Monday, 23 December 2024

किताबें - संजय वर्मा "दृष्टि "


 

                                                किताबें 
शब्दों से 
हमसे कुछ ज्ञान पाते रहो
हमें भी अपने घरों में फूलों की तरह 
बस यूँ ही तुम सजाते रहो। 

किताबें बूढी कभी न हो
इश्क की तरह 
ये ख्यालात दुनिया को दिखाते रहो 
कुछ फूल रखे थे 
किताबों में यादों के 
सूखे हुए फूलों से भी महक 
ख्यालो में तुम पाते रहो। 

आँखें हो चली बूढी फिर भी 
मन तो कहता 
पढ़ते रहो 
दिल आज भी जवाँ
किताबों की तरह
पढ़कर दिल को सुकून दिलाते रहो। 

बन जाते किताबों से रिश्ते 
मुलाकातों को तुम ना गिनाया करो
मांग कर ली जाने वाली किताबों को 
पढ़कर तुम लौटाते रहो। 

संजय वर्मा "दृष्टि "
125,शहीद भगतसिंग मार्ग 
मनावर जिला  -धार (म प्र )

परंपरा - डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'


परंपरा


परंपरा वर्षो से चली आ रही  रीति है, प्रथा है, परिपाटी है।
हमारी परंपरा की साक्षी, हमारी देश की पावन माटी है।
हमारी परंपराएँ, हमारी पहचान हैं। 
हमारी परंपराएँ, हम भारतीयों  की शान हैं।
जिसने  अपनी संस्कृति को मान दिया, अपनी परंपराएंँ आगे बढ़ाई।  
वही जग में सफल हुआ, उसने ही इज्जत पाई।
सफलता उसके कदम चूमती, जिसने रीति-रिवाजों का पालन किया।
आगे बड़ा वही जग में, जिसने परंपराओं का निर्वाह किया।
माता-पिता के, गुरु के और अपने से बड़ों के चरण छूने की है हमारी परंपरा।
यह परंपरा जिसने निभाई,  खुशियों से रहता था वह भरा।
हमारी परंपरा है, यात्रा पर जाने से पहले खाते हैं हम दही शक्कर।
काम हमारे पूरे हो जाते, हंसते हुए हम लौटते हैं घर।
हमारी परंपरा है, हम पेड़ पौधों की पूजा करते हैं।
पेड़ पौधे ही तो हमें ऑक्सीजन देते,  पर्यावरण की रक्षा करते हैं।
सुहागिन स्त्रियाँ पैरों में बिछिया पहनती हैं।
रक्त संचार सही रहता, सकारात्मक ऊर्जा से भरी रहती हैं।
मंदिर में प्रवेश से पहले, 
हम घंटी बजाते हैं।
वातावरण शुद्ध हो जाता, भक्ति भाव मन में आते हैं।
भारतीय परंपराएँ अद्वितीय हैं, सराहनीय हैं।
हमारी परंपराओं की विशेषताएं और खासियत, अवर्णनीय हैं।
कुछ परंपराएं हमारी लुप्त होती जा रही, उन्हें हमें जीवित रखना होगा।
आने वाली पीढ़ी को,
अपनी परंपराओं का महत्व समझना होगा।
हमारी परंपराएं हमें, हमारी संस्कृति से जोड़ती हैं। नकारात्मक ऊर्जा को हम पर, हावी होने से रोकती हैं।
हमारी परंपराएँ  हमें, गलत राह पर जाने से रोकती हैं।
हमारे परंपराएं ही हमें, खुशियों भरी जिंदगी प्रदान करती हैं।

डॉ० उषा पाण्डेय 'शुभांगी'

संविधान - गोरक्ष जाधव

 संविधान


संविधान निधान है राष्ट्र का
संविधान विधान है राष्ट्र का,
हर भारतीय का सन्मान है
संविधान प्रधान दंड है राष्ट्र का।

संविधान मंत्र है गणतंत्र का,
संविधान तंत्र है जनतंत्र  का,
देशभक्ति का अमूल्य प्रतीक है,
संविधान अभिमंत्र है प्रजातंत्र का।

संविधान चित्र है धर्मनिपेक्ष गणराज्य का,
संविधान सूत्र है देश के सुराज्य का,
हर हिंदुस्तानी का अभिमान है ये,
संविधान मित्र है हर हिंदुस्तानी का।

संविधान आधार है अनुशासन का,
संविधान व्यवहार है सुशासन का,
समता, बंधुता की राह आसान करे,
संविधान गुरुमंत्र है बाबासाहब का।

जय हिंद

गोरक्ष जाधव©®
मंगळवेढा, महाराष्ट्र.

Monday, 29 April 2024

सुनामी - पदमा तिवारी दमोह

 

सुनामी

देख सुन कर दिल होता आहत,
जलामय जलामय हो रहे घर द्वार।
कहर ईश का है भारी ,
कर रहे हैं भीषण प्रहार।।

एक दूजे का छूटा साथ,
बिछड़ गए घर परिवार।
कहीं मां बाप बच्चों से,
कहीं बच्चे कर रहे हाहाकार।।

 बरस गया कहर विनाश का,
मातम छाया संसार में।
मिट गया नामोनिशान,
मची तबाही संसार में।।

प्रकृति से भी छेड़खानी ही,
परेशान है कुदरत की मार से।
फैला है तांडव प्रलय का,
गरीब अमीर हो रहे जर्जर से।।

लहर भरती  उछाल
सुनामी का अंदेशा देती है।
मर जाते अनेकों जीव जंतु
संकट के बादल घेर लेती है।।

