Monday, 6 October 2025

रुष्ट प्रकृति - स्वाति 'पूजा'

रुष्ट प्रकृति - स्वाति 'पूजा'

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क्यों रुष्ट है प्रकृति 
क्यों लिया रूप विकराल 
क्यों दरक रहे पहाड़ 
क्यों बिगड़ी नदियों की चाल ।

जहाँ देखो फट रहे बादल 
चल रहा प्रलय काल 
जहाँ खेलती थी ज़िन्दगी 
वहाँ पसरी मौत अकाल ।

गाँव के गाँव बह गए 
लोग हो गए बदहाल 
अपनों को तलाशते लोग 
कैसे देखें अंतकाल ।

क्यों वर्षा लाई ऐसी आपदा
क्यों भूलोक बना पाताल 
गांव-शहर हो गए जलमग्न 
जाने कब खत्म हो जाए जीवनकाल

स्वाति 'पूजा'✍🏻
ग्रेटर नोएडा

हम सभी अचम्भित हैं - सुधीर कुमार सोनी

हम सभी अचम्भित हैं  - सुधीर कुमार सोनी 

कि इस नीले आसमान के ऊपर क्या होगा 
किस पर टिकी है यह धरती 
हलचल है कब से इन समुन्दरों में 
सब कुछ बंद किताब सा है 
वह बंद किवाड़ है 
जो फिर न खुल सकेगा |

सोचता हूँ 
कब पहली बार लाल सुबह 
पंख फड़फड़ाती धरती पर उतरी होगी |

कैसा लगा होगा धरती को 
जब पहली बार 
उसने धूप को ओढ़ा होगा |

कब पहली बार 
हवा की  किताब के पहले पन्ने खुले होंगे 
और धरती के पोर-पोर में 
गुनगुनायी होगी हवा |

कब पहली बार 
आकाश से मोतियों की तरह 
नन्ही-नन्ही बूंदे गिरी होंगी |

कैसा लगा होगा 
किसी नन्हे पौधे को 
मिट्टी के भीतर से उगना पहली बार |

आँख भर आई होगी धूप की 
जब पहली बार अगले दिन के लिए 
शाम की लालिमा के साथ वह लौटी होगी |

कब पहली बार 
मानव की रचना कर 
पृथ्वी पर उतारा गया होगा |

कब पहली बार 
किसी कन्या ने गर्भ धारण किया होगा 
और कहलायी होगी माँ |

कब पहली बार 
आदमी का मौत से हुआ होगा साक्षात्कार 
जो उसकी सोच में भी नहीं था |

कब पहली बार 
अस्तित्व में आयी होंगी लकीरें
और आदमी के माथे की परेशानियाँ बनी होंगी |

कब पहली बार 
लकीरें उठ खड़ी हुई होंगी 
और आदमी ने धरती को बाँटा होगा 
जिसका बाँटा जाना बंद होने के अब सारे रास्ते बंद हैं  |
***

