Monday, 29 April 2024

सुनामी - पदमा तिवारी दमोह

 

सुनामी

देख सुन कर दिल होता आहत,
जलामय जलामय हो रहे घर द्वार।
कहर ईश का है भारी ,
कर रहे हैं भीषण प्रहार।।

एक दूजे का छूटा साथ,
बिछड़ गए घर परिवार।
कहीं मां बाप बच्चों से,
कहीं बच्चे कर रहे हाहाकार।।

 बरस गया कहर विनाश का,
मातम छाया संसार में।
मिट गया नामोनिशान,
मची तबाही संसार में।।

प्रकृति से भी छेड़खानी ही,
परेशान है कुदरत की मार से।
फैला है तांडव प्रलय का,
गरीब अमीर हो रहे जर्जर से।।

लहर भरती  उछाल
सुनामी का अंदेशा देती है।
मर जाते अनेकों जीव जंतु
संकट के बादल घेर लेती है।।

 सारा सच है कितने घर होते तबाह,
मंदिर मस्जिद सुने सुने।
घर अंगना में मचता क्रंदन,
उपवन हो जाते बिहूने।।

@पदमा तिवारी दमोह मध्य प्रदेश

बाढ़ - डॉ ०अशोक,पटना

बाढ़

यह नदी के जल का फैलाव है,
अक्सर सैलाब के नाम से,
बड़ी शिद्दत से जाना पहचाना जाता है।
तबाही और बर्बादी करते हुए,
जनजन तक दुखदाई सन्देश को,
पहुंचाने के लिए खड़ा हो जाता है।
यह विभीषिका और आपदा के रूप में,
सारी दुनिया में जाना जाता है।
तबाही और बर्बादी करते हुए,
जनजन तक कष्ट का भार देकर,
मुश्किल हालात को ख़ुद बनाता है।
सारा सच का अद्भुत त्याग,
एक खूबसूरत अन्दाज में दिया गया उपहार है।
बाढ़ और उसके प्रभाव से रूबरू कराने का,
यह कविता प्रतियोगिता एक,
सुन्दर व सुसंकृत संस्कार है।
प्राकृतिक और मानव निर्मित कारणों का,
बेमिसाल व अनूठी संयोजन है।
यहां तकलीफें बेइंतहा मोहब्बत को,
दूर करने का दिखता प्रयोजन है।
अत्यधिक जल प्रवाह ही बाढ़ की शोभा है,
 दुनिया को बर्बाद करने वाली,
कुरूप चेहरा लिए काली मानसिकता वाली,
दिखता तबाही से श्रृंगारित प्रभा है।
अत्यधिक वारिश अथवा हिमपात,
इसके महत्वपूर्ण व सटीक कारण हैं।
स्पष्ट और सतरंगी तरीके से ही,
हो सकता इसका सही सही निवारण है।
यह पशुधन और वनस्पति संग,
जन जन तक को प्रभावित कर,
दुनिया में तकलीफ़ का दौर लाता है।
सुकून और खुशियां से,
जहां को बेदखल कर सब खुशियां,
एक क्षण में छिनकर लें जाता है।
पेड़ लगाओ आन्दोलन और तटबंधों का निर्माण,
एक पारदर्शी तरीके से बाढ़ को रोकने का,
खूबसूरत प्रयास किया जाएं।
जल निकासी प्रबंधन और जलाशयों के निर्माण में,
अत्यधिक ध्यान दिया जाएं।
सारा सच आज़ यहां एक सार्थक युद्ध,
मजबूती से जोश के साथ लड़ रहा है।
बाढ़ की दमदार आहट को कमजोर,
दिल और दिमाग से यहां कर रहा है।

डॉ ०अशोक,पटना,बिहार

सुनामी की पीड़ा - तनु सैनी

 


सुनामी की पीड़ा 

खबर पढ़ने बैठे थे  बरामदे में , 
  लेकिन बारिश की बूंदों से अख़बार तर गया।
नजर पड़ी जब पहले पन्ने पर , 
चाय का प्याला हाथ में ही ठहर गया ।।
 पता चला देश का एक कोना  ,
        आपदा से जूझ रहा है।
शेष देश उस आपदाग्रस्त  कोने की
     पुकार से  गूँज रहा है ।।

