/?p=397

[ कविता ]
२३ मार्च और ३० जनवरी पर,
एक हकीकत सामने आती है।
शहादत को सलाम करते हुए,
उनकी आवाजें,
सुनने हम-सब बेताबी की कोशिश कर,
आंखों में आसूं भरकर,
श्रद्धांजलि दी जाती है।

इसकी  अहमियत तो है,
तकलीफें देती है,
परन्तु देश की आजादी मिलने की खुशियां हमें,
उमंग और उत्साह से रहने की,
हमेशा हृदय में पाने की,
सही वजह बताती है।
सब लोग कसमें खाते हैं,
इसकी वजह से ही,
सही मुकाम पर पहुंचने की,
सबको रहती ललक है।

सारा सच की बेजोड़ धार में,
हम-सब राष्ट्रीयता को,
न भूलने की सदैव क़सम खाते हैं।
शहीदों की कुर्बानियां जो दी गई है,
उसकी असली वज़ह से,
रूबरू होना ही,
अपनी मकसद समझते हैं।

साहित्य और संस्कृति को,
सारा सच के मार्फत से,
एक खूबसूरत सांस्कृतिक विरासत को,
सम्भालकर रखने की,
हिम्मत मिली है।
ज्ञान विज्ञान और तकनीक तो एक वजह है,
कला और संस्कृति को,
ताक़त दिखाते हुए,
सबकी खिदमत में,
हमेशा मिली-जुली है।

यही हमारी दुनिया है,
खूबसूरत विशालकाय धरोहर है।
इन्हीं आत्माओं की वजह से ही हम-सब में,
अद्भुत एवं तत्पर रहते हुए,
उम्मीद बनाएं रखने की ताकत देने वाली,
सहचर और रंगीनियां है।

यही जिंदगी है,
सारा सच की बेजोड़ धार है।
हमारी संस्कृति की,
सबसे प्रबल खेवनहार है।
हमें अपने दिल में अपने महान् क्रान्तिकारी महापुरुषों को,
याद करने की विधा सिखाती है।
आर्यावर्त भरतखण्ड की संस्कृति से,
इन्हीं खूबसूरत अदाओं से,
जगाती और सुकून देते हुए,
निर्भीक भारतीय होने का,
हमेशा आगे बढ़ने की ,
ताकतवर गुरूर दे जाती है।

सारी दुनिया में इस पवित्र अभियान की,
कोशिश को सलाम और दुआएं भरपूर मिले,
यही हम-सब की आवाज है।
क़लम और विधा की,
सबसे खूबसूरत साजबाज है।
नन्ही दुनिया में एक सुखद अहसास है,
सारा सच की बेजोड़ कोशिश पर,
हरेक भारतीयों को,
सही और पक्का विश्वास है।

डॉ० अशोक, पटना, बिहार।

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तार तार होती मिथिला की संस्कृति - प्रदीप कुमार नायक

 