सुधीर कुमार सोनी 

आत्म हत्या निवारण - डॉ गुलाब चंद पटेल

आत्म हत्या निवारण - डॉ गुलाब चंद पटेल 

पारस्परिक संबंध की भूमिका होती है 
सम्बंध सुधार उसे रोका भी जा सकता है 

मानसिक तनाव विकारों को दोष देते हैं 
मानसिक बीमारी दबाई से रोक सकते हैं 

नशीली दवा दोषी ठहराया जाता है 
नशीली दवाओं का सेवन रोक सकते हैं 

हर साल दश लाख लोग इससे मरते हैं 
कीट नाशक जहर बंदूक से लोग मरते हैं 

आत्म हत्या धर्म में पाप माना जाता है 
बीस मिलियन गैर घातक प्रयास होते हैं 

आत्म हत्या दण्डनीय माना जाता है 
मुस्लिम देशों में आज भी प्रथा अमली है 

गरुड़ पुराण में वर्णन किया गया है 
आत्म हत्या को अपराध माना गया है 

आत्म हत्या से आत्मा भटकती होती है 
न स्वर्ग या नर्क में जाने प्रवेश मिलता है 

आत्म हत्या से खुद को बचाया जाता है 
यदि मित्र को दुख की बात बताई जाती है 

डॉ गुलाब चंद पटेल 

Thursday, 2 October 2025

विजयादशमी - जिज्ञासा ढींगरा

 
विजयादशमी - जिज्ञासा ढींगरा

शीर्षक- अच्छाई की जीत

देखो-देखो दशहरा है आया,
रावण ने सर पे अपने है ताज सजाया।

अभिमान था जो रावण को अपने बल का,
पल भर में श्री राम जी ने टूट गिराया।

हा-हा कार रावण ने मचा रखा था,
अपने दशानन से सबको डरा रखा था।

पर भूल हो गई रावण से भारी,
जो समझ न पाया वो श्री राम की गाथा सारी।

समझा श्री राम को एक आम इंसान,
इसलिए हो न पाया रावण का उत्थान।

बुराई को ही रावण ने जीवन में संजोया,
तभी श्री राम जी ने उसको परलोक पहुंचाया।

देता है सीख ये त्योहार,
बुराई की सदा ही होती है हार।

अगर जीवन में सुख-समृद्धि है पाना,
तो हमेशा अच्छाई को ही गले लगाना।

जिज्ञासा ढींगरा
खुर्जा, बुलंदशहर
उत्तर प्रदेश

स्वयं से स्वयं तक का सफ़र - नेहा

 
स्वयं से स्वयं तक का सफ़र - नेहा


क्या मैंने स्वयं को जाना?
क्या मैंने स्वयं को पहचाना?
हाँ… मगर बस इतना ही,
जितना दिखावे की सतह तक था,
अंदर की गहराइयों तक उतरना कहाँ आया मुझे?
कपड़ों के रंग और ब्रांड में
मैंने अपनी पहचान खोजी,
महलों की ऊँची दीवारों में
मैंने अपने सपनों को तोला,
होटलों की चमकती थालियों में
मैंने श्रेष्ठता का स्वाद चखा।
समाज की आँखों में
अपना दर्जा ऊँचा दिखाना ही
जैसे जीवन का सबसे बड़ा मक़सद बन गया—
पर क्या यही है मेरा धर्म?
क्या यही है मेरा कर्म?
नहीं… कभी नहीं!
जीवन ठहरकर पूछता है मुझसे—
क्यों न कुछ पल ऐसे हों
जहाँ मैं अपने भीतर झाँक सकूँ,
जहाँ साँसों की गिनती से परे
मन की गहराइयों को सुन सकूँ।
धर्म वही है जो बाँधे,
नफ़रत की दीवारें नहीं,
कर्म वही है जो जिए,
स्वार्थ की सीमाएँ नहीं।
इंसानियत - यही है मेरा सच्चा धर्म,
सद्भावना - यही है मेरा शाश्वत कर्म।
महलों से ऊँचा है वह हृदय
जो करुणा से भरा हो,
कपड़ों से सुंदर है वह चेहरा
जो सत्य से दमकता हो,
हीरों से बढ़कर है वह थाली
जिसने किसी भूखे का पेट भरा हो।
आज मैं जानती हूँ—
स्वयं को पहचानने का मतलब है
भीतर के अँधेरे को रोशनी में बदलना,
स्वार्थ के आवरण से बाहर निकलकर
मानवता को गले लगाना।
यही है जीवन की सबसे बड़ी जीत—
इंसान होकर इंसान बने रहना।
 