 सारा सच है कितने घर होते तबाह,
मंदिर मस्जिद सुने सुने।
घर अंगना में मचता क्रंदन,
उपवन हो जाते बिहूने।।

@पदमा तिवारी दमोह मध्य प्रदेश

बाढ़ - डॉ ०अशोक,पटना

बाढ़

यह नदी के जल का फैलाव है,
अक्सर सैलाब के नाम से,
बड़ी शिद्दत से जाना पहचाना जाता है।
तबाही और बर्बादी करते हुए,
जनजन तक दुखदाई सन्देश को,
पहुंचाने के लिए खड़ा हो जाता है।
यह विभीषिका और आपदा के रूप में,
सारी दुनिया में जाना जाता है।
तबाही और बर्बादी करते हुए,
जनजन तक कष्ट का भार देकर,
मुश्किल हालात को ख़ुद बनाता है।
सारा सच का अद्भुत त्याग,
एक खूबसूरत अन्दाज में दिया गया उपहार है।
बाढ़ और उसके प्रभाव से रूबरू कराने का,
यह कविता प्रतियोगिता एक,
सुन्दर व सुसंकृत संस्कार है।
प्राकृतिक और मानव निर्मित कारणों का,
बेमिसाल व अनूठी संयोजन है।
यहां तकलीफें बेइंतहा मोहब्बत को,
दूर करने का दिखता प्रयोजन है।
अत्यधिक जल प्रवाह ही बाढ़ की शोभा है,
 दुनिया को बर्बाद करने वाली,
कुरूप चेहरा लिए काली मानसिकता वाली,
दिखता तबाही से श्रृंगारित प्रभा है।
अत्यधिक वारिश अथवा हिमपात,
इसके महत्वपूर्ण व सटीक कारण हैं।
स्पष्ट और सतरंगी तरीके से ही,
हो सकता इसका सही सही निवारण है।
यह पशुधन और वनस्पति संग,
जन जन तक को प्रभावित कर,
दुनिया में तकलीफ़ का दौर लाता है।
सुकून और खुशियां से,
जहां को बेदखल कर सब खुशियां,
एक क्षण में छिनकर लें जाता है।
पेड़ लगाओ आन्दोलन और तटबंधों का निर्माण,
एक पारदर्शी तरीके से बाढ़ को रोकने का,
खूबसूरत प्रयास किया जाएं।
जल निकासी प्रबंधन और जलाशयों के निर्माण में,
अत्यधिक ध्यान दिया जाएं।
सारा सच आज़ यहां एक सार्थक युद्ध,
मजबूती से जोश के साथ लड़ रहा है।
बाढ़ की दमदार आहट को कमजोर,
दिल और दिमाग से यहां कर रहा है।

डॉ ०अशोक,पटना,बिहार

सुनामी की पीड़ा - तनु सैनी

 


सुनामी की पीड़ा 

खबर पढ़ने बैठे थे  बरामदे में , 
  लेकिन बारिश की बूंदों से अख़बार तर गया।
नजर पड़ी जब पहले पन्ने पर , 
चाय का प्याला हाथ में ही ठहर गया ।।
 पता चला देश का एक कोना  ,
        आपदा से जूझ रहा है।
शेष देश उस आपदाग्रस्त  कोने की
     पुकार से  गूँज रहा है ।।

समझ ना आया सुनामी की खबरें देखूँ,
 या देखूँ  उन आँखों की सुनामी को ।
या सुनू  विवशता से भरी उन ,
      शब्दों की जुबानी को ।।
कितने परिवारों की डोर रही न,
          कितने रिश्ते टूट गये ।
कितने लोग बेबस हुए और ,
     कितने बच्चें अनाथ छूट गये।।
उन लोगों को देने सांत्वना,
      सरकार कोष टटोल रही।
अखबारों की थी लम्बी कतारें  पर ,
     सारा सच न बोल सकी ।

माना  लाखों की  धन राशि भी ,
अपनों की कमी न पूरा कर पाई है।
देख उजड़ता आशियाना अपना ,
आँखें पल - पल  भर आई है ।।
देखा था सारा सच जिसने ,
   प्रकृति के विकराल  रूप का ।
 हृदय में करुणा - जल भर आता है ।
भूख से व्याकुल बाल -रूप का।।
जन- जन के सहयोग भाव से,
 पीड़ितों को सहारा तो मिल सकता है। 
डुबती नाव को मंजिल ना सही ,
किनारा तो मिल सकता है।।

तनु सैनी -,राजस्थान

कुदरत का कहर - तारिक़ रशीद

 


कुदरत का कहर

बाढ़ भूकंप सुनामी सब साथ आते देखा है मैंने
इंसानों पे इस कदर कुदरत का कहर देखा है मैंने
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सांप डंक मारके शर्मिंदा है आज रशीद 
मन में इंसानों के इतना ज़हर देखा है मैंने
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आती थी बच्चों की किलकारियां कभी आँगन से
सियासत में तबाह होते वो घर वो शहर देखा है मैंने
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मस्जिद के कबूतर मंदिर से दाना चुगने को सोचते है 
हवाओं में इस कदर नफरत का ज़हर देखा है मैंने
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सब है व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी के ज्ञान का असर
धर्म की राजनीति में बारूद बनता शहर देखा है मैंने
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कलम छुड़ाके थमा दिए राजनितिक झंडे
गरीबों का मुश्किल से गुजर-बसर देखा है मैंने
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सारा सच आये सामने अब कहा से रशीद 
सत्ता के क़दमों पे नतमस्तक सर देखा है मैंने
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     ©® तारिक़ रशीद