तार तार होती मिथिला की संस्कृति - प्रदीप कुमार नायक 

https://sarasach.com/?p=395

 मिथिला महोत्सव बनाम अश्लील कार्य प्रणाली प्रशासन मौन क्यों ?
                 प्रदीप कुमार नायक 
            स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार 
               पर्यटन विभाग, बिहार सरकार और जिला प्रशासन मधुबनी के संयुक्त तत्वाधान में 20 और 21 मार्च को संध्याकालीन सत्र में आयोजित मिथिला महोत्सव मनाएं जाने में मिथिला की संस्कृति से आज की नई पीढ़ी को जोड़ने का उद्देश्य सहज निहित हैं l क्या यही मिथिला की संस्कृति हैं l जहां मंच पर कलाकार अश्लीलता परोसती और उतने ही मजे उठाते प्रशासन के साथ दर्शक l
                 मिथिला महोत्सव में मैथिली संस्कृति ,मैथिली गायन , झिझीयां नृत्य , मैथिली भक्ति गीत, लोकगीत ,विवाह गीत शिव नचारी तथा मैथिली सभ्यता को दिखाना चाहिए न कि हिन्दी फूहड़ गाने पर अश्लीलता l आज स्वतंत्रता की परिभाषा नारी समाज के लिए बदलती जा रही हैं l क्योंकि जिस तरह मधुबनी वॉटसन हाई स्कूल के मैदान में मिथिला महोत्सव का आयोजन किया गया l इससे तो यही प्रतीत होता है कि मंच पर उपस्थित सिंगर अपने पहनावे अपने खुद के फैसले लेती हैं l क्या इस पर मर्द समाज को आंखे मूंद लेनी चाहिए l जहां क्लेक्टिव डांस,गाने ने मिथिला के संस्कृति को धूमिल कर दिया हैं l मिथिला की धरती जहां पर रियासतों द्वारा तहजीब व परंपराओं की ऊंची इमारतें खड़ी की गई हैं l समय के साथ वे दीवारे दरक रही हैं l अश्लीलता सारी हदें पार रही हैं , जिससे बच्चों की मानसिक स्थिति पर खराब असर पड़ रही है l लोगों को गढ़ने की जिम्मेदारी जिन पर हैं, वे कितने संवेदनशील हैं और किस तरह के मूल्यों व संस्कारों के वाहक हैं l आज लगता हैं कि सब कुछ बिकाऊ हो गया हैं l इसकी वजह केवल एक ही हैं मीडिया तथा सरकारी मानसिकता l सरकार को चाहिए कि वे अश्लील महोत्सव और साहित्य पर रोक लगाएं l इसे रोकने के लिए समाज को आगे आना चाहिए l
                   क्या महिलाएं कुछ भी कर सकती है और कुछ भी पहन भी सकती है!मर्द समाज को अपनी आँखे बन्द कर लेनी चाहिए!आखिर कहाँ से कहाँ आ गए हम!यह एक विचारणीय प्रश्न है ? किसी विवाह समारोह, पार्टी या सड़को पर पुरुष के पेंट की जीप भी खुली रह जाय तो वो बड़ा लज्जित महसूस करता है!वहीं कुछ अभिजात्य और आधुनिक वर्ग की महिलाएं जब तक अपनी उधड़ी हुई पीठ, नाभि दर्शन और अध खुले वक्ष न दिखा दे, उसके कलेजे को ठंडक नहीं मिलती है!संस्कारित मातृशक्ति इसे अन्यथा न ले l पर जो सत्य है वो सत्य है और कड़वा भी l एक युद्ध इस पाश्चात्य संस्कृति के खिलाफ भी लड़ना पड़ेगा, जिन्होंने सनातन की मर्यादा को तार -तार कर रखी है!
                 मिथिला महोत्सव में कलाकारों  के रियलिटी शो, डांस स्टेज प्रोग्राम देख लीजिए l वे कैसे कैसे हिन्दी फ़िल्मी गानों पर डांस करते है या फिर गाते हैं l कमरिया करे लपालप ,मेरी आज्ञा का , याद आ रहा हैं,ये कैसा जादू डाला रे , जवानी जाने मन, जिमी जिमी आजा आजा , ये कैसा जादू डाला रे जैसे गानों पर डांस करते है !उधर बच्चों के माता -पिता एवं अभिभावक खूब तालियां बजाते है!पब्लिक रियलिटी शो, डांस कांपटिशन और स्टेज प्रोग्राम एवं बिग बॉस भी इसी श्रेणी में आते है!शर्म और हया कहाँ बची है? क्या शर्म और हया से मिथिला के समाज मुक्त हो सकता है ? बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं देंगे!बल्गर विज्ञापन दिखाएंगे!सिनेमा दिखाएंगे और फिर बात करेंगे कि बारह -चौदह वर्ष के बच्चे बच्चियां घर से भाग रहें है !दरअसल,हमारा समाज धीरे धीरे टूट रहा है l कहीं से तो कोई आवाज़ इनके खिलाफ नहीं उठता,ना माता -पिता आवाज़ उठाते है और ना समाज उठाता है l 
                              औरतों की पहचान,उसके चरित्र रसोई घर में होती है और जो औरतें सिर्फ फैशन और अंग प्रदर्शन में ही लगी रहती है,वह घर नहीं बसा सकती है!इस बात की उदाहरण से पूरा अमेरिका और यूरोप भरा पड़ा है ! अब भारत के मिथिलांचल में भी शुरू हो गया है,जो कि बड़े शहरों के अलावा छोटे शहरों व बाजारों में भी दिख जाएगा!हमारा समाज कहाँ पहुंच गया है!ऐसी घटनाओं का विस्फोट इस समाज में क्यों हो रहा है? इसके मूल में क्या है ? ऐसा अनेकों प्रश्न है,जिसका जबाब किसी के पास नहीं है l आज आधुनिकता तथा भौतिकता के दौर में जिस तरह नारी समाज की स्वतंत्रता तथा समानता की चहुओर बात हो रही तथा भारत जैसे राष्ट्र में उसे संवैधानिक दर्जा दिया जा रहा हैं l क्या इस तरह की स्वच्छंदता उचित हैं ?