समझ ना आया सुनामी की खबरें देखूँ,
 या देखूँ  उन आँखों की सुनामी को ।
या सुनू  विवशता से भरी उन ,
      शब्दों की जुबानी को ।।
कितने परिवारों की डोर रही न,
          कितने रिश्ते टूट गये ।
कितने लोग बेबस हुए और ,
     कितने बच्चें अनाथ छूट गये।।
उन लोगों को देने सांत्वना,
      सरकार कोष टटोल रही।
अखबारों की थी लम्बी कतारें  पर ,
     सारा सच न बोल सकी ।

माना  लाखों की  धन राशि भी ,
अपनों की कमी न पूरा कर पाई है।
देख उजड़ता आशियाना अपना ,
आँखें पल - पल  भर आई है ।।
देखा था सारा सच जिसने ,
   प्रकृति के विकराल  रूप का ।
 हृदय में करुणा - जल भर आता है ।
भूख से व्याकुल बाल -रूप का।।
जन- जन के सहयोग भाव से,
 पीड़ितों को सहारा तो मिल सकता है। 
डुबती नाव को मंजिल ना सही ,
किनारा तो मिल सकता है।।

तनु सैनी -,राजस्थान

कुदरत का कहर - तारिक़ रशीद

 


कुदरत का कहर

बाढ़ भूकंप सुनामी सब साथ आते देखा है मैंने
इंसानों पे इस कदर कुदरत का कहर देखा है मैंने
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सांप डंक मारके शर्मिंदा है आज रशीद 
मन में इंसानों के इतना ज़हर देखा है मैंने
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आती थी बच्चों की किलकारियां कभी आँगन से
सियासत में तबाह होते वो घर वो शहर देखा है मैंने
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मस्जिद के कबूतर मंदिर से दाना चुगने को सोचते है 
हवाओं में इस कदर नफरत का ज़हर देखा है मैंने
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सब है व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी के ज्ञान का असर
धर्म की राजनीति में बारूद बनता शहर देखा है मैंने
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कलम छुड़ाके थमा दिए राजनितिक झंडे
गरीबों का मुश्किल से गुजर-बसर देखा है मैंने
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सारा सच आये सामने अब कहा से रशीद 
सत्ता के क़दमों पे नतमस्तक सर देखा है मैंने
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     ©® तारिक़ रशीद

आफतों के संग संग ही - प्रा.गायकवाड विलास

 

विषय: बाढ़
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**आफतों के संग संग ही*- - 
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     (छंदमुक्त काव्य रचना)

कुदरत का सृष्टि चक्र चलता रहेगा निरंतर,
सुख दुखों की बहारें आती रहेगी बदल बदलकर।
बारिश के मौसम में जब भी आती है पानी की बाढ़,
तभी जगह-जगह पर दिखता है बर्बादी का मंजर।

पानी,पानी के बिना अधूरी है इस सृष्टि की कहानी,
पानी से ही हरी-भरी लहलहाती है ये सृष्टि सारी।
हद से ज्यादा जब हो जाती है बारिश कहीं पे भी,
तब यही बाढ़ सबकुछ ले जाती है छीनकर।

पेड़,पौधे,पशु पक्षी सभी की जरूरत है ये पानी,
पानी ही बना है इस सृष्टि के लिए जैसे कोई संजिवनी।
मगर जब यही बाढ़ बन जाता है आफत तो,
गांव-गांव,शहर-शहर छोड़ जाता है दुखों की निशानी।

बारिश के मौसम में जगह-जगह पर दिखता है बाढ़ का नजारा,
वही बाढ़ का पानी हर तरफ तबाही मचा देता है।
ऐसे कुदरती आफतों से बर्बाद होते है कई संसार,
उसी कुदरत के आगे सभी बन बैठे है यहां पे लाचार।

बाढ़ की तबाही यहां कौन कैसे रोक पायेगा,
कुदरती आफतें ये यहां पर आती जाती ही रहेगी।
बूंद-बूंद पानी का वो अनमोल है सारे जहां के लिए,
पानी बिना इस संसार में सुख समृद्धि की बहार कैसे आयेगी।

कुदरत का सृष्टि चक्र चलता रहेगा निरंतर,
सुख दुखों की बहारें आती रहेगी बदल बदलकर।
पानी से ही जुड़ा है सभी का जीवन यहां पर,
पानी है जीवन,पानी ही समृद्धि और उन्नति,पानी ही आधार।