— नेहा
हिंदी शिक्षिका 
नई दिल्ली

रावन - हेमलता ओझा

 
रावन - हेमलता ओझा 


 क्या है रावन
 जो आज भी ऊसको जलाया जाता है
रावन वो है जो त्रिनेत को शीश का दान देकर
भक्ति का अलख जगाया
कौन है रावन
रावन  जिसे खूद शिव जीने अपना गूरू बनाकर  सोने की लंका दे डाली
रावन कौन है
रावन  वो है जो अपने परिवार व खूद के मोक्ष के लिये पूरे कूल का बलि दे डाला
रावन कौन है
 रावन वो है जो माता सीता को बचन दिया लंका घूमाने को 
बेटी ही तो थी मा
ये वो भी जानती थी
देखा तक नही मां ने और रावन ने 
एक दूसरे को
  रावन कौन है
रावन रामायण नमबर वन रीयल हीरो है
रावन पूजनीय नही बंदनीय होना चाहीये
 ,बहन बेटी की इज्जत कैसी की जाती है ऊससे सिखना चाहीये
रावन कौन है
 लेकिन रावन रावन बनता ही क्यो
जब मां को पहले ही अग्नि मे प्रवेश  प्रवेश करवा चूके थे पुरूषोत्तम राम
छाया ही तो थी मां
ये भगवान भी जानले थे
फिर भी अग्नि परिक्षा ले डाली 
भगवान ने
 लेकर परिक्षा भी गर्भ वती मां को
लव और कूश को जंगल मे जन्म देना पडा
 रावन कौन है
सोच बदलो  जमाने के खूदाया
किसी ने ये ना कहा रावन का पूतला ही जला डालो
कौन है रावन 
 ऊससे भयानक रावन घूम रहे हर जगह
कहां कहा गिनाऊ मै
सत्ता की गलियारे से लेकर
घर की गलियों तक  
बेटीयों की मां जीती है चिंता की लकीरों तक
सूरक्षित नही है नारी
अपने ही गांव मूहलले देश तक
कैसे कह दू रावन निंदनीय है
रावन कौन‌है
 है छोटी कलम मेरी छोटा मूंह भी
ना ही बहूत ज्ञान है हेमा के पास
लेकिन गूजारिश करती हुं जमाने के खूदाया
झांको मौका आने पर 
खूद के मन मे छिपे मार सकते हो रावन को
  सबमे है रावन का नेचर 
फिर क्यो जलाते हो ऊस‌प्रकांड शक्ति कोरूसवाकरके चौराहे पर
जलाना  हो तो बूराइ चोरी कपट बेइमान हवश नाम का
पूतला बनाओ
और मारो इंटा पत्थर से
फीर बढे शौक से जला देना दशहरे पर चौराहे पर
फिर कहना दशहरा पर्वहै सत्य की जय का
गलत थे रावन के पथ
तभी आज जलता है चौराहे पर

हेमलता ओझा 
उत्तर प्रदेश 

धर्म अधर्म - प्रो. स्मिता शंकर

धर्म अधर्म  - प्रो. स्मिता शंकर

धर्म अधर्म : जागो, यही है निर्णायक समय

धर्म अधर्म का संघर्ष युगों से चलता आ रहा है। महाभारत से लेकर आज के समाज तक, हर युग में यह सवाल खड़ा होता रहा है—हम किस ओर हैं? धर्म वह है जो सत्य, न्याय, करुणा और सेवा का मार्ग दिखाए, जबकि अधर्म वह है जो स्वार्थ, हिंसा, छल और अन्याय को बढ़ावा दे।

जब धर्म सो जाता है, तो अधर्म का तांडव मचता है। इतिहास गवाह है कि अन्याय, स्वार्थ और हिंसा जब भी बढ़े हैं, तब धर्म ने ही समाज को बचाया है। प्रश्न यह है—क्या हम तमाशबीन रहेंगे या धर्म की मशाल थामेंगे?

धर्म वह शक्ति है जो सत्य, न्याय, करुणा और सेवा का मार्ग दिखाती है। अधर्म वह अंधकार है जो छल, भ्रष्टाचार, नशा और लालच के रूप में समाज को खोखला कर देता है। आज का समय भी इसी कसौटी पर खड़ा है। भ्रष्टाचार, नशा, हिंसा और लालच अधर्म के आधुनिक चेहरे हैं, जो समाज को भीतर से खोखला कर रहे हैं। वहीं ईमानदारी, त्याग, सेवा और संवेदनशीलता धर्म के वास्तविक स्वरूप हैं, जो समाज को सशक्त और जीवंत बनाते हैं।

धर्म अधर्म का यह संघर्ष केवल महाकाव्यों की कहानी नहीं, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के जीवन की हकीकत है। हर दिन हमें यह तय करना पड़ता है कि हम किस ओर खड़े हैं—आसान लेकिन विनाशकारी अधर्म की राह पर, या कठिन किंतु उज्ज्वल धर्म के मार्ग पर।

इतिहास उन्हीं को याद रखता है जो धर्म के पक्ष में डटे। समाज बदलने के लिए किसी एक महानायक का इंतज़ार मत कीजिए; हर व्यक्ति का संकल्प ही सबसे बड़ी ताक़त है।

आइए, हम धर्म को कर्म बनाएँ और अधर्म को चुनौती दें। यही भारत का स्वर्णिम भविष्य होगा।यही सच्ची मानवता है, यही राष्ट्रधर्म है, यही समय की सबसे बड़ी जरूरत है।हम धर्म को जीवन का आधार बनाएँ, अधर्म के हर रूप का साहस से सामना करें और देश को नई दिशा दें।

प्रो. स्मिता शंकर
कर्नाटका