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मुस्कान,सौरभ और शाहिल 'आल्हा काण्ड' - आनन्द पाण्डेय


मुस्कान,सौरभ और शाहिल 'आल्हा काण्ड'

https://sarasach.com/?p=392

कलयुग की मैं कथा सुनाऊँ
सुन लो मित्रों ध्यान लगाय।
नारी नर संहारक हो गई
अब नहीं अबला रही रे भाय
घटना हृदय विदारक हो गई।

मेरठ मिरुट की है घटना
पति परदेश था गया कमाय
पत्नी मना रही रंगरेलियाँ
प्रेमी के संग ईश्क लड़ाय

पति सौरभ राजपूत था भइया
पत्नी तो मुस्कान कहाय
प्रेमी शाहिल शुक्ला रहता
पत्नी के संग ईश्क लड़ाय

जन्मदिन मुस्कान का आया 
सौरभ गया फ्लाइट से आय
स्वर्ग बना था घर और आंगन
मना जन्मदिन केक कटाय

पति पत्नी हैं चले घूमने
शिमला और मनाली जाय
प्रेम के जगह दरार बढ़ रहा
रिस्ते में कड़वाहट लाय

प्रेमी से तब कही प्रेमिका
मार पति को दो दफनाय
साजिस रचने लगे हैं दोनो
शिमला से गए घर को आय

मौत का ताण्डव सुरू हुआ है
पत्नी ने ड्रम लिया मगाय
उधर प्रेमी साहिल भी चाकू
में रहा अपने सांग धराय

खाना पीना हुआ प्यार से
पति पत्नी गए सोने आय
गहरी नींद में हुआ पती जब
पत्नी ने दिया छूरी चलाय

ताबड़ तोड़ जब लगी मारने
साहिल भी दिया हाथ लगाय
चाकू से तब छलनी करके
पति सौरभ को दिया मुआय

बाथरूम में लाश लेआए
पन्द्रह बोटी दिया बनाय
मार काटकर लाश बिछाए
निर्मम हत्या जो कहलाय

एक एक बोटी डाल डरम में
सिमेंट से फिर दिया जमाय
मौत का जश्न मनाते दोनों
डीजे घर में रहे बजाय

नाच रही मुस्कान बेहया
चरस अफीम का घूँट लगाय
अधनंगे कपड़े पहनकर
जिस्म दिखाती ना सरमाय

भाई को जब पता चला है
फौरन पुलिश को लिया बुलाय
दोनों कातिल गए हैं पकड़े
जुर्म किए जो दिल दहलाय

खेज सनसनी खबर बनी है
हाहाकार मचा है भाय
कैसे सादी करेगा कोई
जब कातिल पत्नी बनजाय

विनती है आनन्द रतन की
हे ईश्वर तुम बनों सहाय
प्रेमीका से तुम बचाओ प्रेमी
पत्नी से लो पति बचाय।
✍️✍️
आनन्द पाण्डेय
उत्तर प्रदेश

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मकर संक्रान्ति 14 जनवरी से ऋतु में परिवर्तन - प्रदीप कुमार नायक