आफतों के संग संग ही चलना है हमें जीवन में,
आफतों का ये सिलसिला यहीं सृष्टि चक्र की गतिविधियां है।
मुसीबतों के बिना नहीं हर कोई जिंदगी इस संसार में,
और कोई भी मुसीबतें यहां जिंदगी के सामने बड़ी नहीं है - - -

प्रा.गायकवाड विलास.
      महाराष्ट्र

भूकंप - प्रा.रोहिणी डावरे

 

भूकंप
                     प्रा.रोहिणी डावरे
                     महाराष्ट्र

क्यों आया जलजला
जीवन तबाह हो चला
कैसी आफत यह कैसी बला
पल भर में सब को दिया रूला।१।

बिखर चुके सारे परिवार
कैसे  मिले अपनों का प्यार
जहाँ तक जाती अपनी नजर
मिट्टी के ढेर सा बना मंजर।२।

अपनों का खोना पड जाए भारी
सही नां जाए अपनों की दूरी
तबाह हो गई जिंदगी पूरी
फिर भी जिंदा रहने की मजबूरी।३।

मनुज तरक्की पर नां कर गुमान
*सारा सच* अमीर गरीब समान
खुदा ने कुदरत को दे दी कमान
नां देखे हिन्दु नां देखे मुसलमान।४।

कुदरत का करिश्मा देखो
आपदाओं से लडना सीखो
संघर्ष, संकट से जो डर जाए
मजबूत इन्सान कैसे कहलाए?।५

जब-जब आता है भूचाल
जीवन हो जाए हाल - बेहाल
मजबूत सिंहासन हुए डाँवाडोल
*सारा सच* है जीवन अनमोल।६।

भूकंप का झटका आए
बडे बूढे सबको डराए
कच्चे मकान जाते हैं टूट
भूकंप सबको ले लेता लूट।७।

जब जब सो जाती मानवता
भूकंप दुनिया को है हिलाता
हिन्दु मुस्लिम हो सिख ईसाई
बन जाते हैं सबके भाई।८।

सुनो हमारी एक जुबानी
जिंदगी बनी करूण कहानी
हमारे कारनामों से है आणीबाणी
प्रकृति से नां करो छेडखानी


Saturday, 17 February 2024

वेलेंटाइन डे - अनन्तराम चौबे अनन्त

 


वेलेंटाइन डे

रोमांस डे कभी किस डे है
कभी चाकलेट डे भी होता है ।
एक फूल देकर इजहार करो
ऐसा वेलेन्टाइन डे भी होता है ।

प्यार करो प्यार दिवस है
प्यार का बस इजहार करो ।
दिल आपस में मिल जाएं
सारा सच तभी प्यार करो ।

दिल मिलने से प्यार होता है
नैन मिले प्यार हो जाता है ।
आंखो आंखों के इशारों में ही
दिल में प्यार भी हो जाता है ।

कैसा है ये प्यार का रिश्ता
दिल से दिल जुड़ जाता है । 
दिल लगता है जब किसी से
सारा सच  हाल बुरा होता है ।

अचानक कोई ऐसा मिलता है
दिल में धड़कन बढ़ा देता है
दोनो के जब दिल मिलते है 
बस वेलेन्टाइन डे हो जाता है ।

दिल से दिल करीब होते है
आपस में दिल मिल जाते है ।
बड़ा अजीब दिल का रिश्ता है
सारा सच दिल के रिश्ते जुड़ते है ।

दो दिल आपस में मिलते है
प्यार तभी तो हो जाता है ।
सूरत दिल में बस जाती है
जीना मुश्किल हो जाता है ।

दिन का चैन छिन जाता है
रातों की नींद उड़ जाती हैं ।
जब प्यार किसी से होता है
वो सूरत आंखों में दिखती है।

प्यार का रिश्ता बड़ा अजीब है
अंजाने ही दो, दिल मिलते है ।
सारा सच दिल का हाल बुरा होता है
हमसफर प्यार के बन जाते है ।

सफर में कोई मिले हमसफर
राहें आसान हो भी जाती है ।
जब प्यार के राही  मिलते है
मंजिल भी प्यार की मिलती है ।

प्यार तो बस प्यार होता है
प्यार से रिश्ता जुड़ जाता है ।
वेलेन्टाइन डे की खुशियों से
दोनों का दिल खुश होता है ।

फूलों का आदान प्रदान
दोनो आपस में करते हैं ।
आज के दिन दो प्रेमी मिल
वेलेंटाइन डे को मनाते हैं ।

   अनन्तराम चौबे अनन्त
    जबलपुर म प्र/