 मकर संक्रान्ति 14 जनवरी से ऋतु में परिवर्तन - प्रदीप कुमार नायक

 https://sarasach.com/?p=388

             स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकार 
          मकर संक्रान्ति मंगलवार 14, जनवरी  2025 को
मकर संक्रान्ति पुण्य काल - 09:03 से 17:52 अवधि - 08 घण्टे 49 मिनट्स
मकर संक्रान्ति महा पुण्य काल - 09:03 से 10:53  अवधि - 01 घण्टा 50 मिनट्स
मकर संक्रांति , इस सूर्य कर्क रेखा से होता हुआ मकर राशि में प्रवेश का है। इस दिन सूर्य उत्तारायण बनाता है। भारत में मकर संक्रांति को कृषि पर्व के रूप में देखा जाता है। 
                   मकर संक्रांति ,,14 जनवरी को मनाई जाती है। इस दिन सूर्य उत्तरायण होता है, जबकि उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार इसी दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है।
ज्यादातर हिंदू त्यौहारों की गणना चंद्रमा पर आधारित पंचांग के द्वारा की जाती है लेकिन मकर संक्रांति पर्व सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना से मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में परिवर्तन होने लगता है। शरद ऋतु क्षीण होने लगती है और बसंत का आगमन शुरू हो जाता है। इसके फलस्वरूप दिन लंबे होने लगते हैं और रातें छोटी हो जाती है।
*मकर संक्रांति का महत्व*
*धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण*
                      भारत में धार्मिक और सांस्कृतिक नजरिये से मकर संक्रांति का बड़ा ही महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। चूंकि शनि मकर व कर्क राशि का स्वामी है। लिहाजा यह पर्व पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है।
                        एक अन्य कथा के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। बताया जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा।
     फसलों की कटाई का त्यौहार
नई फसल और नई ऋतु के आगमन के तौर पर भी मकर संक्रांति धूमधाम से मनाई जाती है। पंजाब, यूपी, बिहार समेत तमिलनाडु में यह वक्त नई फसल काटने का होता है, इसलिए किसान मकर संक्रांति को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं। खेतों में गेहूं और धान की लहलहाती फसल किसानों की मेहनत का परिणाम होती है लेकिन यह सब ईश्वर और प्रकृति के आशीर्वाद से संभव होता है। पंजाब और जम्मू-कश्मीर में मकर संक्रांति को ’लोहड़ी’ के नाम से मनाया जाता है। तमिलनाडु में मकर संक्रांति ’पोंगल’ के तौर पर मनाई जाती है, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार में ’खिचड़ी’ के नाम से मकर संक्रांति मनाई जाती है। मकर संक्रांति पर कहीं खिचड़ी बनाई जाती है तो कहीं दही चूड़ा और तिल के लड्डू बनाये जाते हैं।
*लौकिक महत्व*
                  ऐसी मान्यता है कि जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर चलता है, इस दौरान सूर्य की किरणों को खराब माना गया है, लेकिन जब सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है, तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं। इस वजह से साधु-संत और वे लोग जो आध्यात्मिक क्रियाओं से जुड़े हैं उन्हें शांति और सिद्धि प्राप्त होती है। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो पूर्व के कड़वे अनुभवों को भुलकर मनुष्य आगे की ओर बढ़ता है। स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि, उत्तरायण के 6 माह के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं, तब पृथ्वी प्रकाशमय होती है, अत: इस प्रकाश में शरीर का त्याग करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और वह ब्रह्मा को प्राप्त होता है। महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने भी मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग किया था।
     मकर संक्रांति से जुड़े त्यौहार
भारत में मकर संक्रांति के दौरान जनवरी माह में नई फसल का आगमन होता है। इस मौके पर किसान फसल की कटाई के बाद इस त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं। भारत के हर राज्य में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।
*पोंगल*
                 पोंगल दक्षिण भारत में विशेषकर तमिलनाडु, केरल और आंध्रा प्रदेश में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है। पोंगल विशेष रूप से किसानों का पर्व है। इस मौके पर धान की फसल कटने के बाद लोग खुशी प्रकट करने के लिए पोंगल का त्यौहार मानते हैं। पोंगल का त्यौहार ’तइ’ नामक तमिल महीने की पहली तारीख यानि जनवरी के मध्य में मनाया जाता है। 3 दिन तक चलने वाला यह पर्व सूर्य और इंद्र देव को समर्पित है। पोंगल के माध्यम से लोग अच्छी बारिश, उपजाऊ भूमि और बेहतर फसल के लिए ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करते हैं। पोंगल पर्व के पहले दिन कूड़ा-कचरा जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी की पूजा होती है और तीसरे दिन पशु धन को पूजा जाता है।
*उत्तरायण*
                  उत्तरायण खासतौर पर गुजरात में मनाया जाने वाला पर्व है। नई फसल और ऋतु के आगमन पर यह पर्व 14 और 15 जनवरी को मनाया जाता है। इस मौके पर गुजरात में पतंग उड़ाई जाती है साथ ही पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जो दुनियाभर में मशहूर है। उत्तरायण पर्व पर व्रत रखा जाता है और तिल व मूंगफली दाने की चक्की बनाई जाती है।
*लोहड़ी*
                   लोहड़ी विशेष रूप से पंजाब में मनाया जाने वाला पर्व है, जो फसलों की कटाई के बाद 13 जनवरी को धूमधाम से मनाया जाता है। इस मौके पर शाम के समय होलिका जलाई जाती है और तिल, गुड़ और मक्का अग्नि को भोग के रूप में चढ़ाई जाती है।
*माघ/भोगली बिहू*
                 असम में माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू यानि भोगाली बिहू पर्व मनाया जाता है। भोगाली बिहू के मौके पर खान-पान धूमधाम से होता है। इस समय असम में तिल, चावल, नरियल और गन्ने की फसल अच्छी होती है। इसी से तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनाकर खाये और खिलाये जाते हैं। भोगाली बिहू पर भी होलिका जलाई जाती है और तिल व नरियल से बनाए व्यंजन अग्नि देवता को समर्पित किए जाते हैं। भोगली बिहू के मौके पर टेकेली भोंगा नामक खेल खेला जाता है साथ ही भैंसों की लड़ाई भी होती है।
*वैशाखी*
                     वैशाखी पंजाब में सिख समुदाय द्वारा मनाये जाने वाला एक प्रमुख त्यौहार है। वैशाखी के मौके पर पंजाब में गेहूं की फसल कटने लगती है और किसानों का घर खुशियों से भर जाता है। गेहूं को पंजाब के किसान कनक यानि सोना मानते हैं। वैशाखी के मौके पर पंजाब में मेले लगते हैं और लोग नाच गाकर अपनी खुशियों का इजहार करते हैं। नदियों और सरोवरों में स्नान के बाद लोग मंदिरों और गुरुद्वारों में दर्शन करने जाते हैं।
         मकर संक्रांति पर परंपराएं
हिंदू धर्म में मीठे पकवानों के बगैर हर त्यौहार अधूरा सा है। मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ से बने लड्डू और अन्य मीठे पकवान बनाने की परंपरा है। तिल और गुड़ के सेवन से ठंड के मौसम में शरीर को गर्मी मिलती है और यह स्वास्थ के लिए लाभदायक है। ऐसी मान्यता है कि, मकर संक्रांति के मौके पर मीठे पकवानों को खाने और खिलाने से रिश्तों में आई कड़वाहट दूरी होती है और हर हम एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ जीवन में आगे बढ़ते हैं। कहा यह भी जाता है कि मीठा खाने से वाणी और व्यवहार में मधुरता आती है और जीवन में खुशियों का संचार होता है। मकर संक्रांति के मौके पर सूर्य देव के पुत्र शनि के घर पहुंचने पर तिल और गुड़ की बनी मिठाई बांटी जाती है।तिल और गुड़ की मिठाई के अलावा मकर संक्रांति के मौके पर पतंग उड़ाने की भी परंपरा है। गुजरात और मध्य प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में मकर संक्रांति के दौरान पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर बच्चों से लेकर बड़े तक पतंगबाजी करते हैं। पतंग बाजी के दौरान पूरा आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से गुलजार हो जाता है।
                       तीर्थ दर्शन और मेले मकर संक्रांति के मौके पर देश के कई शहरों में मेले लगते हैं। खासकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दक्षिण भारत में बड़े मेलों का आयोजन होता है। इस मौके पर लाखों श्रद्धालु गंगा और अन्य पावन नदियों के तट पर स्नान और दान, धर्म करते हैं।            पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि, जो मनुष्य मकर संक्रांति पर देह का त्याग करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह जीवन-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है।सूर्य संस्कृति में मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है।
                       संत-महर्षियों के अनुसार इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है। संकल्प शक्ति बढ़ती है। ज्ञान तंतु विकसित होते हैं। मकर संक्रांति इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है। यह संपूर्ण भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में आयोजित होता है।
                          विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं- तिल जल से स्नान करना, तिल दान करना, तिल से बना भोजन, जल में तिल अर्पण, तिल से आहुति, तिल का उबटन लगाना।
                     सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं। मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य पात्रों को दान देना चाहिए।
रामायण काल से भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है। राम कथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है।
                          राजा भगीरथ सूर्यवंशी थे, जिन्होंने भगीरथ तप साधना के परिणामस्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध तर्पण किया था। तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है।
                        कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन मातु गंगे का पदार्पण हुआ था, वह मकर संक्रांति का दिन था। पावन गंगा जल के स्पर्श मात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था, 'मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी। गंगा जल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा।'
               महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था। उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रांति के अवसर पर प्रचलित है।
                        सूर्य की सातवीं किरण भारत वर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है। सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अर्द्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है